हाल के कुछेक राजनीतिक घटनाक्रमों को देखें तो भारत और खाड़ी देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते दिखे हैं। खाड़ी देशों से हमारे संबंधों का मुख्य आधार ऊर्जा विनिमय, प्रवासी आबादी तथा उनके द्वारा प्रेषित विदेशी मुद्रा है। इसके अतिरिक्त भारत की बड़ी मुस्लिम आबादी भी इन देशों के साथ मजबूत संबंध का एक महत्वपूर्ण कारक रही है। पाकिस्तान के साथ अपने पारंपरिक सौहार्दपूर्ण संबंधों के बाद भी पाक पोषित आतंकवाद के मसले पर भी भारत का मुखरता से समर्थन करते हैं। 2019 में पुलवामा हमले के 4 दिन बाद ही सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भारत यात्रा पर आये थे और उन्होंने आतंकवाद पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बयान साझा किया था। इस घटना के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक हलचल मच गई थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन के चलते 2014 में जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में रेजोल्यूशन ड्राफ्ट प्रस्तुत किया तो संयुक्त राष्ट्र के 177 देश इस प्रस्ताव के समर्थन में आये, जिसमें खाड़ी देश भी थे। अबू धाबी में हिन्दी भाषा अदालतों में इस्तेमाल होने वाली तीसरी आधिकारिक भाषा है। संयुक्त अरब अमीरात जहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सर्वोच्च सम्मान ‘आर्डर ऑफ जायेद’ प्रदान करता है वहीं दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आईओसी के विदेश मंत्रियों की परिषद के 46वें सत्र के उद्घाटन सत्र में ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के तौर पर हिस्सा लेती हैं।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रतिदिन कुल 5 मिलियन बैरल तेल की आवश्यकता होती है। तेल के मामले में भारत की खाड़ी देशों पर निर्भरता कम हुई है किन्तु वर्तमान में भी भारत की दैनिक आवश्यकता का 60 प्रतिशत भाग आज भी खाड़ी देशों से आता है। केंद्र सरकार ने 2020-21 में पेट्रोलियम सब्सिडी पर 37,878 करोड़ रुपए खर्च किए थे। अर्थात यदि खाड़ी देश भारत की आवश्यक तेल आपूर्ति को बाधित कर दें तो तेल के भाव आसामन छूने लगेंगे और सरकार द्वारा प्रदत्त सब्सिडी पर रोक लग जायेगी। अर्थव्यवस्था से इतर यह भारत की सामरिक तथा सुरक्षा की दृष्टि से भी उचित नहीं होगा।
एक करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीय कामगार खाड़ी देशों में व्यापार, नौकरी व् अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं जो दोनों ओर के संबंधों के कारण अत्यधिक प्रभावित होते हैं। कई बड़े व्यावसायिक घराने खाड़ी देशों में व्यापार कर रहे हैं जो न मात्र उनके आर्थिक हितों की पूर्ति करता है वरन भारत सरकार के आर्थिक हितों को भी पुष्ट करता है। सऊदी अरब से लेकर संयुक्त अरब अमीरात के कई बड़े मॉल में भारतीय ब्रांड की वस्तुओं की माँग है जिसकी आपूर्ति से भारत के आर्थिक हित सधते हैं। इसके इतर, एक रिपोर्ट के आधार पर 2019-20 में खाड़ी देशों में रहने वाले लोगों ने 6.38 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा भारत में भेजा था। इनमें से 53 प्रतिशत धन मात्र 5 खाड़ी देशों- संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, कुवैत और ओमान से भारत आया था। भारत में इस धन का सबसे अधिक 59 प्रतिशत भाग तीन राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल में आता है।
खाड़ी क्षेत्र विषम राजनीतिक व सैन्य अस्थिरताओं के षड्यंत्रों का शिकार रहा है। अतः तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था व स्वीकार्य भारत के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध इन देशों के लिए भी समय की आवश्यकता है। आइएस और अलकायदा ने भारत की जितनी हानि की है उतनी ही खाड़ी देशों की भी की है। ये सभी आतंकवाद से प्रभावित और पीड़ित रहे हैं। आतंकवाद के वर्तमान शहरी स्वरूप से बचने के लिये खाड़ी देश भारत से सहायता प्राप्त कर सकते हैं। साझा युद्धाभ्यास भी दोनों पक्षों के नजदीक आने का अवसर हो सकते हैं। खाड़ी देशों में भारतीय टेक्नोलॉजी, निर्माण, होटल और फाइनेंस से जुड़ी कंपनियां सक्रिय हैं जो उनके आर्थिक हितों को प्रभावित करती हैं। चीन में इस्लाम को लेकर जो कटुता है उसके प्रतिउत्तर में खाड़ी देश भारत की ओर आशा से देखते हैं।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ ही विश्व की मजबूत उभरती हुई अर्थव्यवस्था भी है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक छवि को बल मिला है। कोई भी राष्ट्र; जिसे जिओ पॉलिटिक्स की समझ है; भारत को अनदेखा नहीं कर सकता। एक मजबूत उभरता हुआ भारत खाड़ी देशों की आवश्यकता है ताकि वे पश्चिम और चीन के मध्य भारत की कूटनीति का लाभ ले सकें।
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