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पर्यावरण : क्या होगा ई-कचरे का?

ई-कचरा न केवल स्वास्थ्य, बल्कि मिट्टी और भू-जल के लिए भी खतरनाक है

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Jun 7, 2022, 02:30 pm IST
in भारत
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ई-कचरा न केवल स्वास्थ्य, बल्कि मिट्टी और भू-जल के लिए भी खतरनाक है। इसके उचित प्रबंधन और निपटान के अभाव में इसमें मौजूद प्लैटिनम, सोना, चांदी और अन्य कीमती धातुओं को बेकार कह फेंका जा रहा

आज लोगों के पास पैसा आ गया है। नतीजा? हमारे घरों में टेलीविजन, फ्रिज, एसी, मोबाइल फोन, लैपटॉप, म्यूजिक प्लेयर, कैमरे, टैबलेट, ईयरफोन, हैडफोन, स्मार्ट स्पीकर, जीपीएस उपकरण, कारों के एक्सेसरीज, तमाम किस्म के चार्जर, स्कैनर, एडॉप्टर, प्रिंटर, नेटवर्किंग उपकरण, मोडेम, राउटर जैसे कितने ही इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण भरे पड़े हैं। समस्या यह है कि घरों में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स भी मौजूद हैं जो या तो खराब हो चुके हैं या कभी इस्तेमाल नहीं होंगे। दिमाग के किसी कोने में भ्रम है कि शायद कभी इनकी जरूरत पड़ जाए!

घर बैठे-बैठे हम सब अपनी खूबसूरत धरती पर इलेक्ट्रॉनिक कचरे के दृश्य और अदृश्य पहाड़ खड़े करते जा रहे हैं, बिना यह जाने कि यह लापरवाही हमारे पर्यावरण तथा सेहत के लिए कितनी बड़ी चुनौती पैदा करती जा रही है। किसी जमाने में मशीनी तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण 30-40 साल तक चल जाते थे। पर खराब हुए तो हम उनकी मरम्मत करवाकर काम चलाते रहते थे। तरक्की के इस दौर में या तो किसी वजह से उनकी मरम्मत हो ही नहीं पाती या वे अपनी काल्पनिक उम्र पार करके अप्रासंगिक हो चुके होते हैं। फिर हम में से बहुत से लोग पुराने की मरम्मत करवाने की बजाए नया इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदना पसंद करते हैं। इसके लिए पैसा है उनके पास।


जिम्मेदारी किसकी?

ई-कचरे में 1,000 से अधिक जहरीले पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भू-जल को दूषित करते हैं। देश में 10-14 आयु वर्ग के करीब 4.5 लाख बच्चे बिना सुरक्षा उपायों के विभिन्न ई-कचरा गतिविधियों में लगे हुए हैं। ई-कचरे को लेकर जागरूकता का अभाव तो है ही, असंगठित क्षेत्र के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और इसके प्रबंधन व निपटान के लिए जिम्मेदार प्राधिकरणों के बीच समन्वय भी नहीं है। ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016 के अनुसार, ई-कचरा एकत्र करने की जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट निर्माताओं की ही है। इसके लिए देश में करीब 1630 निर्माताओं को ईपीआर (एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी) के लिए अधिकृत किया गया है, जिनकी क्षमता 7 लाख टन से अधिक ई-कचरा प्रसंस्करण की है। विकसित देशों द्वारा 80 प्रतिशत ई-कचरा रिसाइकिलिंग के लिए भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है। ई-कचरे के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 2018 से 14 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय ई-कचरा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बहरहाल, इस प्रक्रिया में हम दो बड़ी गलतियां करते हैं। पहली, पुराने उपकरण को एक तरफ फेंक देते हैं, जबकि शायद उसमें अभी काफी जिंदगी बाकी हो। उसे किसी जरूरतमंद को देने की जहमत तक नहीं उठाते। दूसरे, हम अपने घर में इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा कर रहे होते हैं। देखते-देखते हमने कितनी बड़ी वैश्विक समस्या पैदा कर दी है। दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा 2019 में 5.36 करोड़ टन हो चुकी थी। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक, यदि 2019 में उत्पादित कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसाइकिल (पुनर्चक्रण) किया जाता तो करीब 4,25,833 करोड़ रुपए का फायदा होता।

यह आंकड़ा दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है। भारत की हिस्सेदारी भी 20 लाख टन सालाना की है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2030 तक यह मात्रा दोगुनी हो जाएगी। मतलब हर वैश्विक नागरिक के हिस्से में 700 ग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रति वर्ष आता है। क्या आप इसे छोटी मात्रा मानते हैं? याद रखिए, यह कोई प्लास्टिक, कागज, गत्ता, बोतलें या इसी तरह का कचरा नहीं है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स हैं!

यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा हमारे और हमारे ग्रहों दोनों के लिए हानिकारक है, भले ही इसे घर में रखें या बाहर फेंक दें। भले ही कोई कागज बीनने वाला बच्चा उठाकर ले जाए या फिर कबाड़ वाला औने-पौने दामों में इसे खरीद ले। भले ही वह शहर के बाहर किसी लैंडफिल का हिस्सा बने या फिर यूं ही किसी लावारिस पड़ी जमीन पर छितराए हुए कूड़े में जा शामिल हो। इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्लास्टिक की ही तरह बायो-डिग्रेडेबल नहीं है यानी कि यह समय के साथ नष्ट नहीं होता (कागज, लकड़ी आदि बायो-डिग्रेडेबल हैं)। हम कुछ नहीं करेंगे तो यह दशकों तक मौजूद रहेगा।

बड़ी समस्या यह है कि इसमें विषैले रसायनों की भरमार है। कंप्यूटरों में प्रयुक्त सामग्री में सीसा, कैडमियम, पारा, बेरीलियम, ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेन्ट्स, पॉलीविनाइल क्लोराइड और फॉस्फोरस जैसे यौगिक होते हैं। सर्किट बोर्डों में कैडमियम, एंटीमनी, सीसा और क्रोमियम होते हैं। स्विचों, लैंपों, फोटोकॉपी मशीनों, स्कैनरों और फैक्स मशीनों में पारा मौजूद होता है। पर्सनल कंप्यूटरों, राउटरों, मोडेम आदि में कॉपर बेरीलियम अयस्क मौजूद होता है। कुछ अन्य में द्रव क्रिस्टल, लीथियम, निकेल, सेलेनियम, आर्सेनिक और बेरियम जैसे खतरनाक रसायन होते हैं। इनको गलत ढंग से रखना या जलाना घातक हो सकता है।

इस समस्या को सरकार ठीक कर देगी, इसकी उम्मीद में ई-प्रदूषण करते रहना ठीक नहीं है। सरकारें, संबंधित विभाग और सामाजिक संगठन अपना काम कर रहे हैं। नियम-कायदे भी मौजूद हैं। 2011 और 2016 में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के प्रबंधन और निपटान संबंधी नियम लाए गए थे। लेकिन हमारी गति धीमी है। इसके लिए जागरूकता की कमी जैसे कई कारण हैं।

क्या हम अपनी आदतें बदल सकते हैं? खराब उपकरणों की मरम्मत करके इस्तेमाल करने में कोई खराबी नहीं है। या उन्हें किसी को देकर उसका भला ही कर दें। ऐसा संभव न हो तो फिर सही ढंग से रिसाइकल करें। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने-बेचने वाली कई कंपनियां ई-कचरा लेने लगी हैं, जैसे- क्रोमा, विजय सेल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार। कुछ कंपनियां रिसाइकलिंग का कारोबार करती हैं जैसे- इकोसेन्ट्रिक, एनसाइड, सेरेब्रा, एटेरो , बिनबैग आदि। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ऐसी सैकड़ों देशव्यापी रिसाइकिलिंग कंपनियों की सूची जारी की है, जो उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है। हो सकता है, आपको अपने ई-कचरे के बदले में कुछ धन ही मिल जाए- एक टेलीफोन मिलाकर तो देखें।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में ‘निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं।)

Topics: ई-कचराइलेक्ट्रॉनिक उपकरणई-प्रदूषण
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