तालिबान हुकूमत ‘इस्लामी’ अफगानिस्तान में महिलाओं को प्रताड़ित करने के अपने ‘शरियाई फर्ज’ को निभाते हुए उन पर जुल्म किए जा रही है। महिलाओं के साजसिंगार पर रोक लगाने से शुरू हुआ सिलसिला, उनकी पढ़ाई—लिखाई बंद कराने, उनके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाने, उनके सफर करने, रेस्टोरेंट में बैठकर खाने, दफ्तरों में काम करने, मीडिया में काम करने, गैर-पुरुष से बात तक करने पर पाबंदी के साथ ही सिर से पैर तक खुद को मोटे बुर्के में ढके रखने के साथ आज भी जारी है।
ताजा समाचार के अनुसार, कल काबुल में तालिबान ने दीवारों पर पोस्टर चिपकाए हैं, जिन पर लिखा है कि जो महिलाएं हिजाब नहीं पहनेंगी वो ‘जानवर’ बराबर मानी जाएंगी। इतना ही नहीं, शरियाई हुकूमत ने यह भी कह रखा है कि कोई महिला या लड़की चुस्त कपड़े पहने नहीं दिखनी चाहिए। ऐसा किया तो ये तालिबान हुकूमत के सबसे बड़े नेता मुल्ला अखुंदजदा के हुक्म की तौहीन माना जाएगा।
यह कट्टरपंधी इस्लामी संगठन अफगानिस्तान में किस कदर महिलाओं के मौलिक अधिकारों को कुचल रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है। अफगानिस्तान के लोग 1996-2001 के पहले वाले तालिबान राज के दौर को भूले नहीं हैं, जब दुनिया के साथ कदम मिलाने की कोशिश करता देश मध्ययुगीन दौर में लौटा दिया गया था।
क्या कोई सोच सकता है कि 1919 में अफगानिस्तान में जिन महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया गया था उन्हें अब बुर्के में ढककर दोयम दर्जे का बना दिया गया है! 1970 के दशक में वहां महिलाएं एक से एक पश्चिम लिबास पहना करती थीं, बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ा करती थीं, दफ्तरों में बड़े ओहदे संभाला करती थीं। लेकिन आज उनके घर से बाहर कदम निकालने तक पर पाबंदी लगा दी गई है। उनके पैरों में अदृश्य बेड़ियां डाल दी गई हैं। विश्वविद्यालयों में अब जाकर पढ़ने की छूट दी गई है लेकिन उन्हें पढ़ाएंगी महिला शिक्षिका और वो बैठेंगी भी लड़कों से अलग। लड़कियों के स्कूल खोलने की बात तो अब तक टालती ही आ रही है तालिबान हुकूमत।
तालिबान को मीडिया में महिला पत्रकार तो बर्दाश्त ही नहीं हैं। टीवी पर एंकर को भी बुर्के में रहना जरूरी हो गया है। करीब दो महीने पहले जब ये फरमान जारी हुआ था तब कई महिला पत्रकारों को काम से हटा दिया गया था और जो थोड़ी-बहुत बची थीं वो सिर से पैर तक खुद को ढके कैमरे के सामने आने को मजबूर थीं। अपने ही देश में महिलाओं की ऐसी बदहाली पर तो एक एंकर समाचार पढ़ते हुए ही कैमरे के सामने फफक पड़ी थी।
इसी अप्रैल माह में शबनम खान दावरान जब रोजाना की तरह दफ्तर पहुंची तो अपना पहचान पत्र दिखाने के बावजूद अंदर कदम नहीं रख सकी, उसे अंदर जाने नहीं दिया गया। दरवाजे पर हैरान-परेशान शबनम ने देखा कि उसके पुरुष सहयोगियों को पहचान पत्र दिखाकर अंदर जाने दिया जा रहा था। लेकिन शबनम की छुट्टी कर दी गई थी। तालिबान का फरमान।
कभी कैमरे के सामने बेबाकी से समाचार पढ़ने वाले पत्रकार मूसा मोहम्मदी का तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ फोटो यकायक हैरान कर गया। मूसा एक गंदे से फुटपाथ पर परात में खाने की कोई चीज रखे उसे बेचता दिखा। अफगानिस्तान के विभिन्न टीवी चैनलों में एंकर और बतौर रिपोर्टर कई वर्षों तक काम कर चुका मूसा आज बेरोजगार है। उसके पास अपने परिवार को दो वक्त की रोटी खिलाने के लिए आमदनी का अब यही जरिया बचा है।
अफगानिस्तान में ही कभी मशहूर पत्रकार और चैनल एंकर रही फरजाना अयूबी की कहानी भी कुछ कम दर्दभरी नहीं है। सालों तक उन्होंने निजी और सरकारी टीवी चैनल पर कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे, लेकिन एक दिन उन्हें दर-बदर होना पड़ा। देश में तालिबान राज आ गया था जो किसी महिला एंकर को कैमरे के सामने कैसे बर्दाश्त कर सकता है!
फरजाना का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो सड़क किनारे फुटपाथ पर पुराने कपड़े और जूते बेचती दिख रही थी। क्योंकि शरिया राज में अब वो बेरोजगार है। अफगानिस्तान के प्रसिद्ध टोलो न्यूज टीवी चैनल ने रिपोर्ट में बताया कि, ‘फरजाना अयूबी ने कई मीडिया संगठनों के लिए काम किया, लेकिन उन्हें फुटपाथ पर पुराने कपड़े बेचने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि तालिबान महिलाओं को मीडिया उद्योग में काम करने की अनुमति नहीं देता है’।
कट्टर इस्लामी तालिबान की इन हरकतों पर दुनिया भर का ध्यान गया, लोगों ने खूब खरी-खोटी सुनाई, संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं को उनके हक देने, उन्हें पढ़ने देने को कहा, लेकिन तालिबान के कान पर जूं तक न रेंगी। तालिबान बेपरवाह सा आएदिन महिलाओं के अधिकार छीनता हुआ उन्हें नाकारा सा बनाकर ठूंठ जैसा बना देना चाहता है, ‘इस्लामी कायदों’ के नाम पर।
उल्लेखनीय है कि इस बार सत्ता में आने के बाद तालिबान ने वादा किया था कि वह किसी पर कोई सख्ती नहीं करेगा, महिलाओं को राजनीति में शामिल करेगा, उन्हें पढ़ने देगा। लेकिन मध्ययुगीन सोच वाले कठमुल्ले नेता अब भी ऐसे फरमान जारी किए जा रहे हैं, जिससे अफगानिस्तान वाले बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
तो बताइए,’जानवर’ कौन? वो जो इंसान को जानवर से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर करे, या वो जो दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने की बात करे, अपने अधिकारों और इंसान के नाते जीने देने के हक की बात करे!
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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