पाकिस्तान के सिंध इलाके में वंचित वर्ग के हिन्दू समुदाय में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ती रहीं। हैरानी की बात यह कि यह प्रवृत्ति बच्चों में भी देखी जा रही है। इसका कारण आर्थिक दुर्दशा के साथ ही वहां अब तक विद्यमान इस्लामी, सामंती प्रवृत्तियां हैं। अनुसूचित जाति के लोग इसमें अपने समाज के विरुद्ध षड्यंत्र भी देख रहे
- बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाला पाकिस्तान के सिंध प्रांत का एक हिंदू बालक भीरूमल कोल्ही एक दिन घर से निकला और अचानक गायब हो गया। परिजनों ने दो दिन तक उसकी खूब तलाश की, पर वह नहीं मिला। तीसरे दिन उसकी लाश अर्धनग्नावस्था में कुनरी रोड पर पेड़ से लटकी लावारिस पाई गई।
- एक 15 वर्षीया हिंदू बालिका भीमी कोल्ही का शव नंगरपारकर में पेड़ से लटका मिला।
- 12 साल की वाख्तू कोल्ही ने घर पर फांसी का फंदा डालकर मौत को गले लगा लिया।
- सोलह वर्षीय सूरज मेघवार का भी यही हाल हुआ। समरो, उमरकोट में अपने समुदाय के अन्य लड़कों के साथ वह भी हंसता-खेलता, पढ़ता था। मगर 8 मई, 2022 को उसे एक पेड़ की शाखा से झूलता पाया गया। उसके गांव के लोग हैरान और दुखी हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसे असमय मौत देखनी पड़ गई। सूरज मेघवार को जब तालुका अस्पताल ले जाया गया, तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। उसके अंतिम संस्कार के बाद भी उसके परिजन उसकी आत्महत्या के कारणों को समझने की कोशिश में लगे हैं।
अनुसूचित जातियों के खिलाफ साजिश का सच
पाकिस्तान की अनुसूचित जातियों के खिलाफ चल रहे षड्यंत्र की ओर इशारा करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील कहते हैं कि अनुसूचित जातियां पहले से ही हाशिए पर पड़े हिंदू समुदाय का एक अत्यधिक हाशिए पर रहने वाला वर्ग है। इस वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
वे कहते हैं,‘‘ये आत्महत्या के मामले बहुत सारे जिलों और क्षेत्रों से सामने आ रहे हैं, पर हर क्षेत्र के अपने मुद्दे हैं।’’ वह बताते हैं कि इनमें सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट हो सकती है, पर इसी बहाने हमें बर्बाद करने की भी साजिश चल रही है। सिंध में अभी भी सामंती व्यवस्था मौजूद है। हमने अंग्रेजों से तो आजादी पा ली, लेकिन इनके अत्याचारों से अब तक मुक्ति नहीं मिली है। सच तो यह है कि हम अभी भी इस तरह के अत्याचारों के तहत जीने को मजबूर हैं।’’ भील का कहना है कि स्थानीय वडेरों के अधीन काम करने वाले हरि या किसान को उनका उचित मुआवजा नहीं दिया जाता। वे बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते हैं। यहां तक कि अक्सर उन्हें पकड़ कर निजी जेलों के अंधेरे और यातना भरे कमरों में डाल दिया जाता है।
पाकिस्तान में आज तक कोई भूमि आंदोलन नहीं चला है। सिंध में ‘‘वडेरा शाही’ चलती है।’’ वह कहते हैं, ‘‘इस प्रांत में बेरोजगारी दर सर्वाधिक है। हमें हमारे मौलिक अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं। सिंध के लोगों को साफ पानी भी मयस्सर नहीं। इस प्रांत के लोगों को प्रत्येक वर्ष अकाल के कारण भुखमरी झेलनी पड़ती है। हमारी महिलाएं और बच्चे बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं। अगर राज्य कुछ देता है, तो सामंतों को इससे लाभ होता है। फिर वे हमारा शोषण- दमन करते हैं।’’भील ने यह भी शिकायत की कि जनरल मुशर्रफ के संयुक्त वोट लाने से पहले वे अपने प्रतिनिधियों को नामित करने में सक्षम थे। उनका कहना है कि यह एक बेहतर सौदा था। आज नेशनल असेंबली में ऐसा कोई प्रतिनिधि नहीं है जो अनुसूचित जातियों के हितों के लिए बोल सके।
वंचित वर्ग के हिन्दू हैं निराश
बच्चों की आत्महत्या ने पाकिस्तान की अनुसूचित जातियों में निराशा भर दी है। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उनका समुदाय किसी भयानक षड्यंत्र के निशाने पर है या उनके लिए स्थिति इतनी विकट कर दी गई है कि जीवन जीने के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं और उन्हें आत्महत्या के सिवाय और कुछ नहीं सूझ रहा। सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं और ईसाइयों की आवाज बुलंद करने वाले दो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘वॉयस आॅफ पाकिस्तान माइनॉरिटी’ और ‘द सिंध नरेटिव’ का अवलोकन करने से पता चलता है कि कम उम्र हिंदू, ईसाई लड़कियों का अपहरण, बलात्कार एवं कन्वर्जन के अभियान के बाद अब साजिशकर्ताओं के निशाने पर हिंदू बच्चे हैं।
आत्महत्या की घटनाओं पर काम करने वाली वेबसाइट वॉयसपीके डॉट नेट की एक रिपोर्ट ‘सुसाइडल सिंध: व्हाई आर सो मेनी फ्रॉम शेड्यूल कास्ट किलिंग देमसेल्व्स’ में बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों से सिंध में आत्महत्या के प्रयासों और मौतों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। यह संख्या बताती है कि आत्महत्या की सर्वाधिक घटनाएं पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हिंदू समुदाय, वह भी अनुसूचित जातीय समुदाय में हो रही हैं। पड़ोसी पाकिस्तान में हिंदू समुदाय की यह जाति सामाजिक-आर्थिक मामले में सबसे निम्न स्तर पर है। बहुसंख्यक मुसलमानों ने इन्हें ‘अछूत’ करार देकर हाशिए पर धकेल रखा है।
आत्महत्या का आर्थिक संकट से संबंध
आत्महत्या किसी के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं है। बार-बार होने वाली ऐसे घटनाओं से समाज और परिवार का मनोबल टूटता है। इसलिए कोई नहीं चाहता कि उसके परिवार या समाज में ऐसी घटनाएं दोहराई जाएं। पाकिस्तान के अनुसूचित जाति समुदाय के कुछ सदस्यों का दावा है कि खुदकुशी के लिए उनके खिलाफ चल रहे षड्यंत्र के साथ सिंध प्रांत की अत्यंत संकटपूर्ण आर्थिक स्थिति भी लोगों को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से मजबूर कर रही है। पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का सर्वाधिक दुष्प्रभाव सिंध प्रांत में देखा जाता है। हालांकि यहां यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि छोटे बच्चों को आर्थिक संकट किस हद तक परेशान कर रहा है कि वे खुद को समाप्त करने के लिए विवश हो रहे हैं?
आंकड़ों में खुदकुशी
सिंध पुलिस द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जनवरी, 2014 से 30 जून, 2019 के बीच 681 मुसलमानों और 606 हिंदुओं ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। मगर इसके बाद हिंदुओं की अनुसूचित जातियों में यह प्रवृति अन्य मतावलंबियों से ज्यादा देखी जा रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान की अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील के अनुसार, इस अवधि के दौरान केवल अनुसूचित जातियों के बीच आत्महत्या के लगभग 590 मामले दर्ज किए गए।
भील का कहना है कि उन्होंने 14 फरवरी, 2022 को शोएब सुदले आयोग को एक आवेदन भेजा था। आयोग को मूल रूप से पाकिस्तान के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश तसद्दुक हुसैन जिलानी के 2014 के फैसले के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित किया गया था। इस फैसले का उद्देश्य देश में रहने वाले सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना था और यह सितंबर 2013 में पेशावर चर्च विस्फोट के बाद आया था। सरवन भील का कहना है कि उन्होंने 11 नवंबर, 2021 को एक मामले की सुनवाई के दौरान भी यही मुद्दा उठाया था। इसके बाद, सीजेपी, जो पीठ का नेतृत्व कर रहे थे, ने एक आदेश दिया। आदेश में कहा गया था,‘जैसा कि मामला अल्पसंख्यकों से संबंधित है, पाकिस्तान के अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल, सिंध के महाधिवक्ता और इस अदालत द्वारा नियुक्त वन मैन कमीशन क्रमश: उठाई गई शिकायत के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे और उचित सुझाव देंगे कि अनुसूचित जातियों की मांगों
और समस्याओं का सौहार्दपूर्ण ढंग से समाधान कैसे किया जा सकता है।’
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरवन भील की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद, उसने अनुसूचित जाति के सदस्यों के बीच आत्महत्या के मामलों की जिलेवार डेटा रिपोर्ट का आदेश दिया। मुख्य सचिव सिंध और आईजी सिंध ने रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि 2015 से 2021 तक 300 पुरुषों और 290 महिलाओं ने आत्महत्या की है। आत्महत्या से मरने वालों की कुल संख्या 590 है। जिला उमरकोट में, विभिन्न कारणों से 109 पुरुषों और 77 महिलाओं ने आत्महत्या की। मीठी जिले में 51 पुरुष और 70 महिलाए, मीरपुरखास जिले में 26 पुरुष और 36 महिलाएं, बदीन जिले में 15 पुरुष और 22 महिलाएं, जिला टंडो अल्लाह यार में 20 पुरुष और 15 महिलाएं,जिला मटियारी में 9 पुरुष और 12 महिलाएं और जिला हैदराबाद में तीन पुरुषों और चार महिलाओं ने खुद को समाप्त कर लिया। अस्पतालों में लाए गए मामलों को छोड़कर आत्महत्या के प्रयासों की संख्या अभी भी ज्ञात नहीं है।
स्थानीय समुदाय खुले तौर पर सरकार की कमजोर और अदूरदर्शी सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों को इसके लिए दोषी ठहराता है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों को इस कदर परेशानी आ रही है कि वे जीवन लीला समाप्त करने को मजबूर हैं।
सरवन भील कहते हैं, ‘‘दुख की बात है कि जो लोग लोकतंत्र की बात करते हैं, उन्होंने इस बात पर ध्यान देने के लिए कुछ नहीं किया। हम किस दौर से गुजर रहे हैं, कोई हमारी आर्थिक बदहाली पर विचार करने को तैयार नहीं है।’’
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