दिल्ली किसकी!

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पाञ्चजन्य ब्यूरो

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में जिस तरह से सच को अंधेरे में दफनाया गया और झूठ को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया, उससे यह भ्रम खड़ा हो गया है कि दिल्ली किसकी है? उस आक्रांता कुतुबुद्दीन ऐबक की, जिसने 12वीं सदी में महरौली क्षेत्र के 27 जैन मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों से कुतुब मीनार परिसर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनवाई और बाकायदा अरबी में इस तथ्य को पत्थर पर उकेरा या दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी की है, जिसने 14वीं सदी की शुरुआत में हिंदू राजाओं द्वारा उस समय शहर की सुरक्षा के लिए बनवाई गई बाहरी दीवार का विस्तार किया और जिन्हें वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों में दिल्ली के शिल्पकार के तौर पर स्थापित किया।

19 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस पर राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण द्वारा आयोजित विरासत सैर में रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल भी शामिल हुए थे

तमाम ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य यही बताते हैं कि दिल्ली की स्थापना हिंदू सम्राट अनंगपाल द्वितीय ने की थी। तोमर राजवंश ने यहां राज किया और इसे ढिल्लिकापुरी नाम दिया। ब्रिटिश पुरातत्वविद् जनरल कनिंघम द्वारा खोजे गए कई शिलालेखों से भी इसकी पुष्टि होती है। इसके बावजूद यह सच लंबे समय तक कागजों में दबा रहा। लेकिन वामपंथी इतिहासकारों द्वारा खड़ा किया गया भ्रम अब अधिक दिन नहीं टिकेगा। दिल्ली के वास्तविक संस्थापक को गुमनामी से निकालने के प्रयास शुरू हो गए हैं।

बीते 19 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण ने दिल्ली में अनंगताल और महरौली के आसपास एक ‘हेरिटेज वॉक’ का आयोजन किया था। इसका नेतृत्व भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक व राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व महानिदेशक डॉ. बी.आर. मणि और राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण के अध्यक्ष तरुण विजय ने किया, जबकि दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव ने इसे हरी झंडी दिखा कर रवाना किया था। इस विरासत सैर में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कई पुरातत्वविद्, इतिहासकार और शोधार्थियों सहित करीब 150 लोग शामिल थे। इसमें रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल भी थे। उन्होंने इस प्रयास की सराहना करते हुए ऐसे और स्मारकों का पता लगाने की अपील की। ​​इसके अगले दिन केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने भी इस स्थान का दौरा किया। इसके बाद 27 अप्रैल को केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी अनंगपाल द्वितीय द्वारा निर्मित ऐतिहासिक झील का दौरा किया और इसकी बदहाली पर नाराजगी जताई। उन्होंने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से ताल की शीघ्र साफ-सफाई करने को कहा। साथ ही, एएसआई से अनंग ताल का जीर्णोद्धार कर इसे मूल स्वरूप में लाने और इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के निर्देश दिए।

अनंगताल 11वीं सदी की मिनी झील है, जिसे दिल्ली के संस्थापक महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय ने 1052 ई. में बनवाया था। इस क्षेत्र के इतिहास से पता चलता है कि अनंगपाल द्वितीय ने ढिल्लिकापुरी की स्थापना की थी जो बाद में दिल्ली बन गई। अनंगपाल ने 1052 से 1060 ई. के बीच ढिल्लिका या ढिल्ली शहर की नींव रखी थी, जिसका उल्लेख बिजोलिया, सरबन और अन्य संस्कृत शिलालेखों में मिलता है।

एएसआई में रहते हुए डॉ. बी.आर. मणि ने 1993 से 1995 के बीच इस ऐतिहासिक स्थल की खुदाई करवाई थी। उस समय सूख चुकी मिनी झील का पता लगाने के लिए 50 गुणा 50 मीटर में चार कोनों पर खुदाई की गई थी। लेकिन अब इस ताल की ओर जाने वाली सीढ़ियां पूरी तरह से कूड़े और जंगली झाड़ियों के नीचे दब गई हैं। अनंग ताल में अब आसपास के नाले का पानी गिरता है। लेकिन कोई रख-रखाव नहीं होने और बढ़ते अतिक्रमण के कारण यह ताल धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि इसे संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसका अस्तित्व नहीं बचेगा। इससे पूर्व डॉ. मणि ने लाल कोट क्षेत्र, जहां हिंदू राजाओं के राज प्रासाद थे, तथा शहर की सुरक्षा दीवार कहे जाने वाले किला राय पिथौरा की खुदाई भी करवाई थी। इसमें ऐसे कई पुरातात्विक साक्ष्य मिले, जिससे पता चलता है कि दिल्ली के प्राचीन इतिहास पर तोमर वंश का प्रभाव था।

वहीं, तरुण विजय ने कहा, ‘‘अनंग ताल सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है, जो हमें दिल्ली की शुरुआत से जोड़ता है। लेकिन सात दशकों से उपेक्षा के कारण यह कूड़ेदान में पड़ा हुआ है। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार विश्व विरासत दिवस मना रहे हैं और अनंग ताल व दिल्ली के महान हिंदू राजा अनंगपाल द्वितीय से जुड़े स्मारकों के गौरव को पुन: स्थापित कर रहे हैं। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण ने एक आंदोलन शुरू किया है, जिसके तहत महाराजा अनंगपाल तोमर के स्मारकों को पुनर्जीवित किया जाएगा। संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने राजा अनंग पाल और उनसे संबंधित स्मारकों के बारे में गहरी रुचि ली है, इसलिए हमें विश्वास है कि इस महान ऐतिहासिक मिनी झील (अनंगताल) को पुनर्जीवित किया जाएगा, जो राजधानी में सबसे अधिक देखा जाने वाला स्मारक बनेगा।’’

तरुण विजय ने कहा कि जिस जगह पंजाब के महान सेनानायक वीर बंदा सिंह बहादुर बलिदान हुए थे, वे उस स्थान पर भी विरासत सैर की योजना बना रहे हैं। बंदा बहादुर ने न केवल मुगलों को पराजित किया था, बल्कि दो साहिबजादों की मौत का बदला भी लिया था। बाद में मुगलों ने निर्ममता से उनकी हत्या कर दी थी। उनकी स्मृति में महरौली में उस स्थान पर एक गुरुद्वारा बनाया गया है। हमारा कर्तव्य है कि वीर बंदा सिंह बहादुर के सर्वोच्च बलिदान का स्मरण किया जाए और उस स्मारक को सुंदर ढंग से और सम्मान के साथ रखा जाए, जिसका वह हकदार है।

कौन थे अनंगपाल द्वितीय?
कनिंघम ने अबुल फजल की आईन-ए-अकबरी में उल्लिखित सूची से और बीकानेर, ग्वालियर, कुमाऊं और गढ़वाल से मिली अन्य पांडुलिपियों से तोमर वंश के 19 राजाओं का पता लगाया। महाराजा अनंगपाल द्वितीय इस राजवंश के 16वें राजा थे। वे कुमारपाल तोमर की मृत्यु के बाद 1051 में राजा बने। तोमर राजवंश के समय उनकी राजधानी में बदलाव होता रहा। अनंगपाल द्वितीय ने अपनी राजधानी अनंगपुर से स्थानांतरित कर योगिनीपुर और महिपालपुर के बीच स्थित ढिल्लिकापुरी में स्थापित की। उन्होंने संवत् 1109 यानी 1052 ई. में लौह स्तंभ की स्थापना की और इसी को आधार बनाकर अनेक निर्माण कार्य कराए और लाल कोट नामक किला बनवाया। बलबनकालीन (1274 ई.) पालम बावली के अभिलेखों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में एक मंदिर परिसर था, जिसे योगिनीपुर कहा जाता था, जिसे बाद में तोमर काल में ढिल्ली या ढिल्लिका नाम से जाना गया। इसके अलावा, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के शिलालेख और अन्य अनुश्रुतियों के अनुसार, अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मंदिर बनवाए थे। लौह स्तंभ के पास ही उन्होंने अनंगताल नामक एक सरोवर भी बनवाया, जिसकी लंबाई उत्तर-दक्षिण में 169 फीट और पूर्व-पश्चिम में 152 फीट थी। इस सरोवर से थोड़ी दूर पर लौह स्तंभ को घेरते हुए एक विशाल भवन था। इन सब निर्माण के चारों ओर लाल कोट गढ़ बनवाया गया था। कुल मिलाकर ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह पता चलता है कि तोमर वंश के राज्यकाल में दिल्ली बहुत छोटा शहर था। पुरातात्विक साक्ष्य से अनंगपाल तोमर की इंजीनियरिंग क्षमताओं का भी पता चलता है। फरीदाबाद के पास स्थित अनंगपुर गांव में अनंगपुर दुर्ग है। अनंग बांध और सूरजकुंड जलाशय उस युग के जल संचय तकनीक के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। अनंगपाल द्वितीय की मृत्यु 1081 ई. में हुई थी। उन्होंने 29 साल, 6 माह और 18 दिन दिल्ली पर शासन किया।

डॉ. बी.आर. मणि बताते हैं कि लाल कोट की ऊंची दीवारें, विशाल बुर्ज और प्रवेश द्वार के अधिकांश हिस्से क्षतिग्रस्त होकर मलबे के नीचे दब गए हैं। यह दीवार मलबे से ढके हुए ढांचे को किले के अंदरूनी हिस्सों में अधम खान के मकबरे से इसके पश्चिम और उत्तर की ओर दक्षिणी द्वार के साथ रंजीत या गजनी गेट, फतेह बुर्ज और पूर्वी द्वार तथा गढ़ के सोहन बुर्ज, सोहन गेट के उत्तर की ओर घेरती है। अंतिम तीन द्वारों में इनकी सुरक्षा के लिए किए गए कार्यों के प्रमाण मिलते हैं। लगता है कि खिलजी काल में मूल राजपूत किला सोहन गेट के पूर्व की ओर कुतुब पुरातत्व क्षेत्र को घेरते हुए और अधम खान के मकबरे के पास समाप्त हो गया था, जहां यह मूल किलेबंदी से मिलता है, जिसका सबूत पहले की गई खुदाई से भी मिलता है। कुतुब के दक्षिण-पूर्व की ओर एक प्रवेश द्वार के अवशेष भी देखे गए हैं। लाल कोट के चारों तरफ दीवारें भी बनाई गई थीं, जिसे किला राय पिथौरा कहा जाता है। इसकी परिधि 6-7 किलोमीटर व लाल कोट की परिधि 3.6 किमी. और मोटाई 3 से 9 मीटर के बीच है। किले का कुल क्षेत्रफल 7,63,875 वर्ग मीटर है। इसकी प्राचीर एक खाई से घिरी हुई है और खाई के नीचे से कुछ स्थानों पर प्राचीर की ऊंचाई लगभग 20 मीटर है। छोटे-छोटे चौराहों पर 20 से 30 मीटर व्यास वाले अर्धवृत्ताकार बुर्ज हैं। माना जाता है कि अनंगपाल द्वितीय ने 1052 और 1060 ईस्वी के बीच लाल कोट का निर्माण कराया था।

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