कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ कई दौर के चिंतन-मंथन, भारी-भरकम प्रेजेंटेशन के बावजूद चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) की कांग्रेस में सुधार की रणनीति धरी रह गई। ऐसा क्यों हुआ? कैसे हुआ? अब इन पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या पीके की रणनीति से कांग्रेस की मौजूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी सहमत नहीं थीं? क्या सोनिया अपने पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका वाड्रा की कांग्रेस में भूमिका को लेकर पीके के सुझावों से असहमत थीं? क्या कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल, अपनी बहन प्रियंका को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के पीके के सुझाव से असहज थे?
क्या पीके के सुझावों को लेकर गांधी परिवार में ही आम राय नहीं थी? या कांग्रेस के नेताओं में ही पीके को लेकर मुखालफत तारी थी? ये तमाम ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर या तो पीके दे सकते हैं या गांधी परिवार। कारण पिछले साल भी पीके के कांग्रेस का दामन थामने की चचार्एं चली थीं लेकिन बात नहीं बनी। हालांकि, इस बार उनकी कांग्रेस में एंट्री पक्की मानी जा रही थी। खुद पीके भी कांग्रेस का दामन थामने को तैयार थे। कारण कांग्रेस में सुधार के लिए पीके की बातचीत सीधे सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से हो रही थी। पीके ने देश में कांग्रेस की मजबूती और केंद्र की सत्ता में वापसी के लिए छह सौ स्लाइड्स के साथ एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी दिया लेकिन कहा जा रहा कि पेंच दो स्लाइड्स पर फंस गया।
- असल में तो पीके को लेकर गांधी परिवार में भी एक राय नहीं थी। राहुल पीके को लेकर बहुत सहज नहीं थे। यही वजह है कि वह सिर्फ एक बैठक में शामिल हुए, जबकि प्रियंका वाड्रा लगभग हर बैठक में मौजूद थीं। इसलिए कांग्रेस में गांधी परिवार के प्रति अलग-अलग निष्ठा रखने वाले कांग्रेस नेताओं ने पीके की रणनीति को पलीता लगा दिया।
- कांग्रेस ने पीके को एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप में शामिल होने का न्योता दिया था। यानी उन्हें कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं के एक ताकतवर समूह के साथ मिलकर काम करने की पेशकश की गई थी। जाहिर है, पीके खुद के लिए जिस तरह की स्वतंत्रता चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिल रहा था। वह चाहते थे कि पार्टी उनकी बनाई रणनीतियों की राह पर चले। लिहाजा बात नहीं बनी।
कांग्रेस में एक राय नहीं
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी की मानें तो पीके चाहते थे कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री दावेदार और पार्टी अध्यक्ष दो अलग-अलग शख्स हों। एक स्लाइड में पीके ने प्रियंका वाड्रा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया था जबकि पार्टी में एक तबका राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनते हुए देखना चाहता है। दूसरी स्लाइड वह थी जिसमें पीके ने गठबंधन राजनीति को लेकर कांग्रेस को सुझाव दिए थे। पीके का गठबंधन राजनीति को लेकर दिया गया सुझाव भी कांग्रेस को रास नहीं आया, उलटे संदेह पैदा हो गया। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी पीके की कई बातों से सहमत थीं पर राहुल और प्रियंका गांधी पर सुझावों को लेकर असहज थी।
‘‘पीके के साथ चर्चा और एक प्रेजेंटेशन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें एक समूह के हिस्से के तौर पर पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था।
-रणदीप सुरजेवाला
कांग्रेस प्रवक्ता
रही-सही कसर राहुल और प्रियंका समर्थक नेताओं ने पूरी कर दी। इसलिए बात नहीं बनी। असल में कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का खेमा भी पीके की भावी भूमिका को लेकर सहमा हुआ था और पचा नहीं पा रहा था। इसलिए जैसे ही कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा, 2024 के लोकसभा चुनाव में भावी प्रधानमंत्री कौन होगा, इन मुदृों पर पीके ने अपना सुझाव रखा, तभी यह तय हो गया था कि अब पीके की कांग्रेस से डील नहीं हो पाएगी। सवाल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के भविष्य का था। असल में तो पीके को लेकर गांधी परिवार में भी एक राय नहीं थी। राहुल पीके को लेकर बहुत सहज नहीं थे। यही वजह है कि वे सिर्फ एक बैठक में शामिल हुए, जबकि प्रियंका वाड्रा लगभग हर बैठक में मौजूद थीं। इसलिए कांग्रेस में गांधी परिवार के प्रति अलग-अलग निष्ठा रखने वाले कांग्रेस नेताओं ने पीके की रणनीति को पलीता लगा दिया।
पीके पर संदेह
वैसे कांग्रेस और पीके के बीच बात इसलिए भी नहीं बनी क्योंकि पीके ने कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत के बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव से मुलाकात कर ली। पीके की फर्म आइपीएसी ने राव की पार्टी टीआरएस के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया। लिहाजा पीके के सुझावों से असहज कांग्रेस को उनका राव से मिलना और टीआरएस के साथ उनकी डील रास नहीं आई। पीके को लेकर संदेह पैदा हो गया और एक बार फिर पीके कांग्रेसी होते-होते रह गए। इसके बाद कांग्रेस ने घोषणा की कि पीके ने कांग्रेस में शामिल होने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, ‘‘पीके के साथ चर्चा और एक प्रेजेंटेशन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें एक समूह के हिस्से के तौर पर पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था।
समूह की जिम्मेदारी साफ-साफ तय है। उन्होंने इसे ठुकरा दिया। हम उनके प्रयासों और पार्टी को दिए गए सुझावों की प्रशंसा करते हैं।’’ तो दूसरी ओर पीके ने भी ट्विटर कर यह बताया कि उन्होंने कांग्रेसी बनने के निमंत्रण को क्यों ठुकरा दिया। पीके ने ट्वीट कर बताया, ‘‘मैंने विशेषाधिकार प्राप्त कार्य समूह का हिस्सा बनकर कांग्रेस में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने की पार्टी की दरियादिली भरी पेशकश को स्वीकार करने से इनकार किया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरी विनम्र राय है कि मुझसे ज्यादा कांग्रेस को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि परिवर्तनकारी सुधारों के माध्यम से घर कर चुकी ढांचागत समस्याओं को दूर किया जा सके।’’
राज्यों में कांग्रेस की कलह
पंजाब – पंजाब कांग्रेस के दिग्गज नेता सुनील जाखड़ को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया गया। अनुशासन समिति की सिफारिश पर सोनिया गांधी ने पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ के खिलाफ कार्रवाई की। सुनील जाखड़ ने पंजाब चुनाव से पहले कहा था कि उन्हें इसलिए सीएम नहीं बनाया गया था क्योंकि वह हिंदू हैं। इसके अलावा उन्होंने तत्कालीन सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ भी बयान दिए थे। इस पर कई नेताओं ने ऐतराज जताया था और हाईकमान से उन पर कार्रवाई करने की मांग की थी।
गुजरात – पाटीदार आंदोलन के जरिए राजनीति में प्रवेश करने वाले और गुजरात कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए तो गुजरात में भी कांग्रेस की रार सामने आ गई। गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने हार्दिक पटेल को पार्टी के अंदरुनी मामलों को सार्वजनिक न करने की चेतावनी दी थी।
केरल — वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री केवी थॉमस को भी सभी पदों से हटा दिया गया है। उन्हें हाईकमान ने सीपीएम की ओर से आयोजित सेमिनार से दूर रहने को कहा था, लेकिन उन्होंने उसमें हिस्सा लिया था। उनके इस फैसले को पार्टी विरोधी गतिविधि माना गया था।
मेघालय— मेघालय के पांच पार्टी विधायकों को भी सोनिया गांधी ने तीन साल के निलंबित करने का फैसला लिया है। इन विधायकों पर आरोप था कि उन्होंने राज्य में भाजपा की मदद की थी।
संदेह और गलतफहमियां
दरअसल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी और पार्टी के सामने जो राजनीतिक चुनौतियां हैं, उससे पार पाने के लिए एक ‘एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024’ को बनाया है। जैसा कि नाम से ही साफ है कि यह एक्शन ग्रुप काफी ताकतवर होगा जिसके पास रणनीति तैयार करने के अलावा उस पर अमल कराने का भी अधिकार होगा। कांग्रेस ने पीके को इसी एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप में शामिल होने का न्योता दिया था। यानी उन्हें कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं के एक ताकतवर समूह के साथ मिलकर काम करने की पेशकश की गई थी।
जाहिर है, पीके खुद के लिए जिस तरह की स्वतंत्रता चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिल रही थी। वे तो यही चाहते थे कि पार्टी उनकी बनाई रणनीतियों की राह पर चले लेकिन यहां तो उनसे यह उम्मीद की जा रही थी कि वे कांग्रेस के कुछ चुनिंदा नेताओं के एक समूह के साथ मिलकर रणनीति बनाएं। ग्रुप के सभी नेताओं की जिम्मेदारियां भी पहले से तय रहेंगी। लिहाजा बात नहीं बनी। अब एक तरफ कांग्रेस कह रही है कि पीके को एक ‘स्पष्ट और तय’ जिम्मेदारी दी जा रही थी जबकि किशोर का दावा है कि उनसे ‘चुनावों की जिम्मेदारी’ लेने को कहा गया था। कई नेताओं को ऐसा लगता था कि चुनाव रणनीतिकार पीके दूसरी पार्टी से फायदा उठाने के लिए कांग्रेस का इस्तेमाल करना चाहते हैं। पीके से जुड़े करीबी लोगों का कहना है कि, संदेह और गलतफहमियां दोनों ओर थीं। एक अहम बात, कांग्रेस अपनी कमान किसी बाहरी व्यक्ति को देने के लिए इच्छुक नहीं थी और पीके अपने हाथ बंधे होने को लेकर हिचकिचा रहे थे।
अधिकारों पर जिच
वैसे मतभेद इस बात को लेकर था कि कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का प्लान कैसे लागू किया जाए। पीके बड़े बदलाव का वाहक बनना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ने को इच्छुक थी। पीके अपनी शर्तों पर कांग्रेस में जाना और काम करना चाहते थे। पीके का यह रवैया कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को पंसद नहीं आ रहा था। कांग्रेस के इन नेताओं को लग रहा था कि पार्टी से बाहर का कोई शख्स इतना ताकतवर ना हो जो उनका भविष्य तय करे। कांग्रेस में सुधार के लिए सक्रिय जी-23 नेताओं में शामिल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा भी कि कौन राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, कौन पीएम कैंडिडेट हो…ये सब पीके तय करना चाहते थे। और तो और, टिकट किसे दिया जाए, क्यों दिया जाए, ये भी पीके तय करेंगे। तो पार्टी के वरिष्ठ नेता और समर्पित कार्यकर्ता क्या करेंगे? एक ऐसा शख्स जिसकी न तो विचारधारा का पता और न ही जिसके कभी कोई चुनाव लड़ा। ऐसे शख्स पर इतना भरोसा क्यों।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस में नेतृत्व की कमी है? पार्टी को बाहर से लोगों को नियुक्त करना पड़ता है?’ बहरहाल लाख टके का सवाल यह कि केंद्र से लेकर राज्यों तक नेता, नीति और नीयत के संकट से जूझ रही कांग्रेस क्या कोई सबक लेगी?
जबकि कांग्रेस का नया अध्यक्ष तय हो, कांग्रेस की चुनाव को लेकर स्पष्ट रणनीति हो, कांग्रेस मजबूत हो, यही तो सुझाव हमारे यानी जी-23 नेताओं के भी हैं लेकिन हम कांग्रेस के सुधार की बात करते हैं, सुझाव देते हैं तो हमें कांग्रेस विरोधी मान लिया जाता है। राहुल और प्रियंका को लेकर पीके के सुझाव नए नहीं थे। सच तो यह पीके ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ धर दिया। लिहाजा कांग्रेस में गांधी परिवार को लेकर होने वाली सियासत में पीके खुद घिर गए और बड़े बेआबरू होकर इस वार्ता से निकल गए।
भाजपा की टिप्पणी
कांग्रेस के सुधारीकरण का सपना लेकर कांग्रेस नेताओं के पास जाने वाले पीके पर भाजपा ने भी निशाना साधते हुए उन्हें ‘सेल्मसमैन’ और ‘वेंडर’ बता डाला। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने पीके के विफल प्रयास पर कहा, ‘अगर उत्पाद खराब है, तो विक्रेता कितना भी अच्छा हो या होने का दावा कर रहा हो, आप परिवारवाद के उत्पाद को उसकी समाप्ति तिथि से पहले नहीं बेच सकते।’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस का एजेंडा ‘परिवार बचाओ (परिवार बचाओ) पार्टी बचाओ (पार्टी बचाओ)’ है और यही कारण है कि वे पार्टी के भीतर परिवर्तनकारी और संरचनात्मक सुधारों पर पीके के सुझावों से परेशान थे।
वहीं, पार्टी के एक अन्य प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने कहा कि मीडिया ने पीके को एक ‘सेलिब्रिटी’ बना दिया है। जबकि, ‘राजनीतिक दल चुनाव के दौरान विक्रेताओं का उपयोग करते हैं और वह एक विक्रेता हैं। आप उनका ट्रैक रिकॉर्ड देख सकते हैं। वह पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर हार गए हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस में नेतृत्व की कमी है? पार्टी को बाहर से लोगों को नियुक्त करना पड़ता है?’ बहरहाल लाख टके का सवाल यह कि केंद्र से लेकर राज्यों तक नेता, नीति और नीयत के संकट से जूझ रही कांग्रेस क्या कोई सबक लेगी?
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