कल ही सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों के संबंध में मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने में तीस्ता सीतलवाड़ की भूमिका को लेकर गहन छानबीन करने की बात कही थी और आज उसका असर भी दिख गया। गुजरात एटीएस ने उन्हें मुम्बई में गिरफ्तार कर लिया है। ऐसे तो कई बार तीस्ता की गिरफ्तारी की संभावना बनी थी, लेकिन आज पहली बार उन्हें गिरफ्तार किया गया है। तीस्ता के विरुद्ध अनेक आरोप हैं।
गुजरात सरकार ने जाकिया जाफरी की याचिका पर बहस के दौरान उच्चतम न्यायालय में दावा किया था कि दो दशक से राज्य को बदनाम करने के लिए तीस्ता सीतलवाड़ ने एक बड़ी साजिश ‘‘रची’’ है। वहीं गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत में तर्क दिया था कि सीतलवाड़ पर दंगों के दौरान एक बड़ी साजिश के आरोप सामने आ रहे हैं। बता दें कि जाकिया द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में सीतलवाड़ याचिकाकर्ता नंबर दो थीं। सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता नंबर दो (तीस्ता सीतलवाड़) द्वारा लगभग 20 वर्ष से एक पूरे राज्य को बदनाम करने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई है।
मोदी विरोधी गैंग की आंखों का तारा रही तीस्ता कभी सर्वोच्च न्यायालय से नीचे बात नहीं करती थीं। प्रधानमंत्री कार्यालय की फोन लाइन उनके लिए हमेशा खुली रहती थी। कांग्रेस के कार्यकाल में देश के गृहमंत्री से यूं बात करती थीं, मानो पड़ोसन से बात कर रही हों। अब वह अपना बोया काट रही हैं। शाहीन बाग धरने में मैडम नजर आईं, हमेशा की तरह विवादास्पद बयान भी दिया। गुजरात दंगों की आंच पर रोटी सेंककर तीस्ता ने खूब पैसा बटोरा। वह जिस कोने से चाहती थीं, पैसा आता था। इसलिए कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ठिकाने लगा देने का दावा करती थीं। कांग्रेस, जिहादियों, माओवादियों ने गुजरात दंगे पर मोदी की कानूनी घेराबंदी की सुपारी तीस्ता को ही दे रखी थी। लेकिन तीस्ता अपने बुने जाल में उलझती चली गईं। नवंबर 2010 में बेस्ट बेकरी केस की अहम गवाह जाहिरा शेख पर झूठा बयान देने का दबाव बनाने का आरोप लगा। तीस्ता के खास लेफ्टिनेंट रहे रईस पठान ने ही सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल करके पोल खोल दी। रईस खान पठान ने आरोप लगाया कि गुजरात दंगे के पांच संवेदनशील मामलों में तीस्ता ने सुबूतों के साथ छेड़खानी की और गवाहों के फर्जी बयान तैयार किए। अप्रैल, 2009 में गुजरात दंगे की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सर्वोच्च न्यायालय को अवगत कराया कि तीस्ता ने हिंसा की घटनाओं को फर्जी तरीके से ज्यादा से ज्यादा संगीन बनाने की कोशिश की है। पूर्व सीबीआई निदेशक राघवन की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने कहा कि तीस्ता और अन्य एनजीओ ने हिंसा की मनगढंत घटनाएं रचने के लिए फर्जी और पढ़ाए गए गवाह तैयार किए। तीस्ता की दीदा-दिलेरी देखिए। उन्होंने 22 फर्जी गवाहों की फौज तैयार की। इनसे लगभग एक जैसे हलफनामे अलग-अलग अदालतों में दाखिल कराए। एसआईटी ने पूछताछ की, तो पता चला कि इन गवाहों ने कोई भी ऐसी घटना नहीं देखी। उन्हें तोते की तरह रटाया गया था। पहले से तैयार किए गए हलफनामों पर तीस्ता ने ही उनके हस्ताक्षर कराए थे। तीस्ता और ‘एक्टिविस्ट गैंग’ ने दुनिया भर में गुजरात सरकार की दानवों जैसी छवि बनाने के लिए कौसर बानो मामले को बहुत उछाला था। कांग्रेस, वामपंथी, जिहादी इस मामले को सिर पर उठाए घूमे। तीस्ता का दावा था कि कौसर जहां गर्भवती थी, उसका सामूहिक बलात्कार किया गया। उसका पेट चीरकर भ्रूण निकाल लिया। मामले की निगरानी कर रही सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने माना कि ऐसा कोई मामला हुआ ही नहीं था।
अब इन पापों के कारण ही तीस्ता को जेल की हवा खानी पड़ सकती है।
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