असम के अनूप सरमा ने नौकरी छोड़कर मत्स्य पालन करना शुरू किया। लगभग छह साल में ही उन्होंने 1.50 करोड़ रु. का कारोबार किया है। इसके साथ ही वे अनेक लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं
उत्तरी असम में गोहपुर शहर के पास जोकापुरा गांव के लोगों ने आपदा को अवसर में बदल दिया है। एक युवा मछली व्यवसायी अनूप सरमा के नेतृत्व में ग्रामीणों ने बता दिया है कि स्थिति चाहे कितनी ही विकट हो, उसका सामना करने से ही नई राह खुलती है। बता दें कि उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद अनूप एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के लिए काम करने लगे थे। इस दौरान उन्हें भारत के कई राज्यों में जाने और काम करने का अवसर मिला।
अनूप बताते हैं, ‘‘ एनजीओ में काम करने के दौरान देखा कि युवा कैसे नए विचारों के साथ नए-नए क्षेत्रों में कदम रखते हैं और सफल होते हैं। उन्हें देखकर मेरे मन में भी आया कि अपनी मातृभूमि में ही कुछ नया और बड़ा करना है। जब घर वालों से चर्चा की तो मेरे चाचा ने अपने गांव के पास की बंजर भूमि के बारे में बताया। हर साल आने वाली बाढ़ से किसानों ने इस जगह को लगभग छोड़ दिया था। मैंने वहां जाकर करीब 50 वर्ग किलोमीटर बंजर भूमि को गौर से देखा और इस पर कुछ नया करने के विचार के साथ घर लौटा।’
उन्होंने आगे बताया, ‘‘2015 में 10 एकड़ जमीन पर तालाब की खुदाई शुरू की। तालाब को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए एक विशाल तटबंध बनाया गया। इसमें अच्छा-खासा पैसा खर्च हुआ।’’ इस तालाब में पानी भरने के बाद उन्होंने मछली पालन का कार्य शुरू किया। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिक तरीका अपनाया। इसका इतना अच्छा लाभ मिला कि केवल छह साल में उन्होंने 1.50 करोड़ रु. का कारोबार कर लिया है।
अनूप न केवल खुद मछली पालन में लगे हैं, बल्कि उन्होंने 500 से अधिक स्थानीय किसानों को भी मछली पालन के लिए प्रशिक्षित किया है। इसके साथ ही वे ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने मत्स्य पालन को 32 तालाबों और नर्सरी में विभाजित किया और 20 परिवारों को प्रशिक्षित करके इस काम में लगाया। यानी वे अनेक लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं। आज सबकी मेहनत रंग ला रही है। गोहपुर उप-मंडल में मछलियों की जितनी खपत होती है, उसका 20 प्रतिशत हिस्सा जोकापुर गांव से ही जा रहा है। बता दें कि गोहपुर की आबादी लगभग 5,00,000 है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जोकापुर गांव में मत्स्य पालन का काम कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है। इस वर्ष अब तक यहां 90 टन मछली का उत्पादन हुआ है। अनूप को उम्मीद है कि 2022 के अंत तक यह 100 टन हो जाएगा।
अनूप न केवल खुद मछली पालन में लगे हैं, बल्कि उन्होंने 500 से अधिक स्थानीय किसानों को भी मछली पालन के लिए प्रशिक्षित किया है। इसके साथ ही वे ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कार्य कर रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने 20 से अधिक आनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित किए, जिनमें 1,000 से अधिक मत्स्य पालकों ने भाग लिया। अनूप सरमा गुवाहाटी विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में एमएससी हैं, लेकिन उन्होंने मछली पालन का कार्य शुरू करने से पहले यह नहीं देखा कि उन्होंने उच्च शिक्षा ली है।
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