ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में न्यायालय के निर्देश पर कड़ी सुरक्षा के बीच शनिवार से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में कमीशन (सर्वे) की कार्यवाही शुरू हुई। सोशल मीडिया में मस्जिद और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्षो पुराने फोटो भी वायरल हो रहे है। फोटो के जरिये लोग मंदिर के पुराने वैभव को भी साझा कर रहे हैं।
ज्ञानवापी को लेकर इतिहासकारों और पक्षकारों के दस्तावेजों व तस्वीरों की भी सोशल मीडिया में चर्चा बनी हुई है। लेकिन, खास बात यह है कि सभी लोगों का मानना है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब के आदेश पर मंदिर को तोड़कर ये ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। लोग 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के मंदिर तोड़ने का फरमान का हवाला दे रहे हैं।
एक इतिहासकार डॉ एएस भट्ट ने अपनी पुस्तक ‘दान हारावली’ में भी इसका उल्लेख किया है। मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद ने अपनी पुस्तक ‘मासीदे आलमगिरी’ में विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस का जिक्र किया है। काशी के इतिहास पर स्वतंत्र तौर पर शोध कर रहे बनारस बार के पूर्व महामंत्री अधिवक्ता नित्यानंद राय बताते हैं कि औरंगजेब के काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है। इतिहास में लिखे तथ्यों को रख नित्यानंद राय बताते हैं कि 1669 में औरंगजेब ने आक्रमण कर इस मंदिर को बड़ी क्षति पहुंचाई थी।
इसके बाद 1777 में इंदौर की रानी अहिल्या बाई ने विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। महाभारत काल से भी पहले इस मंदिर के होने का धर्मग्रन्थों में उल्लेख है। काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले का जिक्र 11 से 15वीं सदी के कालखंड में भी है। दिल्ली सल्तनत के तुग़लक़ वंश के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के काल में मंदिर पर हमले की बात होती है। इतिहास में लिखा गया है फ़िरोज शाह कट्टर सुन्नी मुस्लिम था। फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल (1351-1388) में कई मंदिरों को जबरन तोड़ कर मस्जिद बना दिया था। फिरोजशाह तुगलक ने अपने संस्मरण में लिखा है कि वह सुन्नी समुदाय का धर्मान्तरण सहन नहीं करता था, न ही उसे वह प्रयास सहन थे. जिसमें हिन्दू अपने ध्वस्त मंदिरों को पुनः बनायें।
उसने बहुत से शिया, महदी और हिंदुओं को मृत्युदंड सुनाया। उसने बहुत से हिंदुओं को सुन्नी इस्लाम में दीक्षित किया और उन्हें जजिया कर व अन्य करों से मुक्ति प्रदान की, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया । इतिहास में जिक्र है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे पहले बड़ा नुकसान लूट के लिए मोहम्मद गोरी ने पहुंचाया था। इतिहासकारों ने लिखा है कि मोहम्मद गोरी के मंदिर तोड़ने के बाद मंदिर का निर्माण धर्मप्राण काशी के लोगों ने फिर से कर दिया था । मंदिर पर 1447 में फिर जौनपुर के सुलतान महमूद शाह ने हमला बोल तोड़ दिया था। इसके बाद मुगल आक्रांता अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने 1585 में मंदिर को भव्य रूप से पुर्ननिर्माण कराया था।
मंदिर के भव्य स्वरूप को देख तब के मुस्लिम क्षत्रपों ने मुगल शासक शाहजहां को इसकी जानकारी दी और उसे मंदिर पर हमला करने के लिए सलाह दी। शाहजहां ने वर्ष 1632 में मंदिर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। काशी में मंदिर तोड़ने आये मुगल सैनिकों से दस दिनों तक बनारस की गलियों में नागरिकों ने जमकर संघर्ष किया। मंदिर बचाने के लिए बच्चे, औरतों तक ने अपने को बलिदान कर दिया। जबरदस्त प्रतिरोध के कारण मुगल सेना मुख्य विश्वनाथ मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया। शाहजहां के बाद औरंगजेब में 18 अप्रैल, 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। मुगल सैनिकों ने मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई लेकिन पूरे मंदिर को तोड़ नही पाये।
बाद में मंदिर के तोड़े गये भाग पर औरंगजेब के फरमान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया। सन 1752 के बाद मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होलकर ने विश्वनाथ मंदिर के मुक्ति के प्रयास किए, लेकिन तब तक ईस्ट इंडिया कंपनी का राज देश पर हो गया और मंदिर के पुनर्निर्माण का काम रुक गया। बाद में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने 1777-78 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा वर्तमान विश्वनाथ मंदिर बनवाने के बाद 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखर पर सोने का छत्र बनवाया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के तोड़े गये हिस्से में मंदिर के चिन्ह और गर्भगृह में शिवलिंग होने की बात उठती रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सामाजिक विज्ञान संकाय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा है ‘ज्ञानवापी’ का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था। ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन; लाइब्रेरी ऑफ़ काँग्रेस, वाशिंगटन; जे. पॉल गेट्टी म्यूज़ियम, कैलिफोर्निया, इत्यादि में विदेशी फ़ोटोग्राफ़रों द्वारा सन् 1859 से 1910 के मध्य लिए गए ज्ञानवापी के अनेक चित्र संगृहीत हैं। एक विदेशी फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न के द्वारा फोटो 1863-1870 के बीच लिया है। इसके नीचे लिखा है “ज्ञान वापी या ज्ञान का कुआं, बनारस”। तस्वीर में हनुमान जी की मूर्ति, घंटी एवं खंभों की नक्काशी दिखाई दे रही है। माना जाता है की मस्जिद के अंदर हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमा है। बताते चले, 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन के अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने वाद दायर किया था। 1998 में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से हाईकोर्ट में विरोध में दो याचिकाएं दायर की गई थी।
07 मार्च 2000 को वादी पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई। फिर 11 अक्टूबर 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को मुकदमे में वाद मित्र नियुक्त किया गया। मुकदमे में सुनवाई और दलीलों के बीच 8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर कर न्यायालय ने पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद इस आदेश के खिलाफ सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने वाराणसी की ज़िला अदालत में पुनरीक्षण याचिका दायर की। जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पांच सदस्यीय कमेटी की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की खुदाई का आदेश दिया गया था। इस मुद्दे पर एक मुक़दमा इलाहाबाद हाइकोर्ट में भी विचाराधीन है। ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी विवादित ढांचे की जमीन के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र हैं। 1991 में इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले हरिहर पांडेय का कहना है कि विवादित स्थिल के भूतल में तहखाना है व मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार है। उसे आज भी साफ तौर पर देखा जा सकता है। मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अतिरिक्त मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। इसका स्कंद पुराण में भी जिक्र है। वादी पक्ष का दावा है कि मौजूद ज्ञानवापी आदि विशेश्वर का मंदिर है, जिसका निर्माण 2,050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने करवाया था।
बाद में जब औरंगजेब ने फतवा जारी किया, उसके बाद 1664 में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी गई। अभी वर्तमान में जो ज्ञानवापी मस्जिद में न्यायालय के आदेश पर कमीशन की कार्यवाही चल रही है। इसके लिए दिल्ली निवासी राखी सिंह, बनारस की लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन के नेतृत्व में 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। महिलाओं ने काशी विश्वनाथ धाम-ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी और अन्य विग्रहों को 1991 के पूर्व स्थिति की तरह नियमित दर्शन-पूजन की मांग की है।
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