मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े एक मामले की सुनवाई की मांग करने पर उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी की सुविधा के अनुसार सुनवाई नहीं की जा सकती।
गत 23 जून को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े एक मामले पर बार—बार समय मांगने और बार—बार सुनवाई की मांग करने पर झारखंड उच्च न्यायालय ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। मामला है हेमंत सोरेन द्वारा अपने नाम से ही खनन का पट्टा लेने और उनके करीबियों द्वारा मुखौटा कंपनियों में निवेश का। जब सुनवाई शुरू हुई तो हेमंत सोरेन की वकील ने एक बार फिर से समय मांग लिया। मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि उन्हें शपथपत्र दिया जाए ताकि न्यायालय में पक्ष रखा जा सके। इस पर अदालत ने कहा कि यह बात पहले क्यों नहीं बताई गई! जब इसी मामले में मुख्यमंत्री की ओर से न्यायालय में पक्ष रखा गया था, यह तरीका ठीक नहीं है। इसके बाद मुख्यमंत्री की ओर से 11 जुलाई तक सुनवाई स्थगित करने का आग्रह किया गया, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई की तारीख 30 जून को दी है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ रवि रंजन और न्यायमूर्ति एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई प्रतिवादी यानी हेमंत सोरेन की सुविधा के अनुसार नहीं होगी। ऐसा नहीं होगा कि वे जब चाहें तब समय की मांग करें और जब चाहें तब सुनवाई हो। इस तरह की हरकत को अदालत कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री की ओर यह कहा जा रहा है कि उन्हें याचिका और शपथपत्र की प्रति नहीं मिली है, जबकि सरकार की ओर इसी मामले पर पहले भी याचिका की मानसिकता पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। अब सवाल यह उठता है कि जब पहले उनके पास याचिका और शपथपत्र की प्रति नहीं थी तो इसकी मानसिकता पर आपत्ति क्यों और कैसे दर्ज कराई गई थी?
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकार उनके आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दाखिल करती है, तो कभी इस मामले में प्रतिवादी (हेमंत सोरेन) की ओर से एसएलपी दाखिल की जाती है। न्यायालय इस मामले की सुनवाई मार्च से कर रहा है, लेकिन हर समय किसी न किसी बहाने से समय की मांग की जाती है जो सही नहीं है।
प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार सिर्फ सुनवाई को बाधित करने के उद्देश्य से याचिका की प्रति मांगी जा रही है।
सरकारी पैसों के दुरुपयोग को लेकर सीएजी करेगी ऑडिट
यह तो रही राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के बीच की बात। अब आते हैं राज्य की जनता के पैसे के दुरुपयोग करने की बात पर। बता दें कि पाञ्चजन्य में 23 जून को एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें बताया गया था कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने और अपने परिवार के मामलों पर उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए सरकारी खर्चे पर महंगे वकीलों को रख रहे हैं और इसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जा रहा है। इस मामले पर गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने सीएजी गिरीश चंद्र मुर्मू को पत्र लिखकर पूरे मामले की जानकारी दी थी। पत्र में कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खनन पट्टे के अलावा मुख्यमंत्री और उनके भाई के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मुकदमों की पैरवी के लिए सरकारी खर्चे पर महंगे वकील जैसे— कपिल सिब्बल, मुकुल रहतोगी, पल्लवी लंगर और महाधिवक्ता की टीम को रखकर करोड़ों का भुगतान कर रही है। इसे लेकर निशिकांत दुबे ने बताया कि सीएजी झारखंड ने उनके पत्र को संज्ञान में लेते हुए ऑडिट करने का फैसला लिया है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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