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छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल, हर तरह के धरना-प्रदर्शन और रैली पर रोक

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने बढ़ते जनाक्रोश को कुचलने के लिए प्रदेश में धार्मिक रैलियों, धरना-प्रदर्शन, धार्मिक आयोजनों आदि पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं।

by पंकज झा
Apr 30, 2022, 03:08 pm IST
in भारत, छत्तीसगढ़
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छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने एक तुगलकी आदेश जारी किया है। सरकार ने प्रदेश भर के सभी निजी, सार्वजानिक, धार्मिक, राजनीतिक, अन्य संगठनों द्वारा प्रस्तावित आयोजनों पर, जिसमें भीड़ आती हो, उसे रोकने के लिए 19 बिन्दुओं की शर्तें लगाई हैं और उसका कठोरता से पालन सुनिश्चित करने को कहा है। इन शर्तों का पूरी तरह पालन कर कोई भी बड़ा धार्मिक/राजनीतिक/सामाजिक आयोजन संभव ही नहीं है। अतः सीधे तौर पर सरकार यह चाहती है कि जन संगठनों के विरोध प्रदर्शनों को, असहमति की आवाज़ को, विपक्ष को, धार्मिक भावनाओं को, अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचल दे।

इस आदेश में सबसे आपत्तिजनक और असंवैधानिक यह है कि आयोजकों से हलफनामा लिया जा रहा है कि आयोजन के दौरान किसी भी तरह के कथित उल्लंघन होने पर सीधे उन पर कानूनी कार्रवाई होगी। मतलब, अब प्रदेश में हर कार्यक्रम अंततः शासन के रहमोकरम का मोहताज रहेगा। जब भी शासन का मन होगा वह किसी न किसी शर्त के उल्लंघन के आरोप में आयोजकों को जेल में डाल देगी। उन पर गिरफ्तारी का तलवार लटकती रहेगी। यहां तक कि जान-बूझकर किसी आयोजन में अशांति पैदा कर भी उसके आयोजकों को जेल भेजा जा सकता है।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में बिना घोषित किये हुए ऐसा आपातकाल लगा देने का शायद अन्य कोई उदाहरण नहीं होगा। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं – ‘आश्चर्य यह है कि विपक्ष में रहते हुए इन्हीं आन्दोलनकारियों के पास जा-जा कर समर्थन के लिए हाथ फैला भूपेश बघेल आज यहां तक पहुंचे हैं। लेकिन सत्ता के मद में अब इनकी मांगों पर विचार करना तो दूर, इनकी आवाजें तक छीन लेने पर अब आमादा है कांग्रेस। इससे अधिक अनैतिक, असंवैधानिक, भर्त्सना लायक कदम किसी सरकार का और क्या हो सकता है भला?’

इस आदेश में उल्लिखित शर्तों के बिंदु 8,12,13,14,15,18 और 19 में खासकर ऐसे प्रावधान हैं जो सीधे तौर पर संवैधानिक मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। इनमें कुछ को पढ़ कर ऐसा लगता है मानो कांग्रेस यह मान बैठी है कि ऐसे सभी आयोजनों के आयोजक तब तक अपराधी हैं जब तक कि वे निरपराध साबित न हो जायें। और खुद को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी भी खुद आयोजक की है। शासन उन्हें ऐसा संदिग्ध मानेगा, मानो वे आदतन अपराधी हों।

इस सनक भरे आदेश के तहत कांग्रेस सरकार वस्तुतः अपने राजनीतिक विरोधियों को और खुद के खिलाफ असहमति का आवाज़ बुलंद करने वाले समूहों-दलों को चुन-चुन कर निशाना बनाने की फिराक में है। इसके तहत वास्तव में केवल कांग्रेस को ही अभिव्यक्ति एवं प्रदर्शन का अधिकार रह जाएगा। जैसा उसने इस आदेश के बाद भी बिना डीआरएम घेराव अनुमति अनेक कार्यक्रम कर साबित भी किया है। कांग्रेस की स्वेच्छाचारिता और दमन इससे बढेगा। वह इस आदेश की आड़ में लक्षित हमले करेगी।

भाजपा इस विषय पर काफी मुखर और आंदोलित दिख रही है। वह सभी सामजिक संगठनों को साथ लेकर इस मुद्दे पर बड़ा आन्दोलन करने की तैयारी में है। बकौल भाजपा प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेश मूणत – ‘यह सवाल केवल राजनीतिक दलों का नहीं है। समाज के सभी वर्गों, संगठनों को सामने आ कर अपनी आज़ादी की रक्षा और लोकतांत्रिक अधिकार की बहाली हेतु साथ आ कर इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। शासन 15 दिन के भीतर अपना यह काला आदेश वापस ले, अन्यथा पार्टी प्रदेश की जेलों को भरने से लेकर हर तरह का आंदोलन करने और बलिदान देने, सड़क पर उतरने को विवश होगी और इसकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस की होगी।’

कांग्रेसी आपातकाल के खिलाफ पूर्व में भी आज़ादी की दूसरी लड़ाई लड़ कर जैसे देश ने जीत हासिल की थी, उसी तरह का यह विषय भी प्रदेश के लोगों के मौलिक अधिकार, उसके जीवन से जुड़ा हुआ है। कांगेस के इस फितूर से एक बार फिर यह साबित हुआ है कि सिविल सोसाइटी को, नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहना होगा। ऐसा नहीं होने पर कब कांग्रेस जैसी पार्टी अपना लोकतांत्रिक लबादा उतार कर ‘इंदिरा सिंड्रोम’ का शिकार हो जाय, कहना कठिन है। हालांकि इस मामले में समाचार जगत की चुप्पी भी उतनी ही खतरनाक है जितनी यह साज़िश, इसे भी मद्देनज़र रखना चाहिए।

Topics: लोकतांत्रिक लबादाReligious/Political/Social Eventsभूपेश बघेल‘इंदिरा सिंड्रोम’
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