पारिवारिक रिश्तों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। 7 जून को एक महिला की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई करने के बाद न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि हमारे देश में भाई—बहन का संबंध भले ही एक—दूसरे पर वित्तीय निर्भरता का नहीं हो, लेकिन यह आशा की जाती है कि एक भाई या बहन आवश्यकता के समय एक—दूसरे को अकेला नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि संबंध में एक—दूसरे के प्रति देखभाल की गहरी भावना होती है।
उल्लेखनीय है कि एक महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इसमें उसने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। पारिवारिक न्यायालय ने उस महिला के पति को अपनी तलाकशुदा बहन को भरण—पोषण के लिए 6,000 रु देने को कहा था। इसी निर्णय के विरुद्ध वह महिला उच्च न्यायालय पहुंची थी। उसका कहना था कि एक भाई अपनी बहन के भरण—पोषण का ख्याल क्यों रखे! इसके साथ ही उसने न्यायालय से निवेदन किया था कि वह पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दे।
इस पर उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि भले ही तलाकशुदा बहन कानूनी और नैतिक रूप से अपने पति से भरण—पोषण का दावा कर सकती है, लेकिन साथ ही विशेष अवसरों पर और कुछ आकस्मिक आवश्यकता होने पर बहन अपने भाई से कुछ राशि की अपेक्षा कर सकती है। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि पारिवारिक संबंधों को भारतीय संस्कृति के दृष्टिकोण में देखा जाना चाहिए। यह भी कहा कि जहां पारिवारिक संबंध की बात होती है, वहां गणितीय सूत्र नहीं खोजने चाहिए।
इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने ननद पर खर्च नहीं करने की उस महिला की दलील को खारिज करते हुए प्रतिवादी व्यक्ति की कुल आमदनी को सभी पक्षों में समान रूप से बांट दिया और महिला की भरण—पोषण की राशि 6,000 रु से बढ़ाकर 7,000 रु करने का आदेश दिया।
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