उइगर दमन के विरुद्ध मैदान में उतरे इस्लामी विद्वान, इस्तांबुल में हुआ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
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उइगर दमन के विरुद्ध मैदान में उतरे इस्लामी विद्वान, इस्तांबुल में हुआ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

इस्तांबुल में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस्लामी स्कॉलर्स के एकत्र होने का मकसद था उइगरों के प्रति एकजुटता दिखाना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करना

by WEB DESK
Jun 16, 2022, 04:55 pm IST
in विश्व
इस्तांबुल में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एकत्र इस्लामी स्कॉलर्स

इस्तांबुल में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एकत्र इस्लामी स्कॉलर्स

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चीन के सिंक्यांग प्रांत में उइगरों को प्रताड़ित करने की पुष्टि एक नहीं अनेक बार हो चुकी है। इसके दस्तावेजी सबूत भी सामने आते रहे हैं। वहां यातना केन्द्र चल रहे हैं जहां हजारों उइगरों को कैद करके रखा गया है। महिलाओं और बच्चों को कई तरह की यातनाएं दी जाती हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारी प्रमुख खुद सिंक्यांग जाकर इस संबंध में विस्तृत मुआयना करके आई हैं।

चीन को आज अपने यहां उइगरों व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान मिटाने की कोशिश में लगे देश के नाते जाना जाता है। उइगरों के इस दमन पर पाकिस्तान समेत दुनिया के मुस्लिम देश भले ही चीन की ताकत को देखते हुए मुंह सिले बैठे हों, लेकिन उइगरों के लिए काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर उइगर स्टडीज यह प्रयास करती आ रही है कि सिंक्यांग में पहचान रहित जीवन जीते हुए यातनाएं झेलने को मजबूर उइगरों की आवाज दुनिया भर में गूंज सके।

इसी प्रयास की एक कड़ी के तौर पर इस्तांबुल में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस्लामी स्कॉलर्स इकट्ठे हुए। सप्ताह के शुरू में हुए इस सम्मेलन का मकसद था उइगरों के प्रति एकजुटता दिखाना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करना।

सिंगापुर पोस्ट के अनुसार, चीन आज भी सिंक्यांग में उइगर अल्पसंख्यकों तथा तिब्बत में तिब्बतियों की सांस्कृतिक और मजहबी पहचान को खत्म कर देने में जुटा है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सिंक्याग में उइगरों के दमन के संदर्भ में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के चेहरे पर पुती कालिख किसी से छिपी नहीं है। वहां यातना केन्द्रों से भागने की कोशिश करने वालों को गोली तक मार दी जाती है। उइगरों की आबादी न बढ़े, इसके लिए महिलाओं की नसबंदी की जाती है और बच्चों को परिवार से अलग करके चीनी तौर—तरीके सिखाए जाते हैं। यह सब नरसंहार जैसा ही है।

यही हाल तिब्बत का भी है। 1950 के दशक में वहां अवैध कब्जा करने के बाद से चीन ने वहां की खास पहचान और संस्कृति को मिटा देने की नीति अपनाई हुई है। चीन अब इन दोनों प्रांतों में मंदारिन भाषा थोप चुका है।

इस्तांबुल में इस्लामी स्कॉलर्स ने ऐसे ही कुछ बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की। इसके लिए दुनियाभर से इस्लामी बुद्धिजीवी तुर्की पहुंचे थे। सेंटर फॉर उइगर स्टडीज ने ट्वीट करके बताया कि इन इस्लामी बुद्धिजीवियों का मकसद है सिंक्यांग के अल्पसंख्यकों के प्रति समर्थन जुटाना है। उइगर मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्क नस्लीय समूह है।

Topics: uighurislamicconferenceistanbulturkyxinxiangChina
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