... और स्वतंत्र हो गई दिल्ली
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

… और स्वतंत्र हो गई दिल्ली

1857 को मेरठ से दो हजार भारतीय सैनिक दिल्ली पहुंचे। यहां स्थानीय सैनिक और जनता स्वतंत्रता के इन दीवानों के साथ हो ली

by रवि कुमार
Jul 4, 2022, 03:04 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, आजादी का अमृत महोत्सव
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

11 मई, 1857 को मेरठ से दो हजार भारतीय सैनिक दिल्ली पहुंचे। यहां स्थानीय सैनिक और जनता स्वतंत्रता के इन दीवानों के साथ हो ली। इसके साथ ही शुरू हो गया दिल्ली को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने का उद्यम। बहादुर शाह जफर को नेतृत्व सौंपा गया। और, 16 मई, 1857 को दिल्ली में फिरंगी सत्ता का एक भी चिह्न नहीं रहा

प्रथम स्वातंत्र्य समर 11 मई, 1857 को मेरठ से प्रारम्भ हुआ। दिल्ली इस समर के प्रमुख केंद्रों में से एक थी। जब दिल्ली स्वतंत्र हुई, उसके बाद ब्रिटिश सेना का यह भरसक प्रयास रहा कि वह पुन: अंग्रेजों के अधीन हो जाए और क्रांतिकारियों का विशेष प्रयास रहा कि दिल्ली स्वतंत्र रहे। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि उस समय दिल्ली की क्या महत्ता रही होगी। दिल्ली कैसे स्वतंत्र हुई, आइए, विचार करते हैं।

मेरठ से दिल्ली आगमन
10 मई को मेरठ की गुप्त समिति की ओर से दिल्ली की गुप्त समिति को संदेश आया कि ‘हम कल आ रहे हैं, तैयारी रखो!’ यह पूर्व और आकस्मिक सन्देश पहुंचते-न-पहुंचते, 11 मई को मेरठ से दो हजार सैनिक ‘दिल्ली! दिल्ली!!’ की गर्जना करते हुए निकले। मेरठ से दिल्ली 32 मील दूर है। प्रात: आठ बजे सेना के प्रमुख भाग को दिल्ली की सीमा पर यमुना के दर्शन हुए।

मेरठ से सैनिक दिल्ली आ रहे हैं, यह भनक लगते ही कर्नल रिप्ले 54वीं पलटन को लेकर विद्रोहियों का सामना करने निकला। मेरठ की सेना ने ‘फिरंगी का नाश हो’, ‘बादशाह की जय हो’ के नारे लगाए। ये नारे सुनते ही दिल्ली की सेना ने ‘मारो फिरंगी को’ की प्रतिगर्जना की। यह क्या है? कहने वाला कर्नल रिप्ले क्षण में गोलियों की बौछार से भूमि पर गिर पड़ा और उस रेजिमेंट के सारे अंग्रेज सैनिकों को कत्ल कर दिया गया। यह समाचार सुनते ही दिल्ली का कश्मीरी दरवाजा खुल गया और इस इतिहास-प्रसिद्ध दरवाजे से स्वातंत्र्य योद्धा दिल्ली में प्रवेश कर गए। मेरठ सेना की दूसरी टुकड़ी ने कलकत्ता दरवाजे से दिल्ली में प्रवेश किया।

जफर को नेतृत्व
दिल्ली के राजमहल में पहुंचकर भारतीय सैनिकों के नेता ने बादशाह बहादुरशाह जफर के सामने कहा- ‘मेरठ अंग्रेजों से मुक्त हो गया है। दिल्ली अपने हाथ में है और पेशावर से कलकत्ता तक के सारे सिपाही आपके आदेश की राह देख रहे हैं।’ बादशाह ने कहा, ‘मेरे पास खजाना नहीं है और तुम्हें वेतन भी नहीं मिलेगा’। तब सैनिक बोले- ‘हम अंग्रेजों का खजाना लूटेंगे और आपके खजाने में भरेंगे’। ‘तो फिर मैं आपका नेतृत्व स्वीकार करता हूं। ऐसा अभिवचन उस वृद्ध बादशाह से मिलते ही राजभवन में जमा उस प्रचंड जनसमूह ने बड़े जोर से गर्जना की।

फिरंगी प्रतिष्ठानों पर हमले
दिन के लगभग बारह बजे दिल्ली के बैंक पर सैनिकों ने हमला किया। बैंक मैनेजर और उसके परिवार को मार दिया गया। वह भवन भी नष्ट कर दिया गया। फिर ‘दिल्ली गजट’ के छापेखाने को निशाना बनाया गया। कुछ ही देर में छापेखाने का हर ईसाई चीर दिया गया। वहां की सभी मशीनें नष्ट कर दी गर्इं। साथ खड़े चर्च पर हमला हुआ। चर्च के सारे घंटे टूटकर नीचे गिरने के बाद उनके गिरने की आवाज के साथ वे सैनिक भी विकट हास्य करते हुए एक-दूसरे को कहने लगे- ‘कैसा तमाशा है! क्या मजा है!!’

 

11 मई को अंग्रेजों के कत्लेआम का आरंभ होकर उसकी पूर्णाहुति 16 मई को हुई। इस बीच सैकड़ों अंग्रेज अपनी जान बचाकर दिल्ली से भाग गए। मेरठ की महिलाओं से लेकर दिल्ली के बादशाह तक, सबके हृदय में स्वतंत्रता और स्वधर्म-रक्षण की इच्छा होने से तथा उस इच्छा को गुप्त संगठन के द्वारा व्यवस्था प्राप्त होने से केवल पांच दिन के अंदर हिंदुस्थान की इतिहास-प्रसिद्ध राजधानी में स्वराज्य की प्राण प्रतिष्ठा हो पाई।

राजमहल के एक ओर अंग्रेजी सेना के लिए तैयार किया हुआ एक बारूदखाना था। इस बारूदखाने में लड़ाई का आवश्यक सारा सामान ठूंस-ठूंस कर भरा हुआ था। उसमें कम से कम नौ लाख कारतूस, आठ-दस हजार बंदूकें, तोपें और सीजन ट्रेन भरी हुई थीं। क्रांतिवीरों ने यह बारूदखाना अपने कब्जे में लेने का दृढ़ संकल्प किया। बारुदखाने के अंदर नौ अंग्रेज और कुछ भारतीय लोग थे। जब भारतीय सैनिक हमला करने लगे तो अंग्रेज सैनिकों ने बारूदखाने को स्वयं सुलगा दिया और उस एक आवाज के साथ पच्चीस सिपाही व आसपास के तीन सौ व्यक्ति आकाश में उड़ गए।

क्रांतिपक्ष वालों ने उस बारूदखाने की आग में जान-बूझकर अपना जो नाश करवा लिया, वह यूं ही नहीं था। इस बारूद के विस्फोट में जो लोग बलि चढ़े, उनके आत्मयज्ञ से इस क्रांति को अपूर्व शक्ति मिली। जब तक यह प्रचंड बारूदखाना अंग्रेजों के अधीन था, तब तक मुख्य केंद्र के भारतीय सैनिक अंग्रेज अधिकारियों की अधीनता में थे। अपराह्न चार बजे दिल्ली शहर को हिलाने वाले विस्फोट की आवाज सुनते ही कैंटोनमेंट के सैनिक एकत्र हुए और ‘मारो फिरंगी को’ की गर्जना करते हुए अंग्रेजों पर टूट पड़े। मुख्य रक्षक गार्डन को किसी ने उड़ा दिया। स्मिथ और रेह्वले को मार डाला और गोरा रंग दिखते ही ‘टूट पड़ो-मार डालो’ की गर्जना होने लगी।

लोकशक्ति का प्रथमोदय
क्रांतिकारियों को जहां-जहां ब्रिटिश सैनिक, लोग या उनसे संबंधित जो भी दिखा, उसे मार दिया गया। दिल्ली के सैकड़ों लोग घर में जो शस्त्र मिले, वही लेकर विद्रोही सैनिकों से मिल रहे थे और यूरोपीय लोगों को काट डालने के लिए यहां-वहां घूम रहे थे। 11 मई को अंग्रेजों के कत्लेआम का आरंभ होकर उसकी पूर्णाहुति 16 मई को हुई।

इस बीच सैकड़ों अंग्रेज अपनी जान बचाकर दिल्ली से भाग गए। किसी ने मुंह काला कर भारतीय होने का स्वांग रचा, कोई जंगल-जंगल भागता धूप के कारण मर गया। मेरठ की महिलाओं से लेकर दिल्ली के बादशाह तक, सबके हृदय में स्वतंत्रता और स्वधर्म-रक्षण की इच्छा होने से तथा उस इच्छा को गुप्त संगठन के द्वारा व्यवस्था प्राप्त होने से केवल पांच दिनों के अंदर हिंदुस्थान की इतिहास-प्रसिद्ध राजधानी में स्वराज्य की प्राण प्रतिष्ठा हो पाई। 16 मई 1857 को दिल्ली में फिरंगी सत्ता का एक भी चिन्ह शेष नहीं रहा था।

इन पांच दिनों में हिंदुस्थान में लोकशक्ति का प्रथमोदय हुआ। अपने पर कौन राज्य करे, इस प्रश्न का निर्णय करने का कार्य लोकपक्ष का था। लोकपक्ष ने ही उस राज सिंहासन पर स्वसम्मत पुरुषार्थ की योजना की। ये पांच दिन हिन्दुस्थान के इतिहास में हमेशा चिरस्मरणीय रहेंगे।
(लेखक विद्या भारती, हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री हैं और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य हैं)

Topics: प्रथम स्वातंत्र्य समरहिंदुस्थान में लोकशक्तिबादशाह बहादुरशाह जफर
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नीलांबर-पीतांबर

1857 के दो वीर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

फोटो साभार: लाइव हिन्दुस्तान

क्या है IMO? जिससे दिल्ली में पकड़े गए बांग्लादेशी अपने लोगों से करते थे सम्पर्क

Donald Trump

ब्राजील पर ट्रंप का 50% टैरिफ का एक्शन: क्या है बोल्सोनारो मामला?

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies