कभी भोजपुरी गीत और गानों को सुनकर देश का एक बड़ा वर्ग अपने को गौरवान्वित महसूस करता था, लेकिन अब भोजपुरी गानों को लेकर विवाद होने लगा है। यह विवाद है जातिसूचक गाली देना या एक जाति के लोगों को दूसरी जाति के विरुद्ध भड़काना।
पिछले कुछ दिनों से बिहार में भोजपुरी गानों पर विवाद चल रहा है। अब यह मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंच गया है। कई लोगों ने उनसे मांग की है कि ऐसे गानों पर रोक लगाएं, जो समाज में जाति का जहर घोल रहे हैं। एक गाना देखिए— ‘यादव जी बना ल आपन बीवी।’ इसका अर्थ है— यादव जी अपनी पत्नी बना लीजिए। ब्राह्मणों पर बनाया गया है एक गाना है— ‘पांडे जी का बेटा हूं।’ इसके माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि पांडे का बेटा है तो रौब झाड़ेगा ही। एक और गाने का बोल है— ‘अइलु दूबे जी के बारात में, काहे डरा लू नाच में।’ यहां कहा गया है कि तुम दूबे जी की बारात में आई हो, खुलकर नाचो, डरो मत। एक और गाने में यह बताया गया है कि राजपूत की बारात है तो गोली चलेगी ही। वह गाना इस प्रकार है—’गोली चलेला बबुआन (राजपूत) के बारात में।’ वहीं एक गाने के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि आरा में केवल और केवल यादवों की चलती है। बोल देखिए— ‘आरा में चले ला अहिरान (यादव) की। इस गाने के माध्यम से जो संदेश दिया गया है वह बहुत ही आपत्तिजनक है। क्या इस गाने से एक जाति के कुछ बवाली लोगों को बदमाशी करने की प्रेरणा नहीं मिल रही है! आखिर ऐसे गानों की जरूरत क्या है!
एक अन्य गाने में तो दो जातियों को भड़काने की भरसक कोशिश की गई है। उस गाने को देखिए— ‘टोला अहिरान (यादव) के रंगदारी चली बबुआन के।’ अर्थात् क्षेत्र तो अहीर (यादव) का है, लेकिन रंगदारी, दादागिरि राजपूतों की चलेगी। इस गाने का एक ही उद्देश्य है यादवों और राजपूतों को आपस में भिड़ाना।
इन गानों को देखते हुए भोजपुरी गायक पवन सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से एक ऐसा कानून बनाने की मांग की है, जो जाति के जहर को रोक सके। वहीं, बिहार के कला संस्कृति मंत्री आलोक रंजन झा ने कहा है कि गानों में जाति की चर्चा समाज के लिए रुकावट है, ऐसा नहीं होना चाहिए। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ लोगों ने यह भी मांग की है कि भोजपुरी गानों के लिए भी सेंसर बोर्ड होना चाहिए।
टिप्पणियाँ