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आम आदमी का आपरेटिंग सिस्टम कैसे बना विंडोज

कंप्यूटर आपरेटिंग सिस्टम की स्पर्धा में यदि विंडोज सबसे ऊपर है तो उसका खुलापन है

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
May 11, 2022, 03:28 pm IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक
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कंप्यूटर आपरेटिंग सिस्टम की स्पर्धा में यदि विंडोज सबसे ऊपर बना हुआ है तो उसका कारण एकाधिकारी प्रवृत्ति न अपनाते हुए उसका खुलापन है

अगर पिछले 37 साल से कंप्यूटर आपरेटिंग सिस्टम की स्पर्धा में विंडोज सबसे ऊपर बना हुआ है तो इसके अनेक कारण हैं जिनमें से उसका खुलापन भी एक है। विंडोज एक तरह से आम आदमी का आपरेटिंग सिस्टम बन चुका है। हालांकि भारत में विंडोज की पाइरेसी बहुत ज्यादा होती है लेकिन हकीकत में विंडोज कोई बहुत महंगा आपरेटिंग सिस्टम नहीं है। वह आम आदमी की पहुंच में है। खासकर जब आप उसकी तुलना दूसरे सफल आपरेटिंग सिस्टम मैक ओएस से करें, जो कि सिर्फ एपल के कंप्यूटरों पर ही इस्तेमाल हो सकता है और एपल के कंप्यूटर तथा मैकबुक (लैपटॉप) आम आदमी की पहुंच में नहीं हैं।

दूसरी तरफ विंडोज आधारित कंप्यूटर बहुत सस्ती दरों पर भी उपलब्ध हैं, जैसे कि सिर्फ 15 हजार रुपये। इतनी रकम में भी मिलने वाले लैपटॉप और डेस्कटॉप में जेनुइन विंडोज मौजूद होगा। विंडोज आधारित कंप्यूटरों को आप मनचाहे कन्फिगरेशन में असेम्बल भी करवा सकते हैं और जब चाहें, जिस पुर्जे को बदलवाना चाहें (हार्ड डिस्क, ग्राफिक्स कार्ड, मदरबोर्ड, रैम आदि), बदलवा सकते हैं। उनकी मरम्मत भी बहुत सस्ती पड़ती है। जो लोग मैक कंप्यूटरों का इस्तेमाल करते हैं, वे जानते हैं कि उनकी मरम्मत कितनी महंगी है। इतनी कि कई बार सोचना पड़ता है कि मरम्मत के बजाए नया ही ले लिया जाए।

विजुअल स्टूडियो भी माइक्रोसॉफ्ट ने मुक्त स्रोत की श्रेणी में डाल दिया है और उसका नि:शुल्क वर्जन भी उपलब्ध है। यानी न तो सॉफ्टवेयर बनाने पर कोई बंदिश है और न ही सॉफ्टवेयर निर्माण के लिए प्रयुक्त प्लेटफॉर्म को खरीदने की जरूरत है, कम से कम सामान्य डेवलपर के लिए।

मैक ओएस के विपरीत, विंडोज आपरेटिंग सिस्टम से युक्त लैपटॉप और डेस्कटॉप बहुत सी कंपनियां बनाती हैं क्योंकि माइक्रोसॉफ़्ट ने इस आपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल अपना एकाधिकार बनाने के लिए नहीं किया। यह कंपनी लाखों पार्टनर कंपनियों के साथ काम करती है और उसका कहना है कि दूसरी कंपनियां (जैसे डेल, एचपी, लेनोवो आदि) अपने डेस्कटॉप और लैपटॉप का विनिर्माण करें और उसमें विंडोज को इन्स्टॉल करके बेचें, माइक्रोसॉफ़्ट को इसमें कोई दिक्कत नहीं है। ऐसा नहीं है कि विंडोज हमने बनाया है तो वह सिर्फ हमारे ही द्वारा निर्मित लैपटॉप या डेस्कटॉप में इस्तेमाल होगा। एपल की तुलना में इस रणनीति का माइक्रोसॉफ्ट के साथ-साथ आम लोगों को भी लाभ हुआ है क्योंकि जितनी बड़ी संख्या में कंपनियां बाजार में आएंगी, जितने अधिक कंप्यूटर ब्रांड आएंगे, दाम उतने ही घटेंगे। चूंकि मैक ओएस वाले सिस्टम सिर्फ एपल द्वारा बेचे जाते हैं इसलिए वह उनकी कीमत पर कठोर अंकुश रखता है। लेकिन चूंकि विंडोज वाले कंप्यूटर कोई भी बना सकता है, इसलिए उन पर मांग-आपूर्ति का नियम लागू होता है।

हालांकि लिनक्स आपरेटिंग सिस्टम विंडोज से भी सस्ता है, और इसके कुछ वर्जन (डिस्ट्रो) नि:शुल्क भी हैं, फिर भी वह लोकप्रिय नहीं है। कारण यह कि लिनक्स का प्रयोग उतना सरल और सुगम नहीं है जितना विंडोज का है। सुगमता के मामले में मैक भी विंडोज जितना सरल नहीं है। लिनक्स नि:शुल्क और मुक्त स्रोत सॉफ़्टवेयर की श्रेणी में आता है और उसके विकास में दुनिया भर में फैले तकनीकी स्वयंसेवक प्रोग्रामरों का हाथ है। तकनीकी दृष्टि से कुशल (जैसे प्रोग्रामर) लोगों के लिए तो लिनक्स का प्रयोग करना संभव है लेकिन आम आदमी के लिए उसका प्रयोग आसान नहीं है। हालांकि लिनक्स एक ठोस और मजबूत आपरेटिंग सिस्टम है और उसके पीछे जुटे स्वयंसेवक डेवलपरों की हार्दिक आकांक्षा है कि वह आम आदमी का आपरेटिंग सिस्टम बने। लेकिन नि:शुल्क होने के बावजूद वह आम आदमी को अपील नहीं कर पाया। लिनक्स पर इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयरों के नाम तक जटिल और तकनीकी हैं जैसे कि लिब्रे आॅफिस, जिम्प, एलएमएमएस, कजाम, केस्निप, एचटॉप आदि।

माइक्रोसॉफ़्ट ने हार्डवेयर की ही तरह सॉफ्टवेयरों के विकास में भी दूसरों को प्रोत्साहित किया। विंडोज के लिए सॉफ्टवेयर बनाने पर माइक्रोसॉफ्ट का एकाधिकार नहीं है बल्कि कोई भी कंपनी, फर्म या डेवलपर ऐसे सॉफ्वटेयर बना सकता है। इन्हें बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला विजुअल स्टूडियो भी माइक्रोसॉफ्ट ने मुक्त स्रोत की श्रेणी में डाल दिया है और उसका नि:शुल्क वर्जन भी उपलब्ध है। यानी न तो सॉफ्टवेयर बनाने पर कोई बंदिश है और न ही सॉफ्टवेयर निर्माण के लिए प्रयुक्त प्लेटफॉर्म को खरीदने की जरूरत है, कम से कम सामान्य डेवलपर के लिए।

इतना ही नहीं, एपल और गूगल अपने-अपने आपरेटिंग सिस्टमों के लिए एप्लीकेशन बनाने वाले डेवलपरों से उनकी बिक्री का एक हिस्सा लेता है। इसलिए कि वे एप्लीकेशन एपल और गूगल के प्लेटफॉर्म पर चलाए जाएंगे और उसके एप स्टोर से डाउनलोड किए जाएंगे। लेकिन विंडोज के मामले में ऐसा नहीं है। इसके लिए सॉफ्टवेयर बनाने वालों से माइक्रोसॉफ़्ट कोई शुल्क नहीं लेती। इन सभी वजहों से विंडोज पर हर काम करने के लिए बहुत बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। दूसरे आपरेटिंग सिस्टमों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)

Topics: लिनक्स आपरेटिंग सिस्टम विंडोजतकनीकी स्वयंसेवक प्रोग्रामरआम आदमीआपरेटिंग सिस्टमभारत में विंडोज की पाइरेसीWindows Piracy in Indiaमाइक्रोसॉफ़्टसॉफ्टवेयर
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