महिलाओं के हाथ ‘कलकल’
May 8, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत राजस्थान

महिलाओं के हाथ ‘कलकल’

प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी से इस्तेमाल, जो प्रकृति से लिया, उसे उसी शुद्ध रूप में लौटाने, ‘व्यर्थ’ को ‘अर्थ’ बनाने की पूरी प्रक्रिया

by WEB DESK and डॉ. क्षिप्रा माथुर
Jul 2, 2022, 05:27 pm IST
in राजस्थान
कुम्हारिन ....पानी के फिल्टर बनाने में माहिर

कुम्हारिन ....पानी के फिल्टर बनाने में माहिर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी से इस्तेमाल, जो प्रकृति से लिया, उसे उसी शुद्ध रूप में लौटाने, ‘व्यर्थ’ को ‘अर्थ’ बनाने की पूरी प्रक्रिया को महिलाओं के नजरिए से समझने, अपनाने और पोषित किए जाने की आवश्यकता है। दरअसल अब तक पर्यावरण की साज-सम्भाल में महिलाओं की भूमिका का आकलन नहीं हो पाया है। वे सहयोगी हैं, संगिनी हैं, सखी हैं, मगर हमारी परम्पराओं और खनक की प्रतिनिधि भी है, उद्यमी तो जन्मजात हैं ही, ये हमें नहीं भूलना चाहिए

लक्ष्मी, ग्राम पंचायत पांवडेरा, सवाई माधोपुर, राजस्थान

सष्टि के चक्र में बदलती स्थितियों के साथ ही तटस्थता का भाव है। मगर जीवन चक्र पल-पल बदलती परिस्थितियों के साथ तालमेल और लगाव की बात है। आगे बढ़ने के क्रम में जो कुछ हमने बिगाड़ा है, उसे सुधारने की सोच में अब ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’ की बात जोर-शोर से है। यानी कुदरती संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल हो। जो कुछ कुदरत से लिया है, उसे उसी शुद्ध स्वरूप में लौटा भी दें। और तरीके निकाले जा रहे हैं कि दोहन न हो, दखल कम हो और अक्षय ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने की मानसिकता बने। धरती पर बढ़ते बोझ को कम करने के साथ ही ‘व्यर्थ’ सामान को ‘अर्थ’ यानी पूंजी में बदल पाएं, वही हमारी बुद्धि की परख होगी। नीतियों की तैयारी तो है ही इसके लिए, मगर एक जरूरी बात ये कि इस पूरी प्रक्रिया को महिलाओं के नजरिए से भी समझा, अपनाया और पोषित किया जाए।

पर्यावरण विज्ञान वाले महिलाओं की कुदरत से तालमेल की प्रवृत्ति को ‘ईको-फेमिनिज्म’ की तरह पढ़ते-पढ़ाते रहे हैं लेकिन उसके जीते-जागते सुबूत तो किताबों में और सरकारी रिपोर्टों में उस तरह अब भी दर्ज नहीं हैं। महिलाओं की हमारी अर्थव्यवस्था में भागीदारी फिलहाल 18 प्रतिशत है। लेकिन असंगठित क्षेत्र में उसके श्रम और पसीने का आकलन करना हमारे बूते का नहीं रहा। वो गिनती में आसानी से नहीं आ पातीं क्योंकि हमने अपनी खासियत को छोड़, पैमाने भी बाहरी दुनिया के अपना लिये।

बदलाव लाने वाली 75 महिलाओं की सफलताओं पर जारी ‘नीति आयोग’ की 2021 की रिपोर्ट में एक भी चेहरा ग्रामीण भारत का नहीं। इसीलिए सवाल ये भी है कि हमें अब भी 70 प्रतिशत भारत की खूबियों का इस्तेमाल करता 30 प्रतिशत भारत देखना है या अपना प्रतिनिधित्व खुद करता, अपने हाथ खुद मजबूत करता 70 प्रतिशत भारत? नीति आयोग की संकलित एक रिपोर्ट में महिलाओं की श्रम में भागीदारी की बात 2011-12 तक की ही है। इसमें खेती के काम में 60 प्रतिशत और बिजली, गैस और पानी वितरण के काम में 0.08 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी की बात है। आज की स्थिति पर कहीं कोई आंकड़ा नहीं मिलता। खैर, सच बात ये है कि महिलाओं के बगैर ग्रामीण भारत में किसी भी उद्यम और उपक्रम को साधा नहीं जा सकता।

सहयोगी, संगिनी, सखी और… ?

हमने वो घर जिये हैं जिनमें चीनी मिट्टी, स्टील के कप प्लेट और कांच के गिलास के एक-दो ही सेट जीवन भर निभा लिया करते थे। हल्की-फुल्की टूटन बर्दाश्त कर ली जाती थी। एक धोती-पैंट फटती तो उससे तकिए की खोल सिल जाती, और ज्यादा फटती तो पोंछे का कपड़ा बन जाती। तार-तार होने तक वो कपड़ा छूटता नहीं था। दो-तीन जोड़ी कपड़ों में पूरा साल आराम से गुजरता था, अलमरियां खाली-खाली सी हुआ करती थीं। करीब-करीब हर घर में सिलाई मशीन होती थी, हल्की-फुल्की उधड़न खुद ही दुरुस्त कर लेते थे। कपड़ों की भी, और मन की भी। जूते-चप्पल टूटते थे तो मोची से सिला लेते। जब तक चलें, उन्हीं से काम चलाते थे। छोटे-मोटे सामान की टूट-फूट सब खुद ही ठीक कर लिया करते थे। पानी मटकियों और सुराहियों में रहता था तो मिट्टी से रिसकर मिली ठंडक का विज्ञान सबको मालूम था।

तब घर हर लिहाज से बड़े थे और बचत के बेहिसाब तरीकों से ही गाड़ी चलती थी। और इन तमाम कामों की निगरानी ज्यादातर महिलाओं के ही हाथ रहती थी। अल्टरनेट करंट के जरिए बिजली लाने वाले और वाई-फाई जैसे सैकड़ों नवाचार देकर दुनिया की तस्वीर बदलने वाले सदी के सबसे महान इंजीनियर निकोला टेस्ला की जीवनी पढ़ने पर एक खूबसूरत बात याद रही। उन्होंने अपनी अद्भुत सृजन क्षमता के लिए अपनी मां की उन आदतों को वजह बताया कि वो घर के कबाड़ और टूटे-फूटे सामान से कलात्मक चीजें और काम का सामान बना दिया करती थीं। बाग बगीचे, रसोई, सजावट, हिसाब-किताब सब उसकी फिक्र में रहा करते। और हर वक्त काम में खटते हुए भी वो खुश रहा करती।

असल में महिलाओं के हाथ में जो बरकत है, वो इसीलिए है। वो पीढ़ियों को भी तैयार करती है और कुदरत से जुड़ाव में भी आगे रहती हैं। पानी और हरियाली की सार-सम्भाल में उसकी छाप और काम को ‘जल-आंदोलन’ की कई कहानियों में कहा गया। बल्कि हर कहानी में ये टटोलते ही रहे कि महिलाओं ने इन कामों में क्या रंग घोले, जिसकी बात बार-बार करने का मन करता रहा। कुएं-तालाबों को धोक लगाने में वही आगे रही हैं, फिर भी पानी की धार घर तक लाने में मशक़्कत उसे ही ज्यादा करनी पड़ती है। खेती-किसानी में बीज बोने और सिंचाई से लेकर फसल की कटाई और बाजार तक ले जाने में उसका बेहिसाब पसीना लगता है लेकिन उसे अब भी किसान की पहचान तक हासिल नहीं। वो सहयोगी है, संगिनी है, सखी है, मगर हमारी परम्पराओं और खनक की प्रतिनिधि भी है, उद्यमी तो जन्मजात है ही, ये नहीं भूल सकते हम।

‘डिजिटल खाई’ पाटेंगी किसान महिलाएं
महिलाएं हमेशा की तरह आज भी अपने सृजन कर्म में मनोयोग से लगी हैं तो इसके पीछे वो ‘डिजिटल खाई’ भी है जिसने फोन और इंटरनेट की लत से उसे बचाकर रखा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की हालिया रिपोर्ट कहती है कि देश की 54 प्रतिशत महिलाएं ही फोन का अपने लिए इस्तेमाल कर पा रही हैं। उसका फोन घर के सब लोगों का साझा फोन बन जाता है। हालांकि ये ताकत उसके हाथ बड़े पैमाने पर आएगी तो उसका इस्तेमाल पूरे परिवार और समुदाय की ताकत बढ़ाने में ही लगाएगी वो, इसमें कोई संशय नहीं।

हाल ही एक निजी खाद कम्पनी प्रीवि शक्ति ने करीब एक लाख युवा महिला किसानों का समूह बनाकर उन्हें फोन के जरिये अच्छी खेती की समझ और कमाई बढ़ाने के काम की शुरुआत की है। कार्यक्रम के लोकार्पण में इन किसानों से हुए डिजिटल संवाद के दौरान मुझे महसूस हुआ कि नई बच्चियां भी खेती के अपने पुश्तैनी काम-काज को सम्भालने का सपना देख रही हैं। वैज्ञानिक पद्धतियों को जानने की उनकी ललक को हमने कभी अहमियत नहीं दी। इस संवाद में जैविक खेती से लेकर, पैदावार बढ़ाने, पानी बचाने, कम पानी की फसलें उगाने, फसलों के लिए बाजार तलाशने और नई जानकारियां हासिल करने को लेकर कई सवाल थे, जिन्हें और सुने जाने और उनके हल निकले जाने की जरूरत है।

सुमन की जमीन, गांव का पानी
जिन्हें शर्म-लिहाज वाला पल्लू पिछड़ेपन की निशानी लगता है, उन्हें उसकी असल ताकत का अन्दाज ही नहीं। सोलापुर के 37 किलोमीटर बेंद नाले को जीवित करने की कहानी जब कुरुड़ गांव की किसान सुमन गावली की जबानी सुनी तो पता लगा कि यहां कभी नाला था, इसका तो किसी को पता ही नहीं था। इस जमीन के रास्ते में सबकी जमीनें थीं, जिनकी कीमत लाखों में थी।

सुमन ने अपनी और अपनी सास की लाखों की कीमत की जमीन बेहिचक दे दी। बल्कि गांव के जिस-जिस परिवार की जमीनें थीं, सबने दीं। अगर पानी चाहिए था तो निजी स्वार्थ से तो ऊपर उठना ही था। किसी ने मुआवजा नहीं मांगा किसी से, क्योंकि पानी की आवक से सबकी खुशहाली की खातिर ये काम समुदाय ने ही हाथ लिया था। इस बहती नदी के बहाव में सुमन जैसी अनगिनत महिलाओं और पूरे समुदाय का कलकल मन देखकर जिस सुंदर भारत की तस्वीर उभरती है, वही आने वाली पीढ़ियों को अपनी तकदीर बदलने का हौसला देगी। सूखे इलाकों में हो रहे इन कामों में एक सबक ये भी कि जो काम संगठनों और समुदायों के बूते हो रहे हैं, वो पुख़्ता हैं, वहां जुड़ाव है, और सरकारी योजनाओं में अब भी वो फुर्ती और उनका वो बूता नहीं कि उस पर भरोसा हो। सरकारों को अपनी खोट दूर करने का इंतजाम अब के डिजिटल दौर में तो कर ही लेना चाहिए।

‘चाक’ पर झूमती परम्पराएं
कुम्हारों के चाक पर चढ़ने वाली मिट्टी को जब आईआईटी की प्रयोगशाला में स्वास्थ्य के मानदंडों पर परखने की बात आई तो कुम्हारिनें ही पहले आगे आर्इं। यही नहीं, इस शोध में मटकों से बनाए जाने वाले फिल्टर के लिए मिट्टी में स्थानीय फसलों का भूसा चाहिए था, उसका अनुपात, उसकी परख में भी उसी की समझदारी पर वैज्ञानिकों ने भरोसा किया। इस काम में जुटी टीम ये बात मानती है कि मिट्टी से जो जुड़ाव कुम्हार परिवारों की महिलाओं का था, वो किसी का नहीं हो सकता। बल्कि विकल्प के तौर पर मिट्टी में और क्या मिलाया जा सकता है, ये जरूरत बताने पर हर बार उसी ने विकल्प सुझाया, उसे कैसे काटना है, पीसना है, मिलाना है, ये सब नाप-तोल शोधकर्ताओं ने उन्हें सिखाने के क्रम में बदले में खुद ही उनसे ज्यादा सीखा। काम में जो सफाई और बारीकियां मिट्टी में सने हाथों ने दिखाई, उसकी जगह वैज्ञानिक शोधपत्रों में अक्सर नहीं होती। वहां आंकड़े दर्ज होते हैं, भावनाएं नहीं। जो लगन देश भर की कुम्हारिनों ने दिखाई, उसके बूते ही ये शोध आगे बढ़ पाया।

यही लगन ग्रामीण भारत की हर महिला में है, बस उसे आजमाने और निखारने की बात है। इन कामों को आगे बढ़ाते हुए इसके लिए बाजार तलाशे जाएं तो आजीविका के लिए अपने पारम्परिक हुनर छोड़ने की बात कोई नहीं सोचेगा। और जो ‘अमृत उत्सव’ मनाते भारत को हम देखना चाहते हैं, उसमें हर गांव का अपना कुम्हार, दर्जी, बढ़ई, मोची, जुलाहा सब जिÞंदा रहना चाहिए। लोक देवी-देवताओं के प्रति आस्था बनी रहनी चाहिए। और जीवन के सादेपन से उपजी छांव महसूस होनी चाहिए।

‘गलवा’ नदी पर पुलिया का सपना
पानी का संकट देश की आधी आबादी पर है। पानी का पीने लायक न होना भी गम्भीर समस्या है। देश की नौ हजार ग्राम पंचायतों में अटल भूजल पर काम चल रहा है। इसके लिए नदी-तालाबों की सार-सम्भाल जरूरी है। साथ ही गांव से गांव को जोड़ती नदियों को बांधना भी जरूरी है। रणथंभौर टाइगर सफारी की पहचान वाले राजस्थान के सवाई माधोपुर जिÞले के एक गांव की सरपंच हैं लक्ष्मी।

ग्राम पंचायत पांवडेरा से लक्ष्मी अपने जेठ के कहने पर सरपंच का चुनाव जीतीं थीं। बीए की पढ़ाई कर चुकी लक्ष्मी के सरपंच बनते ही कोरोना आ गया तो दवाई, मास्क और राहत के काम में जुट गर्इं। और इसी बीच जेठ जी भी चल बसे। पति रेलवे में काम करते हैं, इसलिए बाहर रहते हैं। इसलिए सारा काम खुद ही संभालना होता है लक्ष्मी को। घर और पंचायत, दोनों का। लक्ष्मी कहती हैं कि इलाके का सबसे बड़ा मुद्दा तो पानी ही है। बोरवैल और नल तो यहां हैं और पाइपलाइन बिछाने और टंकियों के काम सही रफ़्तार से चल रहे हैं। जनता जल की योजना पर भी काम हो रहा है। जल-समितियां बनी हैं और गांव की औरतें आती हैं, बोलती हैं और ये चाहती हैं कि अच्छा काम हो। लोक देवता तेजाजी की यहां बहुत मान्यता है और खूब लोग आते-जाते हैं यहां दर्शन के लिए। इसलिए इस जगह सबके लिए शौचालय बनवा दिया है।

गांव में महिलाओं के ‘स्वयं सहायता समूह’ हैं लेकिन बहुत सक्रिय नहीं हैं। बस एक समूह दूध की डेयरी चलाता है। जनता के बीच रहने से ये आत्मविश्वास जाग जाता है कि औरतें कोई भी काम कर सकती हैं। पंचायत में सड़कें बहुत अच्छी हैं। लेकिन जो आस-पास के गांव हैं, उन्हें जोड़ने वाली ‘गलवा’ नदी यहां बहती है। और मानसून के दिनों में जब नदी बहाव पर होती है, गांव वालों का आना-जाना दूभर हो जाता है। लक्ष्मी ने इलाके के बड़े नेताओं से गुहार लगाई है। बड़ा सपना है कि एक पुलिया बन जाए ताकि यहां के चार-पांच गांवों के लिए गलवा नदी को पार करने की तकलीफ से छुटकारा मिल जाए।

14 हजार किलोमीटर दौड़
ग्राम पंचायतों में पानी के कामों की देख-रेख के लिए बनी समितियों में 50 प्रतिशत महिलाओं को शामिल करना जरूरी है। पानी की शुद्धता नापने के लिए भी उन्हें दक्ष किया जा रहा है। पानी को दूर-दूर से ढो कर लाने में उसकी काफी मशक़्कत होती है। एक मोटा हिसाब ये है कि पानी की कमी वाले गांवों में महिलाओं का औसतन 3-4 घंटा पानी लाने-ले जाने में, या उसके इंतजाम में बीतता है।

अनुमान ये भी निकला कि गांव की एक औरत साल भर में करीब 14,000 किलोमीटर सिर्फपानी की खातिर दौड़ती है। और इस वक्त की कीमत यानी श्रम का हर्जाना हुआ करीब 1000 करोड़ रुपये सालाना। शहरों में भी पानी भरने के लिए कतार में खड़ी महिलाओं का खासा वक्त खराब होता है, जिसका कोई मोटा हिसाब भी मौजूद नहीं। फिलहाल पंचायतों में बनी जल-समितियों में सिर्फ़ उसकी बात ही नहीं, बल्कि पानी की मुश्किलों के हल भी उसी से सुनने की जरूरत है। अब हर घर नल का सपना पूरा होने के साथ साथ पहली जरूरत है कि कुएं, नदियां, तालाब, टांके, बावड़ियां, गोचर, ओरण यानी सब अपने भराव में रहें। देश की करीब 14 लाख महिला जन-प्रतिनिधियों को जल-आंदोलन से जोड़ना आने वाले दौर की बेहतरी का रास्ता बन सकता है।

Topics:
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

ओटीटी पर पाकिस्तानी सीरीज बैन

OTT पर पाकिस्तानी कंटेंट पर स्ट्राइक, गाने- वेब सीरीज सब बैन

सुहाना ने इस्लाम त्याग हिंदू रीति-रिवाज से की शादी

घर वापसी: मुस्लिम लड़की ने इस्लाम त्याग अपनाया सनातन धर्म, शिवम संग लिए सात फेरे

‘ऑपरेशन सिंदूर से रचा नया इतिहास’ : राजनाथ सिंह ने कहा- भारतीय सेनाओं ने दिया अद्भुत शौर्य और पराक्रम का परिचय

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies