तिब्बत में जनसांख्यिक बदलाव करने की चीन की नीति के तहत ही शायद एक नई चाल पर चीन चल रहा है। ताजा समाचार के अनुसार, तिब्बत से कम्युनिस्ट सरकार लगभग 18 हजार तिब्बतियों को विस्थापित करने की तैयारी में है। इसके पीछे दूसरे स्थान पर रहने के बेहतर हालात का हवाला दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं, चीनी अधिकारियों की तरफ से कहा जा रहा है कि ‘इन पहाड़ी जगहों की बजाय दूसरी जगह जीवन भी अच्छे से जिया जा सकेगा और यहां का पर्यावरण भी बचा रहेगा’।
चीन में सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट है कि आने वाले करीब डेढ़ महीने में लगभग 18 हजार लोग समुद्र तल से 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों से करीब 3,600 मीटर ऊंचाई वाले इलाकों में पहुंच जाएंगे। जैसे, 900 मीटर नीचे के स्थान पर बसाने के बाद उनके जीवन स्तर में सुधार आ जाएगा और बेहतर तरीके से रह पाएंगे। विशेषज्ञ इसे तिब्बतियों को उनके मूल स्थान से विस्थापित करने की चीन की चाल का ही एक हिस्सा मान रहे हैं।
पता चला है इस बाबत कम्युनिस्ट प्रशासन ने फैसला ले लिया है। तिब्बती बौद्धों के रहन—सहन के बारे में भलीभांति जानते हुए भी बीजिंग ने पर्यावरण को बचाने के नाम पर एक नई ‘पुनर्वास योजना’ का खाका खींचा गया है। इसी के अंतर्गत लगभग 18 हजार तिब्बतियों को दक्षिण—पश्चिमी सीमा पर नागकू शहर से ले जाकर कहीं दूर बसाए जाने की योजना है।
चीन के एक वरिष्ठ अधिकारी वू वेई का कहना है कि नागकू में लोग मुश्किलों भरा जीवन जीने को मजबूर हैं। यहां का मौसम काफी दुरूह है और जमीन भी दूसरे इलाकों के मुकाबले कम उपजाऊ ही मानी जाती है। यहां पर्यावरण बिगड़ने से घास के मैदान भी बर्बाद होने लगे हैं।
वू विस्थापित किए जाने के इस कार्यक्रम को चीन सरकार की लोगों को ध्यान में रखने की सोच बताते हैं, जिसमें पर्यावरण संरक्षण एवं जीवन बेहतर तरीके से जीने को ध्यान में रखा गया है। पता चला है कि आने वाले 8 साल में लगभग 100 तिब्बती कस्बों से 1,30,000 से ज्यादा लोगों को इस योजना के तहत स्थानांतरित किया जाएगा।
चीन प्रभाव वाले ‘तिब्बत प्रेस’ ने अपनी रिपोर्ट में छापा है कि तिब्बत में नदियां सूख रही हैं, हिमनद पिघल रहे हैं, घास के मैदानों को नुकसान हो रहा है। इन कारणों से तिब्बत का पर्यावरण खराब हो रहा है और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को इसी की चिंता है।
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