सियासी लाभ के लिए राजनीतिक दलों के नेता युवाओं को भड़का रहे हैं। देशभर में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सेना में जाने के इच्छुक युवाओं की जगह राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता ज्यादा दिखे
भारतीय सेना में भर्ती के लिए घोषित अग्निपथ योजना का विरोध स्वत:स्फूर्त न होकर विशुद्ध राजनीतिक षड्यंत्र के रूप में प्रमाणित होता जा रहा है। वास्तविकता के धरातल पर इस योजना के विरोध की घटनाएं विपक्ष के उस मन्तव्य को भी उद्घाटित कर गई हैं जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए देश में अराजकता की परिस्थितियां निर्मित करने से भी पीछे नहीं रहना चाहता। विरोध की पहली चिनगारी बिहार से उठी और अब पुलिस अन्वेषण एवं कार्रवाई में जो तथ्य सामने आए हैं, वे बताते हैं कि यह पूरा हिंसात्मक तांडव राष्ट्रीय जनता दल के इशारों पर हो रहा था। बिहार के अनेक हिस्सों में आरजेडी और माले के कार्यकर्ता पुलिस हिरासत में लिये गए हैं। एडीशनल डीजी संजय कुमार के अनुसार 138 से अधिक एफआईआर में दस प्रतिशत भी प्रतियोगी छात्र नहीं हैं। जाहिर है, यह पूरा आंदोलन नियोजित राजनीतिक बबंडर है।
बेशक सरकार की किसी भी योजना का गुणदोष के आधार पर विरोध किया जा सकता है लेकिन इस पूरे मामले को राष्ट्रीय राजनीति और हितों के दृष्टिगत समझने की भी आवश्यकता है। 14 जून को केंद्र सरकार ने इसे सार्वजनिक किया और अगले ही दिन से बिहार में इसका विरोध आरम्भ हो गया। देश के सैन्य विशेषज्ञों की राय सामने आती, इससे पहले ही राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, तेजस्वी, संजय सिंह जैसे नेताओं ने सार्वजनिक बयानबाजी करते हुए योजना के विरुद्ध युवाओं को भड़काने का काम शुरू कर दिया। राहुल या प्रियंका के किसी भी बयान में योजना की तर्कपूर्ण कमियों का जिक्र नहीं था, उलटे चुनावी राजनीति की तरह उपद्रवियों से सड़कों पर उतरने का आह्वान शामिल रहा।
कांग्रेस का दांव
ईडी की पूछताछ से बच रही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 18 जून को युवाओं के नाम पत्र जारी किया। उन्होंने देश के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘मुझे दुख है कि सरकार ने आपकी आवाज को नजरअंदाज किया और एक नई योजना की घोषणा की जो पूरी तरह से दिशाहीन है।’ प्रियंका ने अपने बयान में कहा कि ‘सरकार ने ऐसी स्कीम दी है जो इस देश के युवाओं को मार डालेगी। ये ऐसी स्कीम है जो सेना को भी खत्म कर देगी। आप सभी इस सरकार की नियति को पहचानिए। सत्य, अहिंसा और लोकतांत्रिक राह पर चलते हुए इस सरकार को खत्म कीजिए।’ राहुल गांधी ने भी अपने बयान में ऐसी ही बात कही और अपने कार्यकर्ताओं से उस भीड़ का हिस्सा बनने की अपील की जो सड़क पर हिंसा और आगजनी में शामिल थी।
इस बयान के निहितार्थ आसानी से समझे जा सकते हैं जो सरकार को खत्म करने की बातें कहता है। नतीजतन देश में हिंसा का दौर शुरू हो गया।
भर्ती उम्मीदवारों की आड़ में राजनीति
स्वयं मिलिट्री स्कूल से पढ़े-लिखे अखिलेश यादव ने योजना पर भड़काऊ बातें कीं। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरों के साथ हिंसा और छात्रों के आत्मदाह की अफवाहें फैलाई। उप्र में बड़ी संख्या में सपा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने आगजनी और हिंसक प्रदर्शन के मामलों में गिरफ्तार किया। पूरे प्रदेश में सुनियोजित तरीके से रेलवे स्टेशनों पर आगजनी की गई। इसके लिए उसी फौज को काम पर लगाया गया जिसने सीएए कानून और कृषि बिल पर हिंसा की थी।
बलिया के बहेरी से 34 साल के मोहम्मद असलम को पुलिस ने ट्रेन में आगजनी करते पकड़ा। असलम तीसरी पास है, उसने भगवा टीशर्ट पहन रखी थी और इस कार्य के लिए उसे एक हजार रुपये दिए गए थे। राजस्थान में आगजनी करने वाले उपद्रवियों में अधिकतर के चेहरे देखकर समझा जा सकता है कि भीड़ सेना में जाने वाले प्रतियोगी छात्रों की बिल्कुल नहीं थी। बंगाल में ममता बनर्जी ने इस योजना को भारत में भाजपा के सशत्र कैडर निर्माण से जोड़ दिया।
यहां तक कि राजस्थान में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने 18 जून को विधानसभा में सर्वसम्मति से अग्निपथ योजना के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया। वहीं, पंजाब में भगवंत मान की आम आदमी पार्टी सरकार ने भी अग्निपथ के खिलाफ 24 जून को विधानसभा में प्रस्ताव लाने की बात कही है। देश में सक्रिय प्रोपेगैंडा पोर्टल और यूट्यूबर पत्रकार भी समानांतर रूप से झूठी बातें प्रचारित कर रहे थे। विदेशी धन शोधन मामलों में आरोपित एक न्यूज चैनल और बेबसाइट्स ने किसान और सीएए आंदोलन की तरह ही सक्रिय रूप से इस मुद्दे को आधार बनाकर रिपोर्टिंग की।
सकारात्मकता के विरोधी
इस बीच सरकार और तमाम उद्योगगपतियों ने अग्निवीर पुनर्वास और सेवायोजन की घोषणाएं कीं लेकिन किसी भी विपक्षी नेता ने इन घोषणाओं का स्वागत नहीं किया। अखिलेश यादव ने तो उल्टे टाटा, महिंद्रा जैसे घरानों की घोषणाओं पर सवाल करते हुए पहले पूर्व सैनिकों को अपने यहां सेवाओं में लेने की बातें की, ताकि माहौल और खराब किया जा सके।
केंद्र और राज्य सरकारों ने अग्निवीरों के लिए बहुत प्रामाणिक घोषणाएं कीं लेकिन प्रायोजित तरीके से ऐसा माहौल खड़ा किया जाता रहा मानो अग्निवीर देश के युवाओं का भविष्य खत्म करने वाली है। ग्रुप कैप्टन एमजे आगस्टीन विनोद वीएसएम (रिटायर) और स्क्वाड्रन लीडर वर्षा कुकरेती ने बाकायदा लेख लिखकर विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। दोनों पूर्व सैन्य अफसरों का कहना है कि ‘निहित स्वार्थों के चलते देश में गलत जानकारी फैलाकर नौजवानों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़काया जा रहा है। कुछ राजनीतिक पार्टियां हैं जो विदेशी फंड की मदद से ये कर रही हैं और बिहार के कुछ कोचिंग केंद्र भी इसमें शामिल हैं जिन्होंने बच्चों को भड़काया है।’
झूठ और अफवाहों की आंधी
इस राय को पुष्टि मिलती है छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इस बयान से कि सरकार पूर्णकालिक भर्ती बंद कर रही है और जो लोग चार साल सेना में रहकर बंदूक चलाना सीखेंगे, वे वापस आकर नक्सली गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। सच यह है कि सरकार या सेना की ओर से कभी यह नहीं कहा गया कि नियमित या स्थापित भर्ती प्रक्रिया को अग्निपथ योजना प्रतिस्थापित करने वाली है। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी नेताओं का पूरा फोकस इस पर है कि कैसे झूठ और अफवाहें फैलाकर युवाओं को अराजकता का हथियार बनाकर सरकार के लिए राजनीतिक मुश्किलें खड़ी की जाएं।
सवाल इस आंदोलन की टाइमिंग और तौर-तरीकों पर भी उठ रहा है क्योंकि इस घोषणा के साथ ही सरकार ने दस लाख केंद्रीय पूल की भर्तियां करने की घोषणा भी की थी जो अगले डेढ़ साल में पूरी होंगी। 2024 से पहले विपक्ष को यह कैसे स्वीकार हो सकता है कि इन भर्तियों का श्रेय सरकार के खाते में जाये। इसलिए यह पूरा बबाल काटा गया है। हिंसा में नामजद हुए लोगों को सेना में पहले से ही जगह नहीं मिलती। ऐसे में राहुल, अखिलेश, ममता, प्रियंका की शह पर अगर कुछ नौजवानों ने सड़कों पर आगजनी की है तो उनका भविष्य तो खराब ही हो चुका है। क्या उकसावे की राजनीति से अराजकता और उपद्रव में उपकरण बने युवाओं के वाकई हितचिंतक कहलाएंगे विपक्षी नेता।
टिप्पणियाँ