पानी के संकट से जूझते बुंदेलखंड में ‘अपना तालाब अभियान’ ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को जाग्रत किया बल्कि सरकार ने भी इससे प्रेरणा लेकर खेत तालाब योजना की शुरुआत की। नतीजा सामने है, बुंदेलखंड में इस अभियान के परिणामस्वरूप न सिर्फ 25,000 तालाबों का नेटवर्क खड़ा हुआ बल्कि अब तक 23 करोड़ घन लीटर वर्षा जल सहेजने में कामयाबी मिली है
बुंदेलखंड में सूखे की सर्वाधिक मार झेलने वाले बांदा, महोबा और हमीरपुर जिलों में वर्षा जल को सहेजने के लिए महज एक दशक पहले ‘अपना तालाब अभियान’ का आगाज हुआ था। इस अभियान की कामयाबी को संक्षेप में समझने के लिए तीन तथ्यों का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। पहला, सरकार ने इस अभियान की जमीनी सच्चाई को स्वीकार कर ‘खेत तालाब योजना’ की शुरुआत की। दूसरा, बुंदेलखंड में इस अभियान ने किसानों के बीच तालाब क्रांति का आगाज कर अब तक 25 हजार से अधिक छोटे एवं मंझोले तालाबों का नेटवर्क खड़ा कर दिया है। और, तीसरा तथ्य यह है कि इस अभियान के फलस्वरूप पानी के लिए तरस रहे बुंदेलखंड को अब तक 23 करोड़ घन लीटर वर्षा जल सहेजने में कामयाबी मिली है।
अब बात, ‘अपना तालाब अभियान’ के ‘खेत तालाब योजना’ में तब्दील होने की। इसकी कहानी अत्यन्त रोचक है और इसके कहानीकार हैं इस अभियान के पुरोधा पुष्पेन्द्र ‘भाईजी’। पूरे इलाके में लोग उन्हें तालाब वाले ‘भाईजी’ के नाम से जानते हैं।
भाई जी का जुनून
तालाबों के विज्ञान और तंत्र की बारीक समझ रखने वाले भाईजी का तालाबों के लिए जुनून इस कदर है कि उन्हें तालाब बनवाने के काम के लिए अगर 200 किमी दूर से भी बुलावा आ जाए तो वे, न दिन देखते हैं, न रात, बस न मिले तो गाड़ियों से लिफ्ट मांग कर भी पहुंच जाते हैं। गौरतलब यह कि तालाब बनाने का काम गर्मी में ही होता है और बुंदेलखंड की गर्मी कम प्रसिद्ध नहीं है। उनके इस जुनून को एक घटना से समझा जा सकता है। रात आठ बजे का समय था और भाईजी मध्य प्रदेश के छतरपुर में तालाब बनवा रहे एक किसान के घर भोजन के लिए बैठे ही थे कि उनके पास 200 किमी दूर झांसी जिले के बड़ागांव ब्लॉक से फोन आया। इस ब्लॉक में अधिकारी तालाब बनवाने के लिए किसानों को तैयार करने में पूरी तरह से नाकाम रहे थे।
भाईजी के सफल तालाब अभियान से प्रेरित होकर इसी बड़ागांव ब्लॉक में एक खेत पर मध्यम आकार (30७35 मीटर) का तालाब बन रहा था। तालाब बनाने की तकनीकी खामियों के कारण तालाब बनवाने वाले किसान ने भाईजी को बेहद निराश होकर फोन पर बताया कि उसका तालाब बनाना निष्फल हो गया है, क्योंकि तालाब बनाने वाले ने गलत तरीके से खुदाई कर दी। भाईजी भोजन करने की औपचारिकता पूरी कर रात नौ बजे गांव से मोटरसाइकिल पर लिफ्ट लेकर छतरपुर पहुंचे और बस से रात 12 बजे झांसी में दस्तक दे दी। सुबह सात बजे भाईजी पूरे उत्साह से उस किसान के खेत पर पहुंच गए और चिलचिलाती धूप में दिन भर तालाब की खुदाई की खामियों को दूर कर रात को फिर वापस बस से अपना तालाब अभियान के अगले पड़ाव के लिए रवाना हो गए।
25,000 तालाब
शायद यह इसी उत्साह एवं जुनून का नतीजा वे 25 हजार तालाब हैं, जिनसे बुंदेलखंड में तकरीबन 23 करोड़ घन लीटर बारिश का पानी सहेजना संभव हुआ है और 02 लाख एकड़ असिंचित कृषि भूमि को दो से तीन पानी की सिंचाई करने का प्रबंध हो सका है। इतना ही नहीं, बुंदेलखंड में तेजी से गिरते भूजल स्तर के ठहराव के साथ इसमें बढ़ोतरी दर्ज होना भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।
अपने अनुभव साझा करते हुए भाईजी वर्ष 2013-14 में शुरू हुए ‘अपना तालाब अभियान’ को ‘मौन क्रांति’ का दर्जा देते हुए बताते हैं कि इसे जन आंदोलन बनाने के लिए सबसे पहले लोगों को तालाब की अहमियत समझाई। इसके लिए तमाम तर्क गढे, पानी की बूंदों की गणना की, गांव-गांव जाकर अनगिनत बैठकें की, जनप्रतिनिधियों और सरकारी अफसरों से भी जूझना पड़ा। तब जाकर जिन किसानों ने उनकी बात को समझा, उन्हें कुछ साल में ही सुखद परिणाम भी मिलने लगे।
ट्यूबवेल, बांध से बेहतर हैं तालाब
भाईजी का मानना है कि बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है जिसमें भूजल कम गहराई में तो मिल जाता है लेकिन पानी की मात्रा बहुत कम होती है। इसलिए अधिक पानी निकालने के लिए जमीन में बहुत गहराई तक जाना पड़ता है। लिहाजा, बुंदेलखंड में सामान्य किसानों के लिए ट्यूबवेल बनवाया नितांत घाटे का सौदा है। ऐसे में इस इलाके में छोटे-छोटे तालाब ही जलसंचय और जलापूर्ति का एकमात्र बेहतर विकल्प हैं। इसका सबूत पूरे बुंदेलखंड में हर गांव के बाहर एक तालाब की अनिवार्य मौजूदगी है जो हमारे पूर्वजों की दूरदृष्टि का उदाहरण है। इसी तरह नगरों में चरखारी से लेकर झांसी तक, जलापूर्ति के लिए बड़े तालाबों की समृद्ध शृंखलाओं के प्रमाण आज भी जिंदा हैं।
बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है जिसमें भू-जल कम गहराई में तो मिल जाता है लेकिन पानी की मात्रा बहुत कम होती है। इसलिए अधिक पानी निकालने के लिए जमीन में बहुत गहराई तक जाना पड़ता है। लिहाजा, बुंदेलखंड में सामान्य किसानों के लिए ट्यूबवेल खुदवाना नितांत घाटे का सौदा है। ऐसे में इस इलाके में छोटे-छोटे तालाब ही जलसंचय और जलापूर्ति का एकमात्र बेहतर विकल्प हैं
तालाब के तात्कालिक और दीर्घकालिक लाभ के बारे में अपने अनुभव का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि छोटे और मंझोले तालाब, जल संचय एवं भूजल संरक्षण के लिए ट्यूबवेल या बांधों जैसे खर्चीले उपायों की तुलना में बेहतर विकल्प हैं। तालाब भूजल दोहन को रोककर वर्षा जल का संचय कर भूजल स्तर को बढ़ाता है। साथ ही तालाब के पानी सिचाई के लिए भूजल की तुलना ज्यादा पोषक होने के कारण कृषि उपज में वृद्धि होती है। यह किसानों की समृद्धि का साधक बनकर मजदूरी की खातिर उनके पलायन और आत्महत्या जैसी कुप्रवृत्तियों को भी रोकता है।
वे बताते हैं कि अपना तालाब अभियान से प्रभावित होकर ही सरकार ने बुंदेलखंड को लक्षित कर खेत तालाब योजना 2015-16 में लागू की। इसकी स्वीकार्यता का प्रमाण हमीरपुर जिले में 2017-18 में 60 हजार से अधिक किसानों द्वारा तालाब के लिए आॅनलाइन आवेदन करना था।
उनका दावा है कि खेतों पर तालाब बनाकर खुद से समाधान की अवधारणा पर किसान अब चर्चा करने लगे हैं। इसका प्रभाव यह हुआ है कि बुंदेलखंड के अधिकतम विकास खंडों में जहां निरंतर भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की जाती रही है,अब भूजल स्तर बढ़ने की गणना की जा रही है। तालाबों के आसपास के सूखे कुएं और ट्यूबवेल का पानीदार होना इसका प्रमाण है।
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