चीन से मुकाबला करने को भारत अरुणाचल में बनाएगा दूसरा सबसे बड़ा बांध

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ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को अपनी ओर मोड़ने की योजनाओं पर लगातार काम कर रहा है चीन, चीन के प्रयासों से जल सुरक्षा सुनिश्चित करने और बाढ़ को कम करने में मदद मिलेगी

चीन ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को अपनी ओर मोड़ने की योजनाओं पर लगातार काम कर रहा है। इसी का मुकाबला करने के लिए भारत पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर दूसरा सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना बना रहा है। लगभग 50 हजार करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रस्तावित बांध से भारत को तिब्बत में नदी पर बांध बनाने के चीन के प्रयासों से जल सुरक्षा सुनिश्चित करने और बाढ़ को कम करने में मदद मिलेगी।

केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश के यिंगकिओंग में ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना बना रही है। लगभग 50 हजार करोड़ की लागत से बनने वाला यह प्रस्तावित जलाशय लगभग 10 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी का भंडारण करेगा। भारत ने यह फैसला ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलुंग त्सांगपो) पर विशाल बांधों के निर्माण की चीनी योजनाओं का मुकाबला करने के लिए किया है।

ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई 2,880 किमी. है, जिसमें से 918 किमी. भारत में बहती है। नदी में बहने वाले पानी का 75 प्रतिशत हिस्सा भारत के जलग्रहण क्षेत्रों से आता है। साथ ही गैर-मानसून मौसम में पानी का बड़ा हिस्सा तिब्बत में बर्फ पिघलने से नदी को मिलता है। ब्रह्मपुत्र में नदी के पानी को स्टोर या डायवर्ट करने का चीनी प्रयास भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और बांग्लादेश की जल सुरक्षा को चुनौती दे सकता है।

केंद्र सरकार ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के भीतर रणनीतिक महत्व की 15.6 किलोमीटर लंबी जुड़वां सड़क सुरंग बनाने जा रही है। लगभग 12,807 करोड़ रुपये लागत वाले इस प्रोजेक्ट से न केवल असम राज्य के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की सुरक्षा होगी बल्कि इस सुरंग के जरिए अरुणाचल प्रदेश की कनेक्टिविटी देश के अन्य हिस्सों से और मजबूत हो सकेगी।

सरकार का अनुमान है कि अरुणाचल के ऊपरी इलाकों में बांध निर्माण से बाढ़ के प्रभाव और चीन की इसे प्रेरित करने की क्षमता कम हो जाएगी। अरुणाचल प्रदेश के यिंगकिओंग में बांध निर्माण से पनबिजली उत्पादन के अलावा जल सुरक्षा को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, क्योंकि पानी को बारिश के मौसम में संग्रहित करके और जरूरत के समय छोड़ा जा सकता है।

ब्रह्मपुत्र नदी में 500 बीसीएम (अरब घन मीटर) पानी बह रहा है, जिसमें से 75 प्रतिशत से अधिक पानी भारत के जलग्रहण क्षेत्र से आता है। गैर-मानसून के मौसम में जब बर्फ के पिघलने से नदी को पानी मिलता है, तो भारत के जलग्रहण क्षेत्र में पानी नहीं होता है। इसलिए अगर वे गैर-मानसून मौसम में बांध बनाते हैं और पानी को डायवर्ट करते हैं तो इसका असर अरुणाचल प्रदेश से बांग्लादेश पर पड़ेगा।

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीनी बांध बन जाने के बाद भारत, बांग्लादेश समेत कई पड़ोसी देशों को सूखे और बाढ़ दोनों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि चीन अपनी मनमर्जी से कभी भी बांध का पानी रोक सकता है या बांध के दरवाजे खोल सकता है। ऐसी स्थिति में भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल की आपूर्ति भी बाधित हो सकती है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के भीतर रणनीतिक महत्व की 15.6 किलोमीटर लंबी जुड़वां सड़क सुरंग बनाने जा रही है। लगभग 12,807 करोड़ रुपये लागत वाले इस प्रोजेक्ट से न केवल असम राज्य के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की सुरक्षा होगी बल्कि इस सुरंग के जरिए अरुणाचल प्रदेश की कनेक्टिविटी देश के अन्य हिस्सों से और मजबूत हो सकेगी।

(सौजन्य सिंडिकेट फीड)

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