उत्तराखंड में जगह-जगह वन्य भूमि और अन्य स्थलों पर अवैध मजार उगते जा रहे हैं। इन मजारों के आसपास बाहर से आई मुस्लिम आबादी बसती जा रही है। क्या यह प्रदेश मजार जिहाद की चपेट में है
देवभूमि उत्तराखंड में क्या मजार जिहाद का षड्यंत्र रचा जा रहा है? यह सवाल अब चर्चा में है। राजधानी देहरादून के आसपास के जंगलों में एक दर्जन से ज्यादा मजार को चिह्नित किया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार दून घाटी में पिछले कुछ महीनों में, जंगल क्षेत्र में अनेक मजार बन गए हैं। अधिकांश मजार वन विभाग की भूमि पर योजनाबद्ध तरीके से बने हैं।
हिंदू संगठनों ने जताया विरोध
देहरादून और आसपास बढ़ते अवैध मजार पर वीर सावरकर संगठन के प्रमुख कुलदीप स्वेडिया कहते हैं कि एक षड्यंत्र चल रहा है, जिसे भाजपा सरकार को संज्ञान में लेना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि चोर खाला, एलआईसी बिल्डिंग के पास, चौकी धौलास के जंगल में, डिस्पेंसरी रोड केसी कॉन्प्लेक्स के अंदर, चकराता रोड आरजीएम प्लाजा के सामने, एमडीडीए कंपलेक्स घंटाघर, राजीव गांधी कॉम्पलेक्स डिस्पेंसरी रोड, दून हॉस्पिटल जैसे स्थानों पर कैसे दरगाहें-मजार बन गए? इस बारे में हमने डीएम को ज्ञापन देकर जांच-पड़ताल करने का आग्रह किया है। ज्ञापन में मांग की गई है कि प्रशासन और वन विभाग इन अवैध मजार को हटाए अन्यथा हम आंदोलन करेंगे।
जानकारी के मुताबिक चौकी धौलसा के जंगल में एक मजार और दून जंगल में ही कुआंवाला में भी एक मजार बन दिया गया है। रायपुर रिंग रोड पर भी जंगल किनारे मजार बना देने का मामला सुर्खियों में है। जानकारी मिली है कि पौंधा गांव में गुरुकुल मार्ग वाले जंगल में भी मजार बना और यहां दिन-रात दीपक जलाया जा रहा है। हरिद्वार रोड पर लच्छीवाला के जंगल में रोड किनारे मजार बना, दान पात्र की हरी पेटी रख कर मुख्यमार्ग पर चंदा एकत्र किया जा रहा है।
पिछले दिनों कैलाश अस्पताल के पास भी एक मजार बना दिया गया था और इसके आसपास की जमीन पर कब्जा करने वाले संभल के एक युवक की लोगों ने पिटाई कर दी थी। देहरादून में पिछले कुछ महीनों से वन विभाग की भूमि पर अवैध मजार बन रहे थे पर वन विभाग सोया रहा। वन विभाग, जो अपने वन क्षेत्र में किसी आम आदमी को प्रवेश नहीं करने देता, आखिर किसके इशारे पर इन मजारों के बनने पर खामोश रहा? वहीं यह बात भी सामने आई है कि यहां मजारों में झाड़-फूंक करने वाले, खास कपड़ों का लबादा ओढ़े तथाकथित मौलवी बरेलवी संप्रदाय से होते हैं। खबर है कि यहां अवैध मजार बनाने वाले अपने साथ धीरे-धीरे अपने परिवार और रिश्तेदारों को काबिज करने लगे हैं।
वन्य भूमि से हटेंगे अवैध मजहबी ढांचे
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य में मजहबी ढांचों की आड़ में वन्य भूमि पर जहां भी अतिक्रमण किया गया है, उन्हें हटाया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने जिला प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं।
राज्य के मुख्य वन संरक्षक विनोद सिंघल का कहना है कि सभी डीएफओ को अतिक्रमण चिह्नित करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने इस बात का खुलासा किया है कि राज्य में वन विभाग की दस हजार हेक्टेअर वन्य भूमि अतिक्रमण की शिकार है। इमसें ज्यादातर मजहबी ढांचे शामिल हैं। उन्होंने बताया कि वन्य भूमि पर अतिक्रमण के मामले में उत्तराखंड पूरे देश में तीसरे स्थान पर है।
पूरे राज्य में चल रहा षड्यंत्र
राजधानी देहरादून ही नहीं, पूरे उत्तराखंड में ‘मजार जिहाद’ का षड्यंत्र चल रहा है। उधमसिंह नगर जिले में उत्तर प्रदेश से लगे सीमाक्षेत्र में यूपी के रामपुर जिले की तरफ हाल ही में एनएच-74 का निर्माण हुआ। इधर सड़क चौड़ी हुई, उधर बाजपुर, गदरपुर, रुद्रपुर मार्ग पर दर्जनों मजार बन गए। इसी तरह कालाढूंगी से बाजपुर के बीच छह मजार देखने में आए हैं। रामनगर कोसी बैराज के पास भी मजार बन गया है।
मजार बनाने का षड्यंत्र अब मैदानी जिलों से ऊपर, पहाड़ी जिलों में भी शुरू हो गया है। अल्मोड़ा जिले में मनीला के पास बने मजार को लोगों ने तोड़ डाला। पिछले दिनों ही टिहरी बांध के किनारे बने मजार को लेकर विवाद हुआ था जिसके विरुद्ध स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया था।
‘पाञचजन्य’ ने अपने पिछले अंकों में उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजा जी टाइगर रिजर्व, नंधौर वन्यजीव अभयारण्य, रामनगर वन खंड, तराई वन खंड आदि आरक्षित वन क्षेत्रों में अवैध मजार बनाए जाने की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। पर राज्य का वन विभाग इस मुद्दे पर अभी तक खामोश है।
दरअसल असम के बाद, उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी सबसे तेजी से बढ़ी है। जनसंख्या असंतुलन के मुद्दे पर राज्य की भाजपा सरकार भी चिंता में है। सामाजिक संगठन यहां नया भू-कानून बनाए जाने की मांग करते रहे हैं। भाजपा सरकार ने एक समिति बनाकर उस कानून का ड्राफ्ट बनाए जाने की पहल की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार को वन विभाग की सरकारी जमीन पर अवैध मजार को हटाने के लिए भी क्या किसी नए कानून की जरूरत है?
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