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असहिष्णुता बहाना, हिंदुत्व और भारत निशाना

हिंदुओं का ‘धर्म’ इस रिलीजन से अलग और ज्यादा व्यापक है

by हितेश शंकर
Jun 9, 2022, 03:50 pm IST
in भारत, सम्पादकीय
राहुल गांधी

राहुल गांधी

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हिंदुओं का ‘धर्म’ इस रिलीजन से अलग और ज्यादा व्यापक है। यह केवल एकाग्रता और सतर्कता से करने की बात नहीं, बल्कि ‘धारण’ करने और तद्नुसार आचरण करने की बात है। सबके बीच समन्वय के लिए खुद को ठीक रखने की पहली शर्त के साथ सद्गुणों को आचरण में उतारना ही हिन्दू धर्म है

स्वतंत्रता का 75वां वर्ष। उपलब्धियों का उत्साह है तो विभाजन की टीस भी। भारत के भले की बात करते हुए, परिवार और अपनी राजनीति का भला करने के लिए, देश से छल करने वालों का इतिहास भी है और सेकुलरवाद की आड़ में देश की समरसता को समाप्त करने का षड्यंत्र भी।

आज लगातार ऐसा प्रचार किया जा रहा है और आरोप लगाए जा रहे हैं कि भारत में हिन्दू उग्र, असहिष्णु हो रहे हैं। मुसलमानों के प्रति उनका व्यवहार ठीक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हमारे कथित बुद्धिजीवी, झंडाबरदार यह बात बार-बार उठाते रहते हैं।
क्या वास्तव में ऐसा है? जी नहीं! तस्वीर उलट है और कुछ लोग जान-बूझकर लगातार देश की छवि, देश का आंतरिक वातावरण बिगाड़ने के खेल में लगे हैं।

दरअसल यह खेल मीडिया और अकादमिक जगत के माध्यम से खेला जा रहा है।
उदाहरण देखिए! भाजपा की एक प्रवक्ता और उनके परिवार को बलात्कार, जान से मारने की धमकी दी गई क्योंकि उन्होंने वह बात दोहराने की जुर्रत की थी जो इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाईक कहते रहे हैं। इसके बरअक्स एक मुस्लिम नेता ज्ञानवापी के मामले में कहता है ‘अगर शिवलिंग का पता होता तो हम उसे पहले ही तोड़ देते।’

… न सिर्फ आस्था पर प्रहार, बल्कि आस्था को नेस्तनाबूद करने की बात! विडंबना यह कि एक तरफ उल्लेख मात्र पर बलात्कार और हत्या की धमकी है, दूसरी तरफ सीधे मर्मान्तक प्रहार पर भी कोई हलचल नहीं।

एक अन्य उदाहरण देखिए! दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रतनलाल ने सोशल मीडिया पर ज्ञापवापी प्रकरण में शिवलिंग पर अश्लील और अपमानजनक पोस्ट किया। संक्षिप्त गिरफ्तारी के बाद उन्हें जमानत मिल गई किंतु इसके बरअक्स मराठी अभिनेत्री केतकी चितले का मामला है जिन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया जिसमें ‘80 वर्ष’ और ‘पवार’ शब्द थे। महाराष्ट्र सरकार ने इसे महाअघाड़ी में शामिल राकांपा के सुप्रीमो शरद पवार से जोड़ा और अभिनेत्री को गिरफ्तार कर लिया गया। केतकी तीन हफ्ते से जेल में हैं।

यह दर्शाता है कि आज भी देश में एक असहिष्णु बिग्रेड है जो देश की छवि  बिगाड़ने और आस्थाओं पर हमला बोलने में जुटी हुई है और उसके पास अपना एक सशक्त दबाव तंत्र भी है।

क्या कर रहे सेकुलरवादी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी लंदन में बयान देते हैं कि ‘भारत एक राष्ट्र नहीं, बल्कि राज्यों का संघ’ है। कांग्रेस की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का माहौल और छवि खराब करने का काम हो रहा है, लोगों को भड़काने वाले बयान दिए जा रहे हैं। याद कीजिए नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ रामलीला मैदान में सोनिया गांधी ने कहा था-आर-पार की लड़ाई। इस आर-पार की लड़ाई का क्या मतलब था? वे क्या करना चाहती थीं, किसकी लाशें गिराना चाहती थीं? ध्यान रहे, इसी के बाद शाहीन बाग धरना और फिर दिल्ली दंगा हुआ।

मुंबई के आजाद मैदान में जब राष्ट्रीय प्रतीकों को तोड़ा गया, रौंदा गया तो उनके साथ कौन खड़ा था? कोरोना में पूरी मानवता संकट में थी, उस समय कौन थूक रहे थे, गंदगी फैला रहे थे? अयोध्या में या बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में कौन सबूत मांग रहा था और ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने के बाद कौन हिन्दू प्रतीकों पर टिप्पणियां कर रहा था?
दरअसल भारत में राजनीति के जरिए सांप्रदायिक मॉडल को पोसने वाले कम नहीं हैं। साथ ही इसके शिकार होकर आक्रोश से भरे बैठे लोग भी कम नहीं हैं।

समाजवाद और प्रगतिशीलता की आड़ में सांप्रदायिकता बनाम सेकुलरवाद का जो राजनीतिक विमर्श पैदा करने की कोशिश की गई है, उसने अंतत: सामाजिक दरारों को गहरा ही किया है और लोगों का गुस्सा भड़काया है।

राजनीति की नीयत पर प्रश्न
अनमास्किंग इंडियन सेकुलरिज्म : व्हाई वी नीड ‘न्यू हिंदू-मुस्लिम डील’ के लेखक हसन सुरूर ने हाल में इस पर अपनी राय रखी है। उन्होंने टाइम्स आफ इंडिया में एक लेख लिखा कि भारतीय समाज को अब वास्तविकता का सामना करना होगा। कुछ लोगों को इस पर आश्चर्य हो सकता है किंतु भारत में हिन्दू धर्म को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने की बात इस लेख में उन्होंने कही है। इसके लिए उन्होंने ब्रिटेन का उदाहरण सामने रखा कि ब्रिटेन ईसाई देश है पर धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। एक ब्रिटिश नागरिक के तौर पर वो देख रहे हैं कि यह प्रभावी रहा है और इसने काम भी किया है।

उन्होंने कहा कि सामाजिक आक्रोश से हिन्दू-मुस्लिम संबंध बहुत निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। उकसावे की हर गतिविधि स्वीकार हो रही है। भारतीय सेकुलरवाद को उन्होंने एक विशिष्ट मामला बताया जिसकी मंशा अच्छी थी लेकिन गलत आचरणों से यह सोच पटरी से उतर गई।

प्रसिद्ध दार्शनिक सेनेका का उदाहरण दिया जिनके मुताबिक ‘रिलीजन’ का मतलब है बार-बार पढ़ना। कॉनराड ने कहा यदि इसी प्रकार की व्याख्या हिंदू धर्म के लिए करें तो कहा जाता है- ‘ध्यान से’ या अंग्रेजी में कहा जाता है ‘यू डू इट रिलीजियसली’। जापान में भी एक पद्धति है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘पूरे ध्यान के साथ’ काम किया जाए यानी जो चीज बहुत ध्यान से, गौर से और पूरी एकाग्रता के साथ की जाए, वह रिलीजन है।

मंशा का अर्थ हमें यह लेना चाहिए कि शब्दों का मुलम्मा बहुत अच्छा चढ़ाया गया है। मगर राजनीति की नीयत कुछ और खेल करने की थी। भारत का जो सहज समन्वयकारी सामाजिक ढांचा था, उसको ध्वस्त करके राजनीतिक बिरादरी खड़ा करने की नीयत के चलते यह गड़बड़ पैदा हुई है।

उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू-मुस्लिम संबंधों को सेकुलरवाद के साथ मिलाना गलती थी। यह धारणा बनाना भी गलती थी कि संवैधानिक तौर पर सेकुलर राष्ट्र में ही अल्पसंख्यक सुरक्षित रह सकते हैं। उन्होंने भारत के व्यापक हितों के लिए हिंदुओं की शिकायतों के समाधान पर जोर देने के लिए कहा।

हसन सरूर की इस बात से बेल्जियम निवासी कॉनराड एल्स्ट से हुई एक चर्चा याद आती है। कॉनराड प्राच्यतावादी और भारतविद् हैं। विभिन्न आस्थाओं और पंथों का तुलनात्मक अध्ययन करने वाले कॉनराड हिंदू-मुस्लिम संबंधों और भारतीय इतिहास के जानकार हैं। वर्ष 2018 में जब वे भारत आए तो भेंट के दौरान मैंने ‘हिंदुत्व’ पर उनकी राय जाननी चाही। उन्होंने धर्म और रिलीजन का बारीक अंतर सामने रखते हुए रोम के प्रसिद्ध दार्शनिक सेनेका का उदाहरण दिया जिनके मुताबिक ‘रिलीजन’ का मतलब है बार-बार पढ़ना। कॉनराड ने कहा यदि इसी प्रकार की व्याख्या हिंदू धर्म के लिए करें तो कहा जाता है- ‘ध्यान से’ या अंग्रेजी में कहा जाता है ‘यू डू इट रिलीजियसली’। जापान में भी एक पद्धति है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘पूरे ध्यान के साथ’ काम किया जाए यानी जो चीज बहुत ध्यान से, गौर से और पूरी एकाग्रता के साथ की जाए, वह रिलीजन है।

सर्वसमन्वयकारी सोच
हिंदुओं का ‘धर्म’ इस रिलीजन से अलग और ज्यादा व्यापक है। यह केवल एकाग्रता और सतर्कता से करने की बात नहीं, बल्कि ‘धारण’ करने और तद्नुसार आचरण करने की बात है। सबके बीच समन्वय के लिए खुद को ठीक रखने की पहली शर्त के साथ सद्गुणों को आचरण में उतारना ही हिन्दू धर्म है। और यही सर्वसमन्वयकारी सोच इसे आज के वातावरण में तुलनात्मक रूप से अधिकाधिक प्रासंगिक और स्वीकार्य बना रही है।

भारत विश्व के लिए, संपूर्ण मानवता के लिए वैश्विक विकल्प प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है। मगर इसे अंतर्द्वंद्वों में उलझा कर कुछ लोग शायद यह चाहते हैं कि इसी तरह खेल चलता रहे। वरना आज महिला अधिकार, वंचितों के अधिकार, पर्यावरण की समस्या, इन सबका समाधान करने वाली जैसी दृष्टि हिन्दुत्व के पास है, अन्य किसी जीवनशैली के पास वो समाधानकारक दृष्टि नहीं है। सिर्फ उपभोग करना और स्वयं को केन्द्र में रखना, ये अन्यों के लिए है और स्वयं के साथ अन्यों के लिए गुंजाइश पैदा करना और समन्वय स्थापित करना, आचरण में उतारना, ये हमारी दृष्टि है।

बहरहाल, ब्रिटेन में बैठे  हसन सरूर  और  बेल्जियम  में रह रहे  कॉनराड एल्स्ट  को भारत और हिंदुत्व की सही तस्वीर दिखती है  मगर  सेकुलरिज्म की आड़ में हिन्दू और भारतीयता का शिकार करने निकली टोलियां तंत्र पर दबाव बनाने और समाज में आग लगाने को घात में हैं।
जरूरत इन प्रगतिशील शिकारियों से सतर्क रहने की है।

@hiteshshankar

Topics: हिन्दू-मुस्लिम संबंधव्हाई वी नीड ‘न्यू हिंदू-मुस्लिम डील’हसन सुरूरWhy We Need 'New Hindu-Muslim Deal' author Hassan Suroorहिंदुओं का ‘धर्म’
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