कन्हैया लाल की निर्मम हत्या के बाद सुर्खियों में आए तंजीम-ए-इस्लामी संगठन के लिए बरेली के मुस्लिम समुदाय की दुकानों पर दान पात्र रखे देखे जा सकते हैं। ये संस्था पाकिस्तान के लाहौर से चलती है, ऐसे में चर्चा अब इस बात को लेकर हो रही है कि क्या बरेली में पाकिस्तान परस्त मुस्लिम भी हैं ? बताया जा रहा है कि लाखों का चंदा पाकिस्तान भेजा जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक बरेली में हरी पगड़ी धारी बरेलवी मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी दुकानों के जरिए दावत-ए-इस्लामी जोकि तंजीम-ए-इस्लामी से जुड़ी संस्था है, रोज चंदे की रकम एकत्र करते हैं। तंजीम-ए-इस्लामी संस्था का भारत ही में नहीं विदेशों में भी नेटवर्क है और इसका मुख्यालय पाकिस्तान के लाहौर शहर में है।
तंजीम-ए-इस्लामी संगठन का नाम उदयपुर के कन्हैया लाल की हत्या के आरोपियों के साथ लिया गया था। खुफिया एजेंसियों की जांच-पड़ताल के बाद मालूम हुआ कि ये संस्था लाहौर से संचालित होती है और इसका एक बड़ा नेटवर्क है। 1975 में इसरार जमाल द्वारा स्थापित इस संस्था के द्वारा इस्लाम के विस्तार कार्यक्रमों को अंजाम दिया जाता है और इसके लिए दुनियाभर के मुस्लिम अपना चंदा देते हैं। भारत में दावत-ए-इस्लामिया और तंजीम-ए-इस्लामिया के बीच रिश्तों की बात सामने आई है।
जानकारी के मुताबिक चंदेबाजी का एक बड़ा नेटवर्क पाकिस्तान की इस संस्था ने दुनियाभर में और खासतौर पर भारत में फैलाया हुआ है। बरेली, मुरादाबाद, कानपुर सहित कई शहरों में इसका नेटवर्क है। ये संगठन हर महीने अलग-अलग शहरों में एक बार जमात करता है और इस्लाम के विस्तार की योजना बनाता है।
जानकारी के मुताबिक इस संगठन से जु़ड़े लोगों की पहचान हरी पगड़ी से होती है। ये लोग बरेलवी सुन्नी कहलाते हैं। जानकारी के मुताबिक मजार जिहाद पर काम करना भी इनके इस्लाम विस्तार लक्ष्य का हिस्सा रहा है। उत्तराखंड, पश्चिम यूपी में सरकारी जमीनों पर अवैध मजारें बनाकर बसने वाले ज्यादातर मुस्लिम हरी पगड़ी वाले ही मिलेंगे। सवाल अब ये उठ रहा है कि इस संस्था के लोग जो कि चंदा वसूली कर रहे हैं तो उसका पाकिस्तान के मुख्यालय तक कोई हिस्सा भेजा जा रहा है?
जानकारी के मुताबिक बरेली और कानपुर में कई मुस्लिम लोगों ने इस चंदे को लेकर आपस में चर्चा शुरू की है कि उनके पैसा का इस्तेमाल कहीं उन्हें भी एक दिन शक के घेरे में न ले ले। उदयपुर की घटना के बाद से खुफिया एजेंसियां भी इस पड़ताल में लगी हुई हैं कि इस चंदे का उपयोग कैसे और कहां-कहां हो रहा है। बहरहाल दावत-ए-इस्लामी और तंजीम-ए-इस्लामी के बीच कनेक्शन को लेकर सवाल पूछे जाने लगे हैं।
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