आम आदमी पार्टी एक ओर मुफ्त बिजली बांट कर बिजली संकट बढ़ा रही है, ऊपर से यह अफवाह भी फैला रही कि बिजली संकट के कारण सब कुछ ठप हो जाएगा। यही नहीं, वह कोयले की किल्लत पर सियासत भी कर रही है। जबकि देश में न तो कोयले की किल्लत है और न ही बिजली की। वास्तव में बिजली संकट का मुख्य कारण कुप्रबंधन है
एक तरफ आम आदमी पार्टी (आआपा) मुफ्तखोरी को बढ़ावा देती है, दूसरी तरफ अपनी गर्दन फंसने पर राजनीतिक वितंडा भी खड़ा करती है। ताजा मामला पंजाब में बिजली किल्लत से जुड़ा है। यह राज्य पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबा है। बिजली विभाग के पास गर्मी में बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति के लिए अतिरिक्त बिजली खरीदने तक को पैसे नहीं हैं। भीषण गर्मी में गांवों से लेकर शहरों तक में रोजाना घंटों कट लग रहा है। आम आदमी बेहाल है और उद्योगों में उत्पादन लगभग ठप है।
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार विज्ञापनों पर हर साल लगभग 1,000 करोड़ रुपये खर्च करती है। इतनी राशि में सरकार 200 मेगावाट की अपनी एक विद्युत इकाई लगा सकती है, जिससे बिजली क्षेत्र में दिल्ली अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। लेकिन दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर ही आरोप लगा रही है।
आआपा के मंत्री ने फैलाया भ्रम
इसे विडंबना ही कहेंगे कि बिजली संकट के बीच आआपा नेताओं ने भ्रम फैलाना भी शुरू कर दिया है। दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने तो यहां तक कह दिया कि बिजली संकट के कारण मेट्रो ट्रेन रुक जाएगी और अस्पतालों में अंधेरा छा जाएगा। उनके इस बयान के बाद एनटीपीसी को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। एनटीपीसी ने साफ किया कि उसकी विद्युत इकाइयां पूरी क्षमता से काम कर रही हैं और कोयले की स्थिति भी ठीक है। दूसरी ओर, पंजाब से आआपा के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने भी एक झूठ बोला। चड्ढा ने कहा कि कोयले की किल्लत को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की है। लेकिन जोशी ने ऐसी किसी भी भेंट से इनकार किया। उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी आदतन झूठ बोलती है।
देश में पर्याप्त बिजली उत्पादन
जानकार मानते हैं कि पूरे देश में बिजली का संकट है, लेकिन इसके पीछे कई कारण हैं। देश में बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 4 लाख मेगावाट हो गई है। देश में बिजली की मांग अपने उच्चतम स्तर पर भी 2 लाख मेगावाट तक ही पहुंचती है। इस साल अभी तक यह 2 लाख मेगावाट से कुछ ही ऊपर तक गई है। देश में बिजली की जितनी मांग है, उतना उत्पादन हम सिर्फ कोयला आधारित बिजली प्लांटों से ही कर सकते हैं। लेकिन इस बार बिजली की मांग और उत्पादन में भारी अंतर आ गया है। इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले और गैस की कीमतों में भारी तेजी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें 300 डॉलर प्रति टन से ज्य़ादा हो गई हैं, जो कि पिछले साल 50 डॉलर प्रति टन थी। देश में करीब 17 हजार मेगावाट क्षमता वाली इकाइयां ऐसी हैं, जो सिर्फ आयातित कोयले पर ही चलती हैं। महंगे कोयले की वजह से इनकी बिजली महंगी हो गई है, जिसे राज्य खरीद नहीं रहे। लिहाजा इन्होंने उत्पादन को काफी हद तक बंद कर दिया है।
देश में गैस आधारित बिजली उत्पादन क्षमता भी करीब 25 हजार मेगावाट है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गैस की कीमतें भी बहुत बढ़ गई हैं। लिहाजा इनकी बिजली भी महंगी हो गई है। इसलिए राज्य इनकी बिजली खरीदने में असमर्थ हैं, इसलिए गैस आधारित बिजली इकाइयों ने भी अपना उत्पादन बहुत कम कर दिया है।
चोरी-मुफ्तखोरी ने बिगाड़ा गणित
बिजली संकट का दूसरा सबसे बड़ा कारण मुफ्त बिजली और इसकी चोरी है। दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में मुफ्त बिजली का लालच देश की बिजली वितरण कंपनियों को और कंगाल कर रहा है। फिलहाल देश की बिजली वितरण कंपनियों को करीब 5 लाख करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। इस वजह से ये कंपनियां महंगी बिजली नहीं खरीद पा रहीं और बिजली कटौती कर रही हैं। दरअसल, बिजली उत्पादन की औसत कीमत 3.80 पैसे प्रति यूनिट है। अगर कोई राज्य मुफ्त बिजली की घोषणा करता है तो इसकी कीमत को कहीं और से पूरा करना ही होगा। लेकिन ज्य़ादातर राज्य सरकारें इसके समायोजन में अक्सर देरी करती हैं या इसे पूरी तरह से बिजली वितरण कंपनियों को नहीं देतीं। लिहाजा, बिजली वितरण कंपनियों का घाटा बढ़ता जाता है। नतीजतन, वे अतिरिक्त बिजली खरीदने में असमर्थ हो जाती हैं और बिजली कटौती कर अपने बजट को संतुलित करती हैं। पैसे की कमी की वजह से ये कंपनियां न तो अपने ट्रांसफार्मर बदल पाती हैं और न ही तारें। इसलिए बिजली की चोरी और इसका घाटा होता रहता है।
बिजली चोरी रोकने की तकनीक विकसित करने वाली कंपनी पीनेटिक्स के सह-संस्थापक विनोद फोतेदार के मुताबिक, बिजली की चोरी रोकना आसान है। बस राज्य की बिजली कंपनियों को अपना मन बनाना होगा। हम बिजली वितरण कंपनियों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम के जरिए यह बता सकते हैं कि कहां बिजली की चोरी हो रही है। लेकिन समस्या यह है कि राज्य बिजली वितरण कंपनियां ही इस चोरी को पकड़ने के लिए तैयार नहीं हैं
पूर्व केंद्रीय ऊर्जा सचिव अनिल राजदान बताते हैं कि मुफ्त की बिजली का मतलब है— बिजली उत्पादन ठप। देश में हर चीज की एक कीमत है, यदि आप वह कीमत नहीं चुकाएंगे तो फिर कोई कंपनी उसका उत्पादन क्यों करेगी? आज सब लोग महंंगे पेट्रोल की कीमत चुका ही रहे हैं। अगर वे बिजली की कीमत नहीं चुकाएंगे तो उसकी स्थिति ऐसी ही रहेगी। इसके अलावा, पारेषण और वितरण हृास (ट्रांसमिशन एवं डिस्ट्रिब्यूशन लॉस) भी एक बड़ा कारण है। देश में जितना बिजली उत्पादन होता है, उसका लगभग 20 प्रतिशत पारेषण और वितरण में क्षरित हो जाता है। यह बहुत अधिक है। दुनिया में पारेषण और वितरण हृास 10 प्रतिशत से अधिक नहीं है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जितनी बिजली पैदा हो रही है, उसमें से 20 प्रतिशत बिजली या तो चोरी हो रही है या फिर पुराने तारों और उपकरणों के कारण बरबाद हो रही है। बिजली पारेषण एवं वितरण घाटा पुराने ढांचे को नहीं बदलने की वजह से होता है। अगर तारें पुरानी होंगी और पुराने ट्रांसफार्मर नहीं बदले जाएंगे तो बिजली का यह घाटा और बढ़ेगा।
चोरी पकड़ने में रुचि नहीं
बिजली चोरी रोकने की तकनीक विकसित करने वाली कंपनी पीनेटिक्स के सह संस्थापक विनोद फोतेदार के मुताबिक, बिजली की चोरी रोकना आसान है। बस राज्य की बिजली कंपनियों को अपना मन बनाना होगा। हम बिजली वितरण कंपनियों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम के जरिए यह बता सकते हैं कि कहां बिजली की चोरी हो रही है। लेकिन समस्या यह है कि राज्य बिजली वितरण कंपनियां ही इस चोरी को पकड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। हमने कई राज्यों को बिजली चोरी पकड़ने वाली इस प्रणाली का प्रस्तुतीकरण दिया, लेकिन अभी तक किसी राज्य ने हमें इसके लिए डेटा तक उपलब्ध नहीं कराया है। अब हमने दिल्ली में बीएसईएस के साथ एक पायलट परियोजना शुरू की है, जिसमें हम डेटा का विश्लेषण करने के बाद बताएंगे कि किस क्षेत्र में कितनी बिजली चोरी हो रही है। हम उन घरों के बारे में भी बता सकेंगे, जिनमें बिजली की चोरी हो रही है।
अनिल राजदान के मुताबिक, हमारे पास बिजली उत्पादन की क्षमता मांग से अधिक है। यानी हमारे पास आवश्यकता से अधिक बिजली है। लेकिन जो स्थितियां बनी हैं, वे बहुत ही गंभीर हैं। हमारी कुछ इकाइयां उत्पादन नहीं कर रहीं, क्योंकि आयातित कोयले की कीमत काफी बढ़ गई है और कई राज्य महंगी बिजली खरीदने को तैयार नहीं हैं, जबकि बिजली कंपनियां सस्ती बिजली देकर घाटा उठाना नहीं चाहतीं। इसलिए बिजली की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर आ गया है। जरूरत इस बात की है कि जो बिजली इकाइयां उत्पादन नहीं कर पा रहीं, उनकी समस्याओं को दूर किया जाए। बिजली क्षेत्र में काफी सुधार की जरूरत है। साथ ही, जो बिजली हमारे पास है, उसका उपयोग सही तरह से किया जाए। हमारे बिजली उपकरण कम बिजली खपत करें, इसके लिए कुछ प्रयास हुए हैं, जिन्हें तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए।
अचानक गर्मी से बढ़ा संकट
वैसे तो हर साल गर्मियों में बिजली की मांग बढ़ जाती है, लेकिन इस बार मार्च में ही गर्मी बढ़ने से एकाएक बिजली की मांग में भारी तेजी आ गई। इससे हुआ यह कि बिजली उत्पादन इकाइयों के पास कोयले का स्टॉक तेजी से खत्म होने लगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले और गैस के महंगे होने से 30 से 40 हजार मेगावाट क्षमता वाली इकाइयों में उत्पादन अचानक कम हो गया। इसके कारण दूसरी इकाइयों पर बोझ बढ़ा और वहां भी कोयले का संकट आ गया। रेलवे को भी आनन-फानन में उत्पादन इकाइयों तक कोयला पहुंचाने के लिए पैसेंजर ट्रेनों तक को रद्द करना पड़ा।
देश में बिजली उत्पादन क्षमता
देश में 4 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इसमें से लगभग आधी यानी 2 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता कोयला आधारित बिजली इकाइयों (थर्मल प्लांट) की है। गैस आधारित इकाइयों की उत्पादन क्षमता 24 हजार मेगावाट है। कुल मिलाकर देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता में जैव र्इंधन का योगदान अभी भी 59 प्रतिशत बना हुआ है। वहीं, पनबिजली परियोजनाओं से करीब 46 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन होता है। पिछले कुछ सालों में नवीनीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी बहुत बढ़ा है। अब सौर, वायु और अन्य माध्यमों से एक लाख मेगावाट से अधिक बिजली का उत्पादन हो रहा है। यानी बिजली उत्पादन में नवीनीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत है।
हालांकि कोयला के अलावा, दुनिया बिजली उत्पादन के जिस माध्यम पर ज्यादा भरोसा करती है, वह है परमाणु बिजली संयंत्र। लेकिन भारत में परमाणु संयंत्रों से मात्र 6700 मेगावाट बिजली उत्पादन होता है, जो बहुत ही कम है। पूर्व ऊर्जा सचिव अनिल राजदान कहते हैं कि अब समय आ गया है कि हम कोयला आधारित इकाइयों के साथ परमाणु ऊर्जा पर भी ध्यान दें। हमारी बिजली का आधार फिलहाल कोयला है, लेकिन दुनिया के बड़े विकसित देशों ने परमाणु ऊर्जा पर भरोसा किया है। हमें भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। देश में बिजली उत्पादन के अगले तीन साल में 6 लाख मेगावाट तक पहुंचने की उम्मीद है। ऐसे में हमें बिजली उत्पादन के नए स्रोतों पर ध्यान देना होगा।
कोयला उत्पादन में कीर्तिमान
इस बार देश कोयला उत्पादन का कीर्तिमान बनाने जा रहा है। देश की सबसे बड़ी कोयला कंपनी और बिजली इकाइयों को मुख्य तौर पर कोयला आपूर्ति करने वाली कोल इंडिया इस बार 700 मिलियन टन कोयला उत्पादन करने जा रही है। जहां तक मार्च-अप्रैल का सवाल है, तो इस दौरान भी कोल इंडिया ने सबसे ज्य़ादा कोयला उत्पादित किया और बिजली उत्पादन इकाइयों को भेजा। कोल इंडिया ने अप्रैल में 661 लाख टन कोयले का उत्पादन किया। उसने इसी माह में 570.55 लाख टन कोयले का उठाव किया, जो नया कीर्तिमान है। थर्मल इकाइयों में कोयले की मारामारी को देखते हुए कोल इंडिया के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल भी आगे आए हैं। उन्होंने अपने कर्मचारियों को पत्र लिखकर कोयला उत्पादन बढ़ाने की अपील की है। साथ ही, प्राथमिकता स्तर केवल बिजली इकाइयों को कोयले की आपूर्ति की जा रही है। वहीं स्टील और अन्य उत्पादन इकाइयों को या तो कोयले की आपूर्ति रोक दी गई है या बहुत कम कर दी गई है।
लुधियाना के विक्रमजीत सिंह स्टील यूनिट चलाते हैं। पिछले 15 दिनों से रोज दिन में 4 से 5 घंटे बिजली की कटौती की जा रही है, जिससे उन्हें भारी घाटा हो रहा है। उनकी फैक्टरी का उत्पादन आधे से भी कम रह गया है। विक्रमजीत के मुताबिक, उन्हें नहीं पता कि बिजली कब जाएगी और कब आएगी। कर्मचारी फैक्टरी में आकर घंटों तक बिजली के आने का इंतजार करते रहते हैं। बिजली किल्लत के कारण उत्पादन लगभग ठप है और वे समय पर आॅर्डर भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
लुधियाना में विक्रमजीत जैसे कई हजार छोटे-छोटे फैक्टरी मालिक हैं, जो कि बिजली के अघोषित कट से परेशान हैं। इनमें से बहुत सारे लोगों ने इसी बिजली की गारंटी की वजह से आआपा को वोट दिया था। आआपा ने अपने चुनावी वादे में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने के साथ-साथ 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति की गारंटी का फॉर्म तक लोगों से भरवाया था। लेकिन अब पंजाब में आआपा की सरकार बनने के बाद लुधियाना समेत पंजाब के लोग बोल रहे हैं कि मुफ्त बिजली मिले या न मिले, लेकिन बिजली तो मिलनी चाहिए।
गृह मंत्री ने संभाली कमान
राज्यों में गहराते बिजली संकट को देखते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बिजली की कमान संभाल ली है। वे लगातार बिजली इकाइयों में कोयले की आपूर्ति पर नजर रखे हुए हैं। साथ ही, बिजली और कोयला मंत्रालयों से बात भी कर रहे हैं। 2 मई को ही उन्होंने कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी, रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव और ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह के साथ बिजली की स्थिति पर समीक्षा बैठक की थी। सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में उन बंद पड़ी बिजली इकाइयों को चलाने और उन्हें जल्द से जल्द कोयला उपलब्ध कराने को कहा गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले कुछ दिनों में बिजली की स्थिति बेहतर हो जाएगी, क्योंकि काफी पावर स्टेशनों पर कोयले की आपूर्ति हो गई है और रेलवे लगातार कोयले की ढुलाई के लिए पैसेंजर ट्रेनों पर प्राथमिकता दे रहा है।
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