भारतीय खेल जगत निरंतर ऊंचाइयां छू रहा है। इस बार भारतीय पुरुष बैडमिंटन टीम ने थॉमस कप जीत एक स्वर्णिम इतिहास रचा है। भारतीय टीम पहली बार थॉमस कप फाइनल में स्थान बना पाई थी और किसी भी खिलाड़ी ने कोई भी गलती न करते हुए हर मैच को जीता और खिताब अपनी झोली में डाल लिया। यह भविष्य के लिए भारतीय खेल उपलब्धियों की झलक है
पिछले एक दशक से भारतीय बैडमिंटन जगत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई, अविश्वसनीय उपलब्धियां हासिल करते हुए सशक्त दावेदारी पेश की और फिर थॉमस कप बैडमिंटन खिताब जीत भारतीय पुरुष टीम ने इतिहास रच दिया। इस टीम के लिए न सिर्फ थॉमस कप के फाइनल में पहली बार पहुंचना विशिष्ट उपलब्धि रही, बल्कि विश्व बैडमिंटन जगत पर वर्षों से राज कर रही इंडोनेशिया, मलेशिया और डेनमार्क जैसी महाशक्तियों को पछाड़कर खिताब जीतना देश की श्रेष्ठतम खेल उपलब्धियों में से एक है।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय खेल जगत निरंतर नई ऊंचाइयां छू रहा है। एशियाई खेल हो या ओलंपिक, विश्व कप हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर की अन्य प्रतियोगिताएं, हर जगह भारतीय तिरंगा शान से लहरा रहा होता है। यह एक समृद्ध खेल परंपरा की झलक है क्योंकि जीत की आदत-सी पड़ रही है भारतीय खिलाड़ियों को। किसी भी खेल के महामंच पर उपलब्धियां हासिल करने का जो विश्वास भारतीय खिलाड़ियों में जगा है, वह महत्वपूर्ण है। इस क्रम में थॉमस कप जीत की तुलना अन्य विशिष्ट उपलब्धियों से नहीं की जानी चाहिए क्योंकि समय और परिस्थितियों के अनुरूप हर खेल उपलब्धि की अपनी महत्ता है। लेकिन, सच यही है कि किदाम्बी श्रीकांत के नेतृत्व में एच.एस. प्रणॉय, लक्ष्य सेन और चिराग शेट्टी व सात्विक साईराज ने जो ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, उसने हमेशा के लिए भारतीय खेल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया है।
अदम्य इच्छाशक्ति का परिणाम
भारतीय पुरुष टीम ने एक के बाद एक, वरीयता क्रम में खुद से ऊपर रही टीमों को मात देते हुए दर्शाया कि जीत की अदम्य इच्छाशक्ति हो तो बड़ी से बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। इसमें कोई शक नहीं कि अपनी प्रतिभा और निरंतर कड़ी मेहनत के बल पर भारतीय खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत स्तर पर अनेक सफलता अर्जित कर खुद को विश्व वरीयता क्रम की शीर्षस्थ पंक्ति में शामिल किया। यह वर्षों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा था कि थॉमस कप विजेता भारतीय टीम में शामिल सभी खिलाड़ी विश्व वरीयता क्रम के शीर्ष 15 खिलाड़ियों में शामिल हैं। लेकिन 14 बार की चैंपियन और 21वीं बार थॉमस कप फाइनल खेल रही इंडोनेशियाई टीम का कद भारतीय टीम से कहीं ज्यादा बड़ा था। उनके सामने पहली बार थॉमस कप का फाइनल खेलना और खिताब जीतना भारतीय टीम के आत्मविश्वास और उनकी जिजीविषा को दर्शाता है।
क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल दोनों ही नॉकआउट मुकाबलों में भारत को निर्णायक एकल मुकाबलों में एच.एस. प्रणॉय ने जब चोटिल होने के बावजूद जीत दिलाई तो टीम में एक विश्वास सा जगा कि वे विश्व बैडमिंटन की सबसे प्रतिष्ठित टीम स्पर्धा जीत सकते हैं। फाइनल में इंडोनेशिया पर जीत के बाद प्रणॉय ने बताया – कोर्ट पर उतरने से ठीक पहले पूरी टीम ने एक ही प्रण लिया था, आज नहीं छोड़ना है – जीत के ही जाना है। वास्तव में ठीक ऐसा ही किया भारतीय टीम ने। पहली बार फाइनल में पहुंच भारतीय टीम पहले ही इतिहास रच चुकी थी।
भारतीय टीम के सपने को साकार करने में विश्व के 9वें वरीय लक्ष्य सेन ने पहला कदम उठाया। 20 वर्षीय युवा लक्ष्य सेन ने विश्व वरीयता क्रम में 5वें नंबर के खिलाड़ी एंथोनी गिनटिंग को 8-21, 21-17, 21-16 से मात देकर सनसनी फैला दी। इसके बाद टोक्यो 2020 ओलंपिक के ग्रुप मुकाबले में स्वर्ण पदक विजेता ली यांग व वांग ची लिन की चीनी जोड़ी को हराकर सुर्खियां बटोरने वाली सात्विक साईराज व चिराग शेट्टी की जोड़ी कोर्ट पर उतरी। उसने मोहम्मद अहसान व केविन सुकामुजो की जोड़ी को 18-21, 23-21, 21-19 से हराकर एक तरह से उनके जबड़े से जीत छीन ली। 2-0 की बढ़त हासिल करने के बाद भारतीय टीम का मनोबल आसमान छू रहा था, जबकि इंडोनेशियाई खेमे में निराशा साफ दिख रही थी। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि इंडोनेशियाई कोच ने बीच मुकाबले में ही कोर्ट छोड़ दिया।
बहरहाल, इसके बाद पूरे टूर्नामेंट में एक भी मुकाबला न हारने वाले किदाम्बी श्रीकांत के कंधों पर भारत की ऐतिहासिक जीत का दारोमदार था। विश्व के पूर्व नंबर एक और वर्तमान में 11वें वरीय खिलाड़ी श्रीकांत ने जोनाथन क्रिस्टी (जकार्ता एशियाड 2018 के स्वर्ण पदक विजेता) को 21-15, 23-21 से सीधे गेमों में हराकर भारतीय बैडमिंटन को शिखर पर पहुंचा दिया। यह महज एक ऐतिहासिक जीत नहीं थी। वर्षों की कड़ी मेहनत और बेहतर तकनीक व प्रतिभा के बल पर हासिल की गई उपलब्धि थी।
टीम गेम में भारत ने क्रिकेट व हॉकी में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन व्यक्तिगत प्रदर्शनों के बल पर टीम का समग्र रूप से खिताब जीतने का इससे बड़ा उदाहरण शायद कभी देखने को नहीं मिला। 1980 में जब प्रकाश पादुकोण ने आल इंग्लैंड बैडमिंटन खिताब जीत भारतीय बैडमिंटन की सफलता की नींव रखी थी तो पुरुष बैडमिंटन टीम स्पर्धा जीतना एक सपना भर था। हालांकि गोपीचंद ने व्यक्तिगत सफलताओं के क्रम को आगे बढ़ाया, जबकि सायना नेहवाल और पी.वी. सिंधू ने ओलंपिक सहित तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खिताब व पदक जीतते हुए भारतीय बैडमिंटन को परवान चढ़ाया। लेकिन इस बार श्रीकांत के नेतृत्व में भारतीय टीम ने पूरे हौसले के साथ भारतीय टीम को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित कर दिखाया।
टीम प्रयास से मिली जीत
थॉमस कप जीतने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर टीम को बधाई देने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे। उन्होंने टीम के हर खिलाड़ी को उनके शानदार प्रदर्शन पर बधाई देते हुए कहा – इस ऐतिहासिक जीत से पूरा देश आह्लादित है। भारतीय बैडमिंटन टीम ने जो इतिहास रचा है, उससे देश के उभरते युवा खिलाड़ियों को और बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलेगी। प्रधानमंत्री की बधाई पर किदाम्बी श्रीकांत ने स्वीकार किया, यह टीम के सामूहिक प्रयास से मिली जीत है। श्रीकांत ने कहा, जब-जब जरूरत पड़ी, हर खिलाड़ी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए भारत को जीत दिलाई। भारत ने पहली बार थॉमस कप जीता है और इस ऐतिहासिक सफलता हासिल करने वाली टीम का हिस्सा बनकर हर खिलाड़ी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। वास्तव में वर्ष 2017 में चार सुपर सीरीज जीत और 2018 में विश्व वरीयता क्रम में पहले नंबर पर पहुंच श्रीकांत ने एक तरह से बैडमिंटन जगत में भारतीय सशक्त दावेदारी का उद्घोष कर दिया था। इसके बाद हालांकि वह चोटिल होकर कोर्ट से दूर रहे, लेकिन 2021 विश्व कप में रजत पदक जीत उन्होंने धमाकेदार वापसी की।
थॉमस कप विजेता भारतीय टीम में शामिल सभी खिलाड़ी विश्व वरीयता क्रम के शीर्ष 15 खिलाड़ियों में शामिल हैं। लेकिन 14 बार की चैंपियन और 21वीं बार थॉमस कप का फाइनल खेल रही इंडोनेशियाई टीम का कद भारतीय टीम से कहीं ज्यादा बड़ा था। उनके सामने पहली बार थॉमस कप का फाइनल खेलना और खिताब जीतना भारतीय टीम के आत्मविश्वास और उनकी जीत की जिजीविषा दर्शाती है
श्रीकांत ने अपने फॉर्म को बरकरार रखते हुए पूरे थॉमस कप में एक भी मुकाबला हारे बिना देश को पहला प्रतिष्ठित थॉमस कप दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कुछ इसी तरह के दमदार प्रदर्शन लक्ष्य सेन और एच.एस. प्रणॉय ने भी एकल मुकाबलों में किए, जबकि सात्विक-चिराग की जोड़ी तो टीम के लिए एक तरह से वरदान साबित हुई। प्रणॉय तो डेनमार्क के खिलाफ निर्णायक सेमीफाइनल मुकाबले के दौरान चोटिल भी हो गए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और कोर्ट पर ही चिकित्सीय मदद लेने के बाद भारत को 3-2 से जीत दिलाई। प्रधानमंत्री से बातचीत के दौरान प्रणॉय ने कहा – हम जीवन भर इस सप्ताह मिली ऐतिहासिक जीत को नहीं भूल पाएंगे। भारत की खिताबी जीत पर महान खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण ने कहा- भारतीय टीम को थॉमस कप में जीत पाने के लिए लंबे समय से एक ऐसी युगलजोड़ी की जरूरत थी जो जीत हासिल कर एकल मुकाबलों के खिलाड़ी पर से दबाव कम कर सके। सात्विक और चिराग ने खुद को एक आक्रामक व खतरनाक जोड़ी के रूप में स्थापित कर विश्व की लगभग सभी शीर्षस्थ जोड़ियों को मात देकर भारतीय टीम को शीर्ष तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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