पिछले वर्ष बांग्लादेश में दुर्गापूजा के एक पंडाल में एक कुरआन की प्रति मिली और देखते ही देखते पूरा बांग्लादेश हिंदुओं के प्रति हिंसा से भर गया था। पूजा पंडाल जल गए थे और हिंदुओं पर ऐसे हमले हुए कि जिसकी सीमा में इस्कॉन मंदिर और उसके पुजारी भी आए।
पिछले वर्ष बांग्लादेश में दुर्गापूजा के एक पंडाल में एक कुरआन की प्रति मिली और देखते ही देखते पूरा बांग्लादेश हिंदुओं के प्रति हिंसा से भर गया था। पूजा पंडाल जल गए थे और हिंदुओं पर ऐसे हमले हुए कि जिसकी सीमा में इस्कॉन मंदिर और उसके पुजारी भी आए। जब यह कत्लेआम शांत हुआ, तो पता चला कि कुरआन किसी मुस्लिम ने ही रखी थी। परन्तु उसकी आड़ में जो हिंदू मारे गए, उनकी संपत्ति लूटी गयी, उसका क्या ?
भारत में हजारों मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, जिनका प्रमाण अभी तक मिल रहा है और मिलता रहेगा। काशी में यह परिचित तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा था। हालांकि मुसलमान इसे ट्विस्ट देते हुए यह कहते हैं कि चूंकि मंदिर में गलत हरकतें हो रही थीं, इसलिए औरंगजेब ने यह मंदिर तुड़वाया। परन्तु मंदिर था, इसे सब मानते हैं। अब जब वहां पर सर्वे हुआ तो हिंदू पक्ष ने दावा किया कि उन्हें शिवलिंग दिखाई दिया। शिवलिंग जहां पर है, वहां पर मुस्लिम नमाज पढ़ने से पहले वजू करते हैं। माने हाथ-पैर धोते हैं। वहां पर शिवलिंग पाए गए! यह समाचार सामने आते ही धर्मपरायण हिंदू स्तब्ध रह गया। वहीं लिबरल और मुस्लिमों की प्रतिक्रिया हिंदुओं को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को हैरान करने वाली थीं। इतना विद्वेष इनके मस्तिष्क में कैसे उस धर्म के लिए हो सकता है, जिसे वह मानते नहीं या फिर वह कथित वामपंथी जो हिंदू होते हुए भी धर्म को नहीं मानते!
या फिर वह कथित कांग्रेसी और सपाई जो भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने के लिए महादेव का विरोध कर रहे हैं। ऊपर बांग्लादेश का उदाहरण इसलिए दिया कि यह समझा जाए कि जो लोग अपने कुरआन को मात्र हिंदू देवी-देवता के हाथ में नहीं देख सकते हैं, वह हिंदू देवों के लिए कितना निकृष्ट बोल सकते हैं। इस श्रेणी में सबसे पहला नाम है कथित सेक्युलर और निष्पक्ष पत्रकार सबा नकवी का। सबा नकवी ने एक ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने लिखा कि उनके पास यह कई जगहों से व्हाट्सएप फॉरवर्ड होकर आया है और जिसमें भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की तस्वीर थी और लिखा था कि ब्रेकिंग: भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में एक बड़ा शिवलिंग प्राप्त हुआ है।
परन्तु जब इस विषय में उनकी आलोचना हुई और लोगों ने पुलिस को टैग करना आरम्भ कर दिया तो सबा नकवी ने तुरंत पाला बदलते हुए यह ट्वीट किया कि उन्होंने एक व्हाट्सएप फॉरवर्ड साझा किया था, और इससे किसी को बुरा लगा तो वह क्षमा मांगती हैं, उनका उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं था।
हिंदुओं की भावनाएं आहत कर क्षमा मांगकर बाहर निकल जाने का अवसर रहता है। परन्तु उनके समुदाय ने वह अवसर गुजरात में किशन भरवाड़ को नहीं दिया था, जिसे मात्र एक सरल वीडियो साझा करने पर मार डाला गया था।
कर्नाटक का हर्ष जिसने मात्र स्कूल में हिजाब का विरोध किया था, उसका हाल क्या किया गया था? सबा को नहीं दिखता! ऐसे एक नहीं कई लोग हैं। दिल्ली में हिन्दू कॉलेज में प्रोफ़ेसर रतन लाल ने भी शिवलिंग पर भद्दा कमेंट किया।
जब इस बयान को लेकर उनकी आलोचना हुई तो उन्होंने जाति का कार्ड खेलते हुए सरकार से एके 56 की मांग की कि उन्हें आत्मरक्षा के लिए चाहिए। और जब उन पर एफआईआर दर्ज हो गयी तो उन्होंने एक कदम आगे और चलते हुए कहा कि “मस्जिदों की गहरी खुदाई होनी चाहिए। अगर वहां से बौद्ध विहार निकले तो उनको भी वापस करना चाहिए!”
दरअसल हिन्दुओं के इतिहास को बौद्ध धर्म के बाद का मानते हुए लोग अब यह कहने लगे हैं कि बौद्ध धर्म सबसे प्राचीन है, उसके बाद हिन्दू धर्म पनपा और फिर इस्लाम आया। यह एजेंडा रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने आरम्भ किया और फिर उसे आगे बढाया कई इतिहासकारों एवं कथित दलित विचारक पत्रिकाओं ने!
कथित रूप से साहित्यकार रहे अजय तिवारी ने इस बहाने सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा कि अफ़गानिस्तान को इस्लामी राष्ट्र बनाने से पहले तालिबान ने बुद्ध की मूर्ति, प्राचीन संग्रहालय और हिंदू-मुस्लिम साझा संस्कृति की धरोहरें नष्ट की थीं। हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए यही सब भारत में हो रहा है। हालांकि ऐसी एक नहीं असंख्य सोशल मीडिया पोस्ट हैं जिनपर इस प्रकार की अभद्र टिप्पणी महादेव के विषय में की गई हैं। सांसद महुआ मोइत्रा ने भी भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की तस्वीर को साझा करते हुए घटिया टिप्पणी की।
यह उदाहरण इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जहां एक कथित रूप से बड़ी पत्रकार है तो वहीं दूसरे एक प्रोफ़ेसर और तीसरे एक कथित साहित्यकार और शायद प्रोफ़ेसर भी रह चुके हैं एवं चौथी महुआ मोइत्रा सांसद हैं! यह सभी लोगों को प्रभावित करते हैं एवं उनका दायरा भी कथित प्रभावशाली लोगों का होता है। जब कथित प्रभावशाली लोग मात्र इस बात से चिढ़कर कि हिंदुओं की चेतना के कारण उनके कथित विचारों वाली सरकार नहीं बन सकी है तो वह अब भाजपा के बहाने हिंदुओं के आराध्यों पर दिनोंदिन प्रहार कर रहे हैं।
यह भी बात समझ से परे है कि वह क्या है जो एक बड़े वर्ग को हिंदुओं एवं हिंदुओं के आराध्यों के प्रति इस घृणा से भर रही है। एक बड़ा वर्ग है जो औरंगजेब को नायक बनाते हुए यह कह रहा है कि दरअसल मंदिर तो किसी राजपूत ने ही तोड़ा था, क्योंकि मंदिर में गलत कार्य हो रहे थे! कैसी विडंबना है कि जो औरंगजेब मासिर ए आलमगिरी में यह लिखता है कि मंदिर तोड़ दिए जाएं और फिर मंदिर के टूटने का उल्लेख भी है, वह भी इन “कथित मुस्लिम प्रगतिशीलों एवं वाम तथा दलित लेखकों” को यह विश्वास नहीं दिला पा रहा है कि “उसने ही मंदिर तोड़े हैं!”
लखनऊ में प्रोफ़ेसर रविकांत ने भी यह झूठी कहानी सुनाई तो उनके खिलाफ भी आन्दोलन हुए और उन्हें समाजवादी पार्टी की यूथ विंग के अध्यक्ष कार्तिक पांडे ने थप्पड़ भी मारा। हालांकि कार्तिक पांडे को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। यह भी बहुत अजीब बात है कि जहां कार्तिक पांडे को प्रोफ़ेसर रविकांत के साथ हाथापाई करने को लेकर निलंबित कर दिया गया तो वहीं पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक अत्यंत चौंकाने वाला एवं हिन्दुओं को अपमानित करने वाला वक्तव्य दिया कि “हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, एक लाल झंडा रख दो पीपल के पेड़ के नीचे और मंदिर बन गया।” हालांकि बाद में उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा यह जान-बूझकर करा रही है!
एक और पत्रकार नगमा शेख ने बहुत ही गंदे शब्द प्रयोग किये और जिसके बाद उसे नौकरी से निकाल दिया गया। उन्होंने यह कहकर सफाई दी कि यह पोस्ट उन्होंने नहीं किया था।
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