महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री पद पर भाजपा के नेता देवेन्द्र फडणवीस ने शपथ ली। गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें पद तथा गोपनीयता की शपथ दिलाई। महाराष्ट्र मे आया सियासी भूचाल अब इस शपथग्रहण समारोह से थम गया।
भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्रीपद के लिए एकनाथ शिंदे का नाम घोषित कर समूचे महाराष्ट्र को अचरज में डाल दिया था। फडणवीस ने शिंदे के मंत्रि परिषद में न रहने की घोषणा की थी। लेकिन बाद में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा है कि फडणवीस उपमुख्यमंत्री के रूप में मंत्रि परिषद में दायित्व स्वीकार करें। आदेश का पालन करते हुए देवेन्द्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
महाविकास आघाडी सरकार जाने से महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव होने की संभावना है। शरद पवार ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एकनाथ शिंदे के पास बहुमत होने से कोई दिक्कत नहीं आएगी । अपने पास बहुमत नहीं है यह जानकर ठाकरे ने ग्रेसफुली इस्तीफा दिया, यह अच्छा हुआ। विधायकों को महाराष्ट्र के बाहर लेकर जाना यह पूर्वनिर्धारित था। देवेन्द्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने इससे मैं चकित नही हूँ। शरद पवार महाविकास आघाडी के शिल्पकार कहे जाते हैं, उन्हे देवेन्द्र फडणवीस ने सियासी दांवपेच में करारी मात दी है।
सरकार बदलने से महाराष्ट्र की राजनीति, विकास और सामाजिक जीवन में मानो करवट ली है। ठाकरे सरकार में जो निर्णय हुए थे उसमे ज्यादातर निर्णय पहले की सरकार के निर्णय रोकने के हेतू से लिए गए। कोरोना को रोकने में सरकार असफल रहीे। किसानों की समस्या में सरकार ने कोई निर्णय नही लिया। पेट्रोल डीजल की कीमते केंद्र सरकार ने कम की लेकिन राज्य सरकार ने अपना टैक्स कम नहीं किया, इससे लोग नाराज चल रहे थे। अब नई सरकार के आने से यह चित्र बदलने की अपेक्षा आम जनता को है।
महाराष्ट्र के सामाजिक समीकरण को देखा जाए तो शरद पवार जिस मराठा समाज के बलबूते पर राजनीति करते आए हैं उस को भाजपा ने अब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर करारा जबाब दिया है। महाराष्ट्र देश में लोकसभा चुनावक्षेत्र की दृष्टि से अब दो नंबर का प्रान्त है। 48 में से 43 सांसद भाजपा सेना गठबंधन ने जीते थे। लेकिन शिवसेना गठबंधन से बाहर होने से उसमें 18 सांसद बाहर चले गए थे। यह बडी क्षती थी। अब आनेवाले लोकसभा चुनाव में फिर से महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को बडी जीत दिलाने के लिए यह सियासी परिवर्तन काम आएगा।
राज्य में कुछ महीने के बाद नगर निगम के चुनाव हैं। मुंबई नगरनिगम का चुनाव अहम है। ऐसा कहा जाता है कि शिवसेना के प्राण मुंबई नगर निगम मे बसते हैं। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी होने से मुंबई नगर निगम का बजट एक राज्य के बजट इतना बडा रहता है। इसलिए शिवसेना मुंबई नगर निगम को अपने कब्जे में रखने के लिए हमेशा एडी -चोटी का जोर लगाती आयी है। लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के बराबर की सीटे हासिल की थी। अब आने वाले चुनाव में मुंबई महानगर निगम को जीतने के लिए भाजपा ने कई महीने से संगठन को सक्रिय किया है।
मुंबई के गैरमराठी मतदाता को लुभाने के लिए भाजपा को भाजपा में लायी। मुंबई के गैरमराठी लोगों के और एक राजनीतिक नेता रघुवंश सिंह को विधानपरिषद में विधायक बनाया। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना सेे ज्यादा विधायक मुंबई में चुने हैं। अब एकनाथ शिंदे का जो गुट भाजपा के साथ आया है उससे मुंबई में शिवसेना की कमर टूट गई है। शिवसेना के जो विधायक शिंदे के साथ हैं उसमें पांच विधायक मुंबई महानगर से हैं। इस नए गठबंधन के कारण मुंबई महानगर निगम पर भाजपा का कब्जा होना तय है।
मुंबई के अलावा ठाणे, नसिक, नवी मुंबई, कल्याण डोंबिवली, नासिक, पुणे, औरंगाबाद, जलगाँव जैसे अन्य नगरनिगम में भी एकनाथ शिंदे के गुट के विधायक साथ आने से भारतीय जनता पार्टी की ताकत कई गुना बढ गयी है। नये समीकरण में नगर निगम के चुनाव में अपेक्षित जीत से भाजपा और शिंदे का मनोबल बढेगा।
ओबीसी के आरक्षण का मुद्दा अभी कुछ दिन पहले से गरमाया है। उच्चतम न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट में ओबीसी का इम्पिरिकल डेटा ठाकरे सरकार द्वारा न्यायालय में दाखिल न करने से आरक्षण को रद्द कर दिया था। शपथग्रहण की घोषणा करते समय फडणवीस ने इसी बात का जिक्र किया और यह डेटा इकठ्ठा कर ओबीसी आरक्षण को न्यायालय की मंजूरी लाने के लिए प्राथमिकता देने की बात कही। अगर इस समस्या का समाधान नई सरकार ने किया तो प्रान्त के ओबीसी में अपने लिए जगह बनाने में सरकार सफल होगी।
बागी विधायकों की नाराजगी विधायकों को मिलनेवाले विकास बजट के आवंटन के बारे में थी। अपने चुनावक्षेत्र में नियोजन के बाहर के विकास के काम कराने के लिए यह विधायकों का विकास बजट का उपयोग किया जाता है। इस बजट का आवंटन समान रूप से किया तो विधायकों की नाराजगी दूर हो सकती है।
राज्य की समस्याओं की नस फडणवीस अच्छी तरह से जानते हैं। इन समस्याओं का समाधान ढूँढने का प्रयास इस सरकार ने किया तो उसका असर आम लोगों के दृष्टिकोण पर पड सकता है।
महाराष्ट्र के सामाजिक समीकरण को देखा जाए तो शरद पवार जिस मराठा समाज के बलबूते पर राजनीति करते आए हैं उस को भाजपा ने अब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर करारा जबाब दिया है। महाराष्ट्र देश में लोकसभा चुनावक्षेत्र की दृष्टि से अब दो नंबर का प्रान्त है। 48 में से 43 सांसद भाजपा सेना गठबंधन ने जीते थे। लेकिन शिवसेना गठबंधन से बाहर होने से उसमें 18 सांसद बाहर चले गए थे। यह बडी क्षती थी। अब आनेवाले लोकसभा चुनाव में फिर से महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को बडी जीत दिलाने के लिए यह सियासी परिवर्तन काम आएगा। महाराष्ट्र की राजनीति में लिया हुआ यह करवट भारतीय जनता पार्टी को लाभान्वित करनेवाला है।
टिप्पणियाँ