कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए छत्तीसगढ़ की जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्हें भुला दिया, जिससे समाज का हर वर्ग आक्रोशित है और सड़कों पर उतर आया है। बढ़ते जनाक्रोश को कुचलने के लिए सरकार ने प्रदेश में धार्मिक रैलियों, धरना-प्रदर्शन, धार्मिक आयोजनों आदि पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार तानाशाही पर उतर आई है। भूपेश बघेल सरकार विपक्ष ही नहीं, जनता की भी आवाज को दबाने का हरसंभव प्रयास कर रही है। उसने इसी प्रयास में एक तुगलकी फरमान जारी कर धार्मिक आयोजनों, रैलियों, धरना-प्रदर्शन आदि पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह अघोषित आपातकाल का ऐसा दौर है, जिसमें असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है। इस पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा, ‘‘राजनीतिक संगठन, सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के संगठन व सामाजिक संगठनों के पास अपनी बात रखने का आंदोलन ही एकमात्र माध्यम होता है। सरकार उसे भी दबाना चाह रही है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर राजनीतिक संगठनों के अलावा प्रेस की आजादी भी छीन ली थी। भूपेश बघेल भी इसी रास्ते पर चल रहे हैं। इससे आम लोगों की आवाज दबाई जा रही है।’’
दरअसल, सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने दर्जनों लोकलुभावन वादे किए थे। इसमें ऐसे भी वादे थे, जिन्हें पूरा करना लगभग असंभव है। इसी पर भरोसा कर लोगों ने कांग्रेस को मौका दिया। लेकिन सत्ता में आने के साढ़े तीन साल बाद भी भूपेश बघेल सरकार ये वादे पूरे नहीं कर सकी। लिहाजा, जनता का धैर्य जवाब देने लगा। समाज का हर वर्ग आक्रोशित हो गया और आंदोलन, धरना-प्रदर्शन होने लगे। राज्य की कांग्रेस सरकार खुद को उसी तरह फंसा महसूस कर रही है, जैसा 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी फंसा महसूस करने लगी थीं। इसलिए उसने अंतत: तरीका भी वही निकाला, जैसा इंदिरा गांधी ने निकाला था। सरकार ने एक तुगलकी आदेश जारी कर प्रदेश भर के सभी निजी, सार्वजानिक, धार्मिक, राजनीतिक, अन्य संगठनों द्वारा प्रस्तावित आयोजनों, जिसमें भीड़ जुटती हो, पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इस आदेश में 19 शर्तें हैं, जिनका सख्ती से पालन करने की बात कही गई है। ये ऐसी शर्तें हैं, जिनका पालन कर कोई भी बड़ा धार्मिक/ राजनीतिक/ सामाजिक आयोजन संभव ही नहीं है। इसका सीधा मतलब यह है कि सरकार विपक्ष व जन संगठनों के विरोध प्रदर्शनों, असहमति की आवाज, धार्मिक भावनाओं एवं अभिव्यक्ति को कुचलना चाहती है। केवल कांग्रेस को ही अभिव्यक्ति एवं प्रदर्शन का अधिकार रह जाएगा। जाहिर है, इससे केवल कांगेस प्रेरित स्वेच्छाचारिता और दमन को बढ़ावा मिलेगा। इस आदेश की आड़ में वह लक्षित हमले करेगी।
इस आदेश में 8,12,13,14,15,18 और 19 में ऐसी शर्तें हैं, जो मौलिक अधिकारों का हनन करती हैं। कुछ शर्तों को पढ़ कर लगता है, मानो सरकार यह मान बैठी है कि ऐसे सभी आयोजनों के आयोजक तब तक अपराधी हैं, जब तक कि वे निरपराध साबित न हो जाएं। खुद को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी भी आयोजक की है। शासन उन्हें संदिग्ध मानेगा, मानो वे आदतन अपराधी हों। वास्तव में इस सनक भरे आदेश के तहत कांग्रेस सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और अपने खिलाफ असहमति की आवाज बुलंद करने वाले समूहों-दलों को चुन-चुन कर निशाना बनाने की फिराक में है। हालांकि आदेश जारी होने के बाद कांग्रेस ने केंद्र सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन, घेराव आदि किया, लेकिन उसे किसी तरह की अनुमति लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई। इस आदेश में सबसे आपत्तिजनक और असंवैधानिक बात यह है कि आयोजकों से यह हलफनामा लिया जा रहा है कि आयोजन के दौरान किसी भी तरह का कथित उल्लंघन होने पर सीधे उन पर कानूनी कार्यवाही होगी। यानी आयोजकों पर गिरफ्तारी की तलवार लटकती रहेगी।
वादों पर विश्वासघात
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने यदि घोषणा-पत्र में लोक-लुभावन वादे नहीं किए होते तो डेढ़ दशक की भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करना संभव नहीं था। चूंकि जनता अब कांग्रेस पर सहज भरोसा नहीं कर पाती, इसलिए पार्टी ने राज्य की धर्मप्राण जनता को भरोसे में लेने के लिए विधानसभा चुनाव के समय धार्मिक आस्था का दांव चला। उसने हाथ में गंगाजल लेकर सार्वजनिक कसम खाई कि वह वादों को पूरा करेगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन वादों से मुकर गई। कई मामलों में तो उसका आचरण वादों के विपरीत रहा। पार्टी ने शराबबंदी का वादा किया था, लेकिन शराब की होम डिलीवरी शुरू कर दी। संभवत: देश की यह पहली सरकार है, जिसने ऐसा कदम उठाया है। कोरोना काल में भी वह शराब की वैध-अवैध कमाई से अपना खजाना भरती रही। यही नहीं, कैबिनेट ने सभी सरकारी मोटलों-होटलों में बार बनाने के लिए अभियान चलाने जैसा फैसला लिया है। इसी तरह, मंडी शुल्क खत्म करने का वादा था, लेकिन इसे 150 प्रतिशत बढ़ा दिया।
आश्चर्य है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के तानाशाही रवैये पर अभिव्यक्ति की आजादी के झंडाबरदार ही नहीं, मीडिया ने भी चुप्पी साध रखी है। यह चयनित चुप्पी खतरनाक है।
किसानों को दो साल का धान का बकाया बोनस भी नहीं दिया। किसानों को कर्ज मुक्त करने का वादा कर समूचे प्रदेश को ही कर्जदार बना दिया। आलम यह है कि तीन साल के कार्यकाल में ही सरकार ने इतना कर्ज ले लिया, जो बीते 15 वर्ष में लिये गए कर्ज से अधिक है। वह 10 लाख युवाओं को 2,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने से भी मुकर गई और यह कहकर उन्हें मजाक का पात्र बना दिया कि वे गोबर चुन कर 30 हजार करोड़ रुपये कमाएंगे।
आंगनवाड़ी में काम करने वाली महिलाओं के लिए भी कई घोषणाएं की गई थीं, लेकिन एक निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए 17 हजार महिलाओं की रोजी-रोटी छीन ली। प्रदेश के अस्थायी कर्मियों को स्थायी करने का भरोसा दिलाया गया था, लेकिन उनकी छंटनी शुरू कर दी। यहां तक कि कोरोना महामारी के समय जिन अस्थायी कर्मचारियों ने जान जोखिम में डालकर संक्रमितों की सेवा की, उन्हें हालात सामान्य होते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
हर वर्ग में आक्रोस
इस तरह कांग्रेस के विश्वासघात की सूची लंबी होती गई, जिससे प्रदेश के हर वर्ग में भयंकर आक्रोश है। करीब साल भर से समाज का लगभग हर वर्ग सड़क पर है। सरकार ने तमाम हथकंडे अपना लिए, पर प्रदर्शनकारियों का हौसला नहीं तोड़ पाई। पुलिस गोलियां चलाती रही और आदिवासीगण सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर रायपुर पहुंचते रहे। सूबे के किसान और युवा आत्महत्या कर रहे हैं। आंदोलन के दौरान एक किसान की मौत हुई तो मुख्यमंत्री निवास के सामने भी आत्मदाह की घटना सामने आई। लेकिन मुख्यमंत्री बघेल ने मुआवजा के लिए जांच की बात कह मामलों को रफा-दफा कर दिया।
भाजपा इस मुद्दे पर काफी मुखर है और सभी सामाजिक संगठनों को साथ लेकर बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में है। पार्टी ने राज्य के हर जिले में प्रेस कांफ्रेंस कर 16 मई से जेल भरो आंदोलन की चेतावनी दी है। बकौल भाजपा प्रवक्ता व पूर्व मंत्री राजेश मूणत कहते हैं, ‘‘यह सवाल केवल राजनीतिक दलों का नहीं है। अपनी आजादी की रक्षा और लोकतांत्रिक अधिकार की बहाली के लिए समाज के सभी वर्गों व संगठनों को साथ आकर इसका विरोध करना होगा। शासन 15 मई तक यह काला आदेश वापस ले, अन्यथा पार्टी प्रदेश की जेलों को भरने से लेकर हर तरह का आंदोलन करने और बलिदान देने को विवश होगी और इसकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस की होगी।’’
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं, ‘‘आश्चर्य है कि विपक्ष में रहते हुए इन्हीं आंदोलनकारियों के पास जा-जा कर समर्थन के लिए हाथ फैला कर भूपेश बघेल आज यहां तक पहुंचे हैं। लेकिन सत्ता के मद में अब इनकी मांगों पर विचार करना तो दूर, इनकी आवाजें तक छीन लेने पर आमादा है कांग्रेस। इससे अधिक अनैतिक, असंवैधानिक, भर्त्सना लायक कदम किसी सरकार का और क्या हो सकता है भला?’’
आश्चर्य है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के तानाशाही रवैये पर अभिव्यक्ति की आजादी के झंडाबरदार ही नहीं, मीडिया ने भी चुप्पी साध रखी है। यह चयनित चुप्पी खतरनाक है।
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