समाज के आखिरी पायदान पर खड़े नागरिक की पीड़ा को महसूस करते हुए सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी सुधार किए हैं। इसमेंजनऔषधि केंद्र, अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाना और चिकित्सा पढ़ाई की व्यवस्था में वृद्धि महत्वपूर्ण है। इन सुविधाओं से गरीब से गरीब आदमी भी अब ईलाज के अभाव में अपनी जान नहीं गवांएगा
प्रधानमंत्री के राजनीतिक विरोधी भी मानते हैं कि उन्होंने देश के अंतिम जन तक सरकारी सुविधा पहुंचाई है। अब यह सुविधाएं सिर्फ कागजों पर नहीं पहुंच रही, जमीन पर उतर रही हैं। इस तरह की बात वही सरकार सोच सकती है, जिसे समाज के सबसे अंतिम आदमी की पीड़ा का अनुमान हो।
सिरसा के चौटाला गांव के ओमप्रकाश के अनुसार—मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना ने उनके भाई को नया जीवन दिया है। उनके ईलाज का सारा खर्च केन्द्र सरकार ने उठाया। उनकी जेब से एक पैसा नहीं लगा।
यह प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शी नीतियों का ही परिणाम है कि जनऔषधि केन्द्रों के माध्यम से देश की जनता दवा पर 13 हजार करोड़ रु. बचाने में सफल रही। दूसरी तरफ आम आदमी ने मोदी सरकार की आयुष्मान योजना से 70 हजार करोड़ की बचत की। स्वास्थ्य क्षेत्र में गरीबों के बीच ये दोनों योजनाएं वरदान साबित हुई हैं।
स्वस्थ भारत अभियान के संयोजक आशुतोष कुमार सिंह के अनुसार ”स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछले सात वर्षों में गजब का सुधार देखने को मिला है। हम लोग यूपीए सरकार में जिन सवालों पर एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आंदोलन करते हुए देखते थे, एनडीए सरकार में उनकी न सिर्फ डिलीवरी हो रही है बल्कि साल दर साल उसमें सुधार भी आता जा रहा है।”
जनऔषधि केंद्र
सरकार चिकित्सा खर्च को कम करके स्वास्थ्य सुविधा को आम आदमी के लिए सुगम बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसके लिए जनऔषधि केंद्र के विस्तार पर विचार किया जा रहा है। दवा का पर्चा हाथ में आने के बाद लोगों के मन में पहली आशंका यही होती थी कि, पता नहीं, कितना पैसा दवा खरीदने में खर्च होगा? जनऔषधि केंद्र ने वो चिंता कम की है।
सरकार मरीजों को आसानी से जेनरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए देशभर में जनऔषधि केंद्र खोल रही है। इसके तहत देशभर में मार्च 2024 तक 10,000 प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्रों खोलने की योजना है। जनऔषधि दवाएं बाजार में मिलने वाली ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 से लेकर 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। इससे महंगी दवाओं से लोगों को छुटकारा मिलता है और अनावश्यक रूप से महंगी दवाओं का बोझ भी नहीं पड़ता। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 18 प्रतिशत लोग अपनी बीमारी पर अस्पताल का खर्च नहीं उठा पाते। इसलिए उन्हें या तो कर्ज लेना पड़ता है या फिर अपनी अचल संपत्ति बेचनी पड़ती है। ऐसे में देशभर में यदि जनऔषधि केन्द्रों का प्रसार होता है तो यह स्वास्थ्य सेवा में किसी क्रांति से कम नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 7 मार्च को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जनऔषधि केंद्र के मालिकों और योजना के लाभार्थियों से ‘जनऔषधि-जन उपयोगी’ विषय पर बातचीत की। जेनेरिक दवाओं के उपयोग और जनऔषधि परियोजना के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए 1 मार्च से पूरे देश में जन औषधि सप्ताह मनाया गया। स्वास्थ्य के विषय पर बात करना इस समय इसलिए भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि एक तरफ देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी कोई छुपाने वाली बात नहीं है।
रिक्शा चालक का ब्रेन ट्यूमर आपरेशन रहा सफल
बनारस में एक रिक्शा चालक की जान आयुष्मान भारत योजना ने बचाई। वह ब्रेन ट्यूमर का शिकार हुआ था जिसके ईलाज में लाखों रुपये खर्च होने थे। इतना पैसा एक गरीब रिक्शा चालक के पास कहां से आता? जब वह रिक्शाचलक अपना ईलाज कराने बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग में पहुंचा तो उसे पता चला कि अब आपरेशन के सिवा कोई चारा नहीं है। बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. डॉ. वी.एन. मिश्रा ने उसे बताया कि इसमें कम से कम डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च होगा। मरीज की खराब आर्थिक स्थिति देख प्रो. मिश्रा ने उससे पूछा- क्या आपका आयुष्मान भारत कार्ड बना हुआ है? रिक्शा चालक ने बताया कि हां, उसे मालूम नहीं था कि आयुष्मान भारत कार्ड से नई जिंदगी मिल सकती है। प्रो. मिश्रा ने मरीज को आयुष्मान भारत कार्ड के जरिए न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट में आॅपरेशन कराने की सलाह दी। इसके बाद रिक्शा चालक का मुफ्त इलाज हुआ और उसकी जान बच सकी।
बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग में आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों के हर महीने 100 से 150 आपरेशन मुफ्त हो रहे हैं। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले मरीजों के लिए दो से तीन लाख रुपये जुटा पाना नामुमकिन ही होता। अब गरीबी की वजह से जाने वाली हजारों जानें सुरक्षित हैं।
लाखों का ईलाज और बच गई जान
प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कहा— ”आज देश में साढ़े आठ हजार से ज्यादा जन-औषधि केंद्र खुले हैं। ये केंद्र अब केवल सरकारी स्टोर नहीं, बल्कि सामान्य लोगों के लिए समाधान केंद्र बन रहे हैं।” प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि हमारी सरकार ने कैंसर, टीबी, डायबिटीज, हृदयरोग जैसी बीमारियों के इलाज के लिए जरूरी 800 से ज्यादा दवाइयों की कीमत को भी नियंत्रित किया है। सरकार ने ये भी सुनिश्चित किया है कि स्टंट लगाने और घुटना प्रत्यारोपण की कीमत भी नियंत्रित रहे।” आज देश में 8500 से ज्यादा जन औषधि केंद्र खुले हैं। जब मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई थी, देश में सिर्फ एक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान हुआ करता था। आज देश में 22 ऐसे संस्थान हैं।
गांव की महिलाओं के लिए माहवारी के समय सेनेटरी नैपकिन की जरूरत को स्वच्छता और साफ-सफाई के लिहाज से भी समझा जा सकता है। जहां परिवार में पहनने को कपड़ा पूरा ना पड़ता हो, ऐसे परिवारों में सेनेटरी नेपकीन के ना होने पर मिट्टी और राख का इस्तेमाल आज भी गांवों में आम बात है। ऐसे में 1 रुपये में केन्द्रों पर मिलने वाला सेनेटरी नेपकीन ऐसे परिवारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इन केन्द्रों के माध्यम से 21 करोड़ से ज्यादा सेनेटरी नेपकीन की बिक्री ये दिखाती है कि कितनी बड़ी संख्या में महिलाओं का जीवन आसान हो रहा है।
आयुष्मान भारत योजना के दायरे में आज भारत की लगभग आधी आबादी है। यह संख्या 50 करोड़ से भी अधिक लोगों की बैठती है। इस योजना के शुरू होने से लेकर अब तक तीन करोड़ से अधिक लोग इसका लाभ उठा चुके हैं। इस योजना के अन्तर्गत मरीजों को अस्पताल में मुफ्त इलाज मिला है। अगर ये योजना नहीं होती, गरीब परिवार से आने वाले लोगों को 70 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते।
इस वित्तीय वर्ष में जन औषधि केंद्रों के माध्यम से 800 करोड़ रुपये से ज्यादा की दवाएं बिकी हैं। इसी साल की बात करें तो जन औषधि केंद्रों की वहज से गरीब परिवारों और मध्यम वर्ग के परिवारों में करीब 5,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है। केन्द्र सरकार के जन औषधि केंद्रों के माध्यम से 13,000 करोड़ रुपये की बचत यहां आने वाले लोगों की हुई है।
नीति आयोग ने ‘भारत में वित्तपोषण के विभिन्न स्रोतों के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल की पुनर्कल्पना’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की है। ब्रिक्स संगठन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका देश हैं। जब आयोग ने इन सभी देशों का तुलनात्मक अध्ययन किया तो पाया कि भारत का स्वास्थ्य देखभाल पर शेष देशों की तुलना में सबसे कम खर्च है।
आयुष्मान योजना
आयुष्मान भारत योजना भी देश के सबसे वंचित वर्ग की भलाई के लिए है। यह मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। इस योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाता है। इस स्वास्थ्य बीमा से गरीब परिवारों को बीमारी से लड़ने का ‘प्रतिरोधक हौसला’ मिला है। जब देश कोविड-19 की भयंकर चपेट में था, उसी दौरान सरकार ने इस योजना के अंतर्गत कोविड-19 का इलाज भी शामिल किया। यह एक स्वागत योग्य कदम था।
आयुष्मान भारत योजना के दायरे में आज भारत की लगभग आधी आबादी है। यह संख्या 50 करोड़ से भी अधिक लोगों की बैठती है। इस योजना के शुरू होने से लेकर अब तक तीन करोड़ से अधिक लोग इसका लाभ उठा चुके हैं। इस योजना के अन्तर्गत मरीजों को अस्पताल में मुफ्त इलाज मिला है। अगर ये योजना नहीं होती, गरीब परिवार से आने वाले लोगों को 70 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते। इन तीन करोड़ से अधिक लोगों के ईलाज पर आने वाला सारा खर्च भारत सरकार ने उठाया।
चिकित्सा शिक्षा
दूसरी तरफ हजारों की संख्या में छात्र सीट की कमी की वजह से देश छोड़ कर विदेश सस्ती चिकित्सकीय शिक्षा के लिए जा रहे हैं। यूक्रेन प्रसंग में यह विषय समाज के बीच विमर्श बना। यूक्रेन से लौटे छात्रों से मार्च के पहले सप्ताह में जब प्रधानमंत्री मिले तो देश में मेडिकल कॉलेज की कमी को लेकर पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उनकी सरकार देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने पर काम कर रही है ताकि छात्र देश में ही मेडिकल शिक्षा पा सकें। अगले दस सालों में केन्द्र सरकार ने हर एक जिले में एक अस्पताल खोलने का लक्ष्य रखा। निश्चित तौर इससे देश में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में सीटों की वृद्धि होगी।
इसके साथ—साथ स्वास्थ्य व्यवस्था की बड़ी भूमिका निभा रहे बिना डिग्री वाले डॉक्टरों को प्रशिक्षण देकर सरकार यदि गांव और जनजातीय क्षेत्रों में तैनात करती है तो इससे उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा पहुंच सकती है, जहां महंगी पढ़ाई करने वाले डॉक्टर जाने को तैयार नहीं होते। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बात का भरोसा दिया है कि देश में मेडिकल शिक्षा में सीट बढ़ेगी और शिक्षा सस्ती भी होगी। कुछ दिन पहले ही सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है जिसका बड़ा लाभ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को मिलेगा। सरकार ने तय किया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर ही फीस लगेगी।
अस्पताल सुविधा
आम आदमी के लिए समान रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अस्पताल में बिस्तरों की संख्या में कम-से-कम 30 प्रतिशत वृद्धि किये जाने की जरूरत है। वर्तमान मे देश के 65 प्रतिशत अस्पतालों के बिस्तर से 50 प्रतिशत लोगों की जरूरत पूरी होती है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि सभी तक अस्पताल की स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचें, इसके लिए बिस्तरों की संख्या मे कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि की जरूरत है।
बहरहाल, सरकार आने वाले समय में इन जरूरतों को पूरा करे और स्वास्थ्य के पूरे परिदृश्य में सुधार लाने की पहल करे। यही समय की मांग है।
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