उत्तराखंड के जंगलों में सैकड़ों मजारे, दरगाहें बनने की खबरों के बीच अब कई गांव, कस्बों में कबाड़ियों के बिना सत्यापन के आने पर लोगों मे गुस्सा देखा जा रहा है। राज्य के डीजीपी अशोक कुमार ने बताया है कि पूरे राज्य में बाहरी लोगों के सत्यापन का काम चल रहा है और सदिंग्ध लोगों की पहचान हुई है।
अल्मोड़ा जिले के मानिला क्षेत्र के दुनैणा गांव में एक चार मिनारा जियारत स्थल बना दिया गया है। खास बात ये है कि मानिला मंदिर शक्तिपीठ के निकट इसे बनाया गया है। बनाने वाले और कोई नहीं यहां आसपास काम करने वाले मजदूर हैं, जो बरसों पहले यहां आये और स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल गए। इस मजार का वीडियो भी गांव वालों ने वायरल किया है। गांव के युवक इस बात को लेकर खफा हैं कि इसे बनवाने में गांव के दबंग लोग शामिल थे, जिनके अधीन ये मजदूर इस समय काम करते हैं।
कालागढ़ से लेकर रामनगर तक सात से आठ मजार
उधर एक जानकारी और भी मिली है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में कालागढ़ से लेकर रामनगर तक सात या आठ मजार कालू सैय्यद बाबा के नाम से हैं। घने संरक्षित जंगल में ये मजारे किसने और कब बना दी? कॉर्बेट के जंगल में शोध करने वाले डॉ शाह बिलाल बताते हैं कि माना कि कोई सिद्ध बाबा होंगे भी तो उनकी एक मजार होगी, ये इतनी मजारे कैसे हैं? श्री बिलाल बताते हैं कि जिन वाइल्डलाइफ सेंचुरी में या टाइगर रिजर्व में इंसानों का जाना मुश्किल होता है वहां आपको मजार दिख जाएगी, जबकि इनका पहले जंगल के अभिलेखों में कहीं जिक्र नहीं है।
रोहिंग्या और बांग्लादेशी
जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में नदियों किनारे वन भूमि है और यहां से खनन होता है। हजारों की संख्या में मजदूर यहां आकर झोपड़ियां डाल कर बसते जा रहे हैं और इनमें ज्यादातर रोहिंग्या और बांग्लादेशी होने की बात कही जा रही है। इनका वन विभाग या पुलिस ने कभी सत्यापन नहीं करवाया। जब भी कुछ सख्ती की जाती है तो ये भाग जाते हैं और फिर विभागों को मजदूर नहीं मिलते तो राजस्व का रोना रोकर इनके सत्यापन की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। ये भी बताया गया कि ससंगठित क्षेत्र के इन मजदूरों का पंजीकरण यदि करवाया जाए तो हकीकत सामने आ जाएगी।
मजदूरों की बस्तियों के बीच दो से तीन मजारें
एक और जानकारी मिली है कि नदी किनारे डेरा डाले इन मजदूरों की बस्तियों के बीच में दो से तीन मजारें जरूर मिल जाएंगी। रामनगर, हल्द्वानी, बाजपुर, हरिद्वार, टनकपुर आदि क्षेत्रों में कम से कम दो लाख मजदूर बिना किसी सत्यापन के रह रहे हैं, न इनके पास आधार कार्ड है, न ही कोई पहचान पत्र। इनमें ज्यादातर रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं क्योंकि ये भाषा बोली से ही पकड़ में आते हैं।
गांवों के बाहर स्थानीय लोगों ने लगा दिए बोर्ड
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा राज्य में बाहरी लोगों के सत्यापन कराए जाने की घोषणा के बाद पुलिस महकमा हरकत में है। इसके कई गांवों के बाहर स्थानीय लोगों ने बोर्ड लगा दिए हैं कि कबाड़ी, फेरी वाले बिना प्रधान की अनुमति के गांव में प्रवेश नहीं करेंगे। कुछ गांवों से ऐसे भी वीडियो सामने आए हैं, जिसमें स्थानीय गांव वासी कबाड़ियों और फेरी वालों से उनके सत्यापन पत्र मांगते देखे जा रहे हैं, जिन्हें वो नहीं दिखा पा रहे हैं और लोगों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं।
करीब 48 हजार लोगों का सत्यापन
उत्तराखंड में बढ़ती मुस्लिम आबादी और रोहिंग्या, बांग्लादेशी लोगों की घुसपैठ की खबरों पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पुलिस-प्रशासन को बाहरी लोगों के सत्यापन करने को कहा था। इस बारे में डीजीपी अशोक कुमार ने बताया है कि करीब 48 हजार लोगों का सत्यापन हुआ है, जिनमे से 2087 से ज्यादा लोगों के चालान किए गए हैं। ये किरायेदार , फेरीवाले और मजदूर हैं।
टिप्पणियाँ