उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के दिशा-निर्देश पर राज्य में फूड फार्मिंग के दो पायलट प्रोजेक्ट तैयार किये जा रहे है। फूड फार्मिंग में बिना रसायन, बिना खाद के प्राकृतिक रूप से खेती की जाती है।
उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के मुख्य वन संरक्षक डॉ संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि वन अनुसंधान विभाग राज्य में लालकुआं और मुक्तेश्वर में दो खेत तैयार करवा रहा है, जिसमें बिल्कुल प्राकृतिक रूप से खेती की जाएगी। इस पायलट प्रोजेक्ट में तालाब बनाकर मछली पालन किया जाएगा। उसके पानी को खेत में उपयोग किया जाएगा। अमरूद, पपीता, सेब के पौधों के बीच अरहर, मूंग की पैदावार होगी और खेत किनारे लेमनग्रास, तुलसी आदि के पौधे लगेंगे। उन्होंने बताया कि 1970 में ऑस्ट्रेलिया के जीव वैज्ञानिक बिल विलोविस ने इस तरह की खेती की शुरुआत की थी। इन छोटे जोत के खेतों में कोई भी खाद का इस्तेमाल नहीं होता। पछियों के आशियाने यहां पेड़ों पर बनेंगे। प्राकृतिक रूप से इन खेतों से उपज पैदा होगी। चतुर्वेदी ने बताया कि कोई समय ऐसा भी था कि जब खेती इसी स्वरूप से की जाती थी।
संजीव ने कहा कि यदि हम कामयाब हुए तो वन विभाग यहां होम स्टे बनाकर लोगों को प्राकृतिक भोजन और रहन-सहन के लिए आमंत्रित कर सकेगा। साथ ही साथ यहां पहाड़ के लोगों को रोजगार के लिए भी प्रेरित कर सकेगा।
निजी क्षेत्र में पहले से हैं ऐसे प्रोजेक्ट
उत्तराखंड के कोटाबाग क्षेत्र में हिमांशु जोशी ने अपनी आईटी की नौकरी छोड़ कर फॉरेस्ट फार्मिंग की शुरुआत की है। पिछले तीन साल से वह इस तरह की खेती कर रहे हैं। उनके यहां की दाल और अन्य उपज बाजार में उपलब्ध दाल की कीमत से ज्यादा होती है। अभी वह उड़द, मसूर, हल्दी, लहसुन, अदरक, अमरूद पपीता आदि की फसल प्राकृतिक रूप से उगा रहे हैं।
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