देश के कई शिक्षण संस्थान अपने को अल्पसंख्यक संस्थान मानकर सरकार के कई नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। इन दिनों एक ऐसा ही संस्थान चर्चा में है और वह है दिल्ली स्थित प्रसिद्ध सेंट स्टीफंस कॉलेज। उल्लेखनीय है कि इस बार से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अधीन आने वाले महाविद्यालयों में कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के आधार पर स्नातक के छात्रों का नामांकन होना है। लेकिन सेंट स्टीफेंस कॉलेज ने इस नियम को धत्ता बताते हुए अपनी प्रवेश विवरणिका (प्रॉस्पेक्टस) निकाल दी है। सेंट स्टीफेंस कॉलेज का कहना है कि वह अल्पसंख्यक संस्थान है और इस नाते इस कॉलेज में 50 प्रतिशत सीेटें अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आरक्षित हैं। यानी स्टीफेंस का प्रबंधन चाहता है कि उसके यहां 50 प्रतिशत सीटें केवल ईसाई छात्रों को मिले। जबकि विश्वविद्यालय चाहता है कि किसी भी छात्र का नामांकन सीयूईटी के आधार पर हो।
सीयूईटी का प्रारंभ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा सत्र 2022-2023 से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए किया गया है। इस परीक्षा का उद्देश्य है एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के माध्यम से सभी छात्रों को समान अवसर देना। इस वर्ष मार्च महीने में सीयूईटी को अपनाते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने अधीन आने वाले महाविद्यालयों को नामांकन के लिए सिंगल मोड (एकमात्र तरीके) के रूप में इसी सामान्य परीक्षा को अपनाने के लिए कहा था। इस प्रक्रिया में महाविद्यालयों द्वारा अपने स्तर पर लिए गए साक्षात्कार अथवा किसी तरह के व्यक्तिगत मूल्यांकन के लिए कोई स्थान नहीं है। लेकिन सेंट स्टीफेंस कॉलेज छात्रों का साक्षात्कार लेने के लिए अड़ा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सेंट स्टीफेंस कॉलेज लगभग 11—12 वर्ष से विश्वविद्यालय के किसी भी नियम को नहीं मान रहा है। इस बार भी वह यही करना चाहता है। उन्होंने यह भी बताया कि सेंट स्टीफेंस छात्रों का साक्षात्कार केवल इसलिए लेना चाहता है कि गैर—ईसाइयों को नामांकन से रोकना है।
इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय ने सेंट स्टीफेंस कॉलेज को अपनी प्रवेश प्रक्रिया वापस लेने के लिए कहा है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने जोर देकर कहा कि यदि उसके दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया तो वह सेंट स्टीफेंस में छात्रों के प्रवेश को रद्द कर देगा।
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