यमुनानगर में बहने वाली थपाना, यमुना की सहायक नदी है। 5 साल पहले तक यह बुरी तरह प्रदूषित थी। आज ग्रामीणों की बदौलत यह स्वच्छ तो हुई ही, इसमें मछलियों की 8 प्रजातियां व इसके आसपास वनस्पतियों की 32 प्रजातियां मिलीं
हरियाणा के यमुनानगर जिले का एक गांव है-कनालसी। 5,000 की आबादी वाले इस गांव ने जागरुकता और जन भागीदारी की मिसाल पेश की है। ग्रामीणों ने यमुना की सहायक थपाना नदी को प्रदूषण मुक्त कर उसे स्वच्छ-निर्मल बना दिया है। आज इसमें मछलियों की 8 प्रजातियां, जिसमें महाशिर भी शामिल है, केकड़े, सांप, मेढक, कछुआ जैसे जलचर तो हैं ही, इसके अंदर और तट पर वनस्पतियों की 32 किस्में भी पाई जाती हैं। ये वनस्पतियां 70 अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा हैं। ग्रामीण अब नदी को विरासत का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत हैं।
यमुना से निकलने वाली थपाना छोटी नदी है, इसलिए इसमें पानी भी कम रहता है। 15 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह सोमनदी में मिल जाती है। इस सफर में यह सात गांवों से गुजरती है। नदी को ग्रामीण देवी की तरह पूजते हैं। यही वजह है कि कोई भी व्यक्ति नदी से मछली पकड़ने या जलचर को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। लगभग पांच साल पहले तक यह नदी बहुत प्रदूषित थी। कनालसी निवासी राजकुमार राणा और अनिल शर्मा ने बताया कि पहले लोग कीटनाशक दवा के खाली डिब्बे, प्लास्टिक कचरा सहित कूड़ा-करकट नदी में ही फेंकते थे। बरसात के दौरान इसमें बाढ़ आ जाती थी और गर्मियों में यह सूख जाती थी। इससे नदी के किनारे खेती करने वाले किसानों के लिए विकट समस्या पैदा हो गई थी।
‘यमुना मित्र मंडली’ संस्था के सदस्य किरण पाल राणा बताते हैं, ‘‘शुरुआत में हमारे पास धन, संसाधन, तकनीक कुछ भी नहीं था। बस हिम्मत, नदियों के प्रति ग्रामीणों की आस्था और खुद पर भरोसा था। यमुना नदी के प्रदूषित होने से हर कोई आहत था। लेकिन वे तय नहीं कर पा रहे थे कि इसे साफ-सुथरा रखने में उनकी क्या भूमिका हो सकती है। नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका था कि मवेशी भी पानी में जाने से कतराने लगे थे। तब यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के एक अभियान के तहत लोगों को इकट्ठा किया गया। उन्हें समझाया गया कि नदियों को स्वच्छ रखना कितना जरूरी है।
तब उनकी समझ में आया कि यमुना तभी साफ-सुथरी रह सकती है, जब इसमें साफ पानी आएगा। यह तभी संभव होगा, जब इसकी सहायक नदियों और पोखरों का पानी स्वच्छ होगा। इसके बाद ग्रामीणों ने एक सभा बुलाई और उसमें यह तय किया कि यमुना में मिलने वाली सहायक नदियों को स्वच्छ रखने की दिशा में काम किया जाए। इस तरह थपाना नदी को चिह्नित किया गया।’’ राणा आगे बताते हैं कि यमुना के सारे पानी को हथनी कुंड बैराज में रोक दिया जाता है। इसके बाद यमुना की छोटी सहायक नदियों का पानी ही रह जाता है। इस तरह थपाना को स्वच्छ बनाने की मुहिम शुरू हुई। इसमें अब मंडौली और कन्यवाला गांव के लोग भी उनका साथ देते हैं।
नदी के प्रबंधन के लिए व्यवस्था भी बनाई गई। इसके तट पर ऐसे पौधे लगाए गए, जिससे किसानों को कुछ आमदनी हो। आसपास के गांवों के किसानों से बातचीत के बाद पोपलर और इमारती लकड़ी के पौधे लगाए गए। इससे हरियाली आई। पहले नदी तट के किनारे प्राकृतिक रूप से उगने वाले पौधे खेती के कारण नष्ट हो जाते थे। लेकिन खेती बंद होने और पौधारोपण से हरियाली आई तो गर्मी में नदी का पानी सूखना बंद हो गया।
राजकुमार और अनिल बताते हैं कि नदी की सफाई शुरू हुई तो लोगों से इसमें कूड़ा-कचरा फेंकने से मना किया गया। काम मुश्किल था, पर लगातार बातचीत के बाद कुछ लोग राजी हुए। देखते-देखते दूसरों ने भी नदी में कूड़ा-कचरा फेंकना बंद कर दिया। इससे नदी से कचरा तो खत्म हो गया। अब दिक्कत यह थी कि नदी किनारे खेतों में किसानों को रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग करने से कैसे रोका जाए। बरसात के दौरान खेतों का जहरीला पानी नदी में मिलता था, जिससे जलचरों को नुकसान पहुंचता था। पंडित सुशील शर्मा ने बताया कि किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया। एक किसान शिवपाल ने बताया कि इसकी शुरुआत देसी बीजों से हुई। ग्रामीणों ने फसल मार्केटिंग शुरू की तो कीमत भी अच्छी मिलने लगी। इस तरह से नदी के किनारों पर रसायनों का खतरा भी टल गया।
कनालसी की सरपंच मंजू देवी बताती हैं कि शुरू में कदम-कदम पर परेशानी थी। सबसे बड़ी परेशानी तो यह थी कि नदी में महाशिर मछली की तादाद तेजी से बढ़ रही थी। इससे शिकारियों का नदी की ओर ध्यान बढ़ा। रात में वे मछली चोरी करने लगे। शिकार के दौरान दूसरे जलचर भी मारे जाते थे। तब ग्रामीण रात में पहरा देने लगे। इसके बाद नदी में जलचरों के शिकार की घटनाएं बंद हो गर्इं। बाद में एक-दो बार शिकारियों ने मछली पकड़ने की कोशिश की, लेकिन पकड़े गए। अब वे नदी की ओर आने की हिम्मत नहीं करते। फिर भी परिणाम सुखद नहीं थे।
किरण पाल राणा बताते हैं कि इसे देखते हुए परिवार के सदस्य की तरह सितंबर माह के आखिरी इतवार को नदी का जन्मदिन मनाया जाने लगा। उस दिन सामूहिक भोज का आयोजन करने के लिए आसपास के ग्रामीणों से अनाज व पैसा लिया गया। इससे लोगों में नदी के प्रति आस्था पैदा हुई। नदी से ग्रामीणों को फायदा भी हो रहा था। नदी के दोनों छोर पर भूजल स्तर तो बढ़ ही रहा था, किनारों पर लगे इमारती लकड़ी के पेड़ों से उनकी कमाई भी होने लगी थी। सबसे बड़ा फायदा यह था कि गर्मी के दिनों में जो क्षेत्र वीरान हो जाता था, वहां साल भर हरियाली बनी रहती है।
‘यमुना मित्र मंडली’ के सदस्य और पर्यावरणविद् भीम सिंह कहते हैं कि नदी का अपना एक तंत्र होता है। यदि वह तंत्र बन जाए तो नदी स्वयं ही प्रदूषण मुक्त हो जाती है। कोई नदी एक जीवनचक्र की तरह होती है। उसका स्वास्थ्य सूचकांक होता है। उसका पानी कितना शुद्ध है, उसमें कौन-कौन से जलचर हैं, इसके किनारों पर कितने पेड़ हैं, यह सब एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसमें थपाना खरी उतर रही है। भीम ने बताया कि नदी को साफ-सुथरा रखने के लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की जरूरत नहीं है। नदियों को उनके प्राकृतिक तरीके से ही साफ रखा जा सकता है। इसके लिए नदियों के किनारे रहने वाले ग्रामीणों, किसानों को जागरूक करना होगा। थपाना नदी की सफाई इसका उदाहरण है।
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