महंत पन्ना कुएं मे कूदने से पहले नंदी के पास गए। आंखें बंद की और उनके कान में कहने लगे, ‘‘विपत्ति भगवान राम पर भी पड़ी थी। त्रिलोक स्वामिनी माता सीता को रावण हर ले गया था।
महंत पन्ना कुएं मे कूदने से पहले नंदी के पास गए। आंखें बंद की और उनके कान में कहने लगे, ‘‘विपत्ति भगवान राम पर भी पड़ी थी। त्रिलोक स्वामिनी माता सीता को रावण हर ले गया था। जब हनुमान जी माता की खोज में अशोक वाटिका पहुंचे और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा तो माता ने मना कर दिया और कहा, सीता की प्रतीक्षा ही श्रीराम द्वारा लंका के विनाश की प्रेरणा बनेगी।
यदि मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी तो कदाचित मुझे पाकर श्रीराम वापस चले जाएंगे। इसलिए हे पुत्र! मुझे प्रतीक्षा करने दो। हे नंदी महाराज! यही बात मैं आपको स्मरण करा रहा हूं। प्रतीक्षा करना, इस तीर्थ का उद्धार करने कोई न कोई अवश्य आएगा। माता सीता सा विश्वास रख प्रतीक्षा करना, मेरे हिस्से समाधि आएगी, आपके हिस्से प्रतीक्षा है शिव वाहन।’’ यह कहकर पन्ना कुएं में कूद गए।
आततायियों की फौज आई। अविमुक्तेश्वर क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया गया। नंदी जटायु से हत होकर यह देखते रहे, फिर एक दिन एक रानी आई। उसने महादेव को आंचल से उठाया। नंदी ने देखा उनके सिर पर मां अनसूया का वात्सल्य स्पर्श हो रहा था, पर नंदी की प्रतीक्षा शेष थी। सदियां बीतीं, युग बदला नंदी दिन गिन रहे थे।
एक दिन नंदी ने देखा अविमुक्तेश्वर क्षेत्र का पुनरुद्धार हो रहा है। उन्होंने सुना, नए भारत के राजा ने काशी का कायाकल्प करने का आदेश दिया है। एक दिन नंदी के शरीर को मां गंगा से आने वाली हवाओं ने छुआ। तीन सौ बावन साल लग गए मां गंगा को निहारे। नंदी का आनंद लौट आया। विश्वनाथ धाम की अलौकिकता लौट आई, पर नंदी अभी भी ज्ञानवापी तीर्थ की ओर देख रहे थे। महंत पन्ना को देख रहे थे.
नए भारत के राजा के खंडित कार्यों की कीर्ति पर नंदी का तप भारी पड़ा। उसे यह समझ में आया कि महादेव का काम अधूरा है। मां गंगा से किया हुआ वादा अधूरा है। उसने आदेश दिया कि ज्ञानवापी तीर्थ को मुक्त किया जाए। कुएं में समाधिस्थ महंत पन्ना मुस्कराए। नंदी की प्रतीक्षा पूर्ण होने को है।
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