तिब्बत में चीन की सख्ती और अत्याचार चरम पर हैं। वहां कुछ ही बचे बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर कम्युनिस्ट राज का कहर बेलगाम बढ़ता जा रहा है। बौद्धों को अपने धर्म के अनुसार जीवन नहीं जीने दिया जा रहा है, उन्हें जबरन गायब कर दिया जाता है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार वहां की संस्कृति को मिटा डालने के अनेक उपक्रम चला रही है। तिब्बत की जनसांख्यिकी लगभग बदली जा चुकी है। हर तरफ हान चीनी ही नजर आने लगे हैं।
इन सब बातों से त्रस्त एक बौद्ध भिक्षु के आत्मदाह करने का समाचार मिलना कष्ट को और बढ़ा रहा है। भारत में धर्मशाला स्थित तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी की रिपोर्ट बताती है कि बौद्ध भिक्षु की मृत्यु तिब्बत की खग्या टाउनशिप में अपने निवास पर एकांतवास के दौरान हुई।
तिब्बत में ऐसी एक यही घटना नहीं है। वहां चीन के अमानवीय अत्याचारों के एक नहीं अनेक हैरान करने वाली घटनाएं सामने आती रही हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के अंतर्गत वहां मूल तिब्बतियों के मानवाधिकार नाम के लिए बचे हैं। पता चला है कि तिब्बती भिक्षु ने निर्वासित तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा की तस्वीर के सामने आत्मदाह किया है। रिपोर्ट के अनुसार, वह गांसु प्रांत में तिब्बती बौद्ध संस्थानों पर चीनी कार्रवाई से बहुत आहत थे।
तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी की रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बत में खग्या टाउनशिप त्सो शहर की ‘प्रीफेक्चुरल कैपिटल’ के अधिकार क्षेत्र में आती है। पता चला है कि वहां कन्ल्हो प्रान्त के गवर्नर और कम्युनिस्ट पार्टी के उप सचिव यांग वू ने मठों पर लगाम कसी है और भिक्षुओं के धार्मिक अनुष्ठानों बेरहमी से कुचला है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि मृतक भिक्षु के परिवार को त्सो शहर ले जाया गया है, जहां उन्हें कोविड-19 की रोकथाम के उपायों के बहाने एक अज्ञात स्थान पर हिरासत में लिया गया था।
तिब्बती मानवाधिकार संगठन ने इस घटना के बाद चीन सरकार की निंदा करते हुए कहा है कि एकांतवास पर जाना एक बौद्ध प्रथा है जो भिक्षुओं के लिए ध्यान केंद्रित करने और बाधा मुक्त साधना करने के लिए आवश्यक है। लेकिन दुखद है कि कोई बौद्ध भिक्षु अपने घर पर एकांत में आध्यात्मिक अनुष्ठान भी नहीं कर सकता है। चीन की सरकार तिब्बतियों के दमन की सारी सीमाएं तोड़ रही है।
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