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सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम बेटियों को तो फिर समान नागरिक संहिता का क्यों विरोध कर रहा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ?

वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि समान नागरिक संहिता से सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिमों को होगा।

by Sudhir Kumar Pandey
Apr 27, 2022, 12:50 am IST
in भारत
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि समान नागरिक आचार संहिता अल्पसंख्यक विरोधी है

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि समान नागरिक आचार संहिता अल्पसंख्यक विरोधी है

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उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारों के समान नागरिक आचार संहिता लागू करने की पहल का विरोध शुरू हो गया है। मुसलमानों के संगठन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे गैर संवैधानिक करार देते हुए संविधान में खुला हस्तक्षेप करार दिया है। बोर्ड का कहना है कि यह अल्पसंख्यक विरोधी है और मुसलमानों को किसी भी सूरत में कबूल नहीं है। इससे पहले भोपाल में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं हमारी सरकार राम जन्मभूमि, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों को हल कर चुकी है, अब समान नागरिक संहिता की बारी है। उत्तराखंड में इसका प्रयोग किया जाएगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि समान नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा लाभ मुस्लिम और पारसी बेटियों को मिलेगा। हिंदू मैरिज एक्ट में बेटा-बेटी को समान अधिकार है, इसलिए समान नागरिक संहिता से हिंदू बेटियों को कोई फायदा नहीं मिलेगा। इसके बावजूद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहा है। मुस्लिम संगठनों ने इससे पहले तीन तलाक पर आए कानून का भी काफी विरोध किया था। महिलाओं के खिलाफ इस बोर्ड ने अपमानजनक टिप्पणी भी की थी।

ये कह रहा है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी का कहना है कि संविधान ने देश में बसने वाले हर नागरिक को अपने मजहब के अनुसार जीवन गुजारने की अनुमति दी है और इसको बुनियादी अधिकार में शामिल किया गया है। इस हक के तहत अल्पसंख्यकों, जनजातीय वर्गों के लिए उनकी मर्जी और इनके संस्कारों के अनुसार उनके पर्सनल लॉ अलग-अलग रखे गए हैं। इससे देश को कोई नुकसान नहीं होता है। भविष्य में कई जनजातीय बगावतों को खत्म करने के लिए मांगों को कबूल किया गया है ताकि वे परम्पराओं को निभा सकें। मौलाना खालिद का कहना है कि समान नागरिक संहिता बेवक्त की रागिनी है। यह अल्पसंख्यक विरोधी और संविधान विरोधी कदम है। यह मुसलमानों को कबूल नहीं है।

क्या कहते हैं सीएम धामी
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पांचजन्य संवाद में कहा था कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर चुनाव से पूर्व किए अपने वायदे को पूरा करने की दिशा में हमने महत्वपूर्ण् कदम उठाया। सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया गया कि राज्य में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिये विशेषज्ञों की समिति बनाई जाएगी। न्यायविदों, सेवानिवृत्त जज, समाज के प्रबुद्जनों और अन्य स्टेकहोल्डर्स की एक कमेटी गठित की जाएगी, जोकि उत्तराखंड राज्य के लिये यूनिफार्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति एवं शांतिपूर्ण वातावरण को बनाए रखने के लिये जरूरी है कि अराजक तत्व राज्य में प्रवेश न कर पाएं। इसके लिये उन्होंने प्रदेशभर में व्यापक स्तर पर नागरिकों का सत्यापन अभियान चलाने का निर्देश दिया है।

क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील

वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि समान नागरिक संहिता पर दोबारा चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है। 23 नवंबर 1948 को संविधान सभा में विस्तृत चर्चा हुई थी। दोनों पक्षों ने दलीलें दीं। जो लोग पर्सनल लॉ चाहते थे, उन्होंने सबसे पहले अपनी बात रखी थी। जिस बात पर 75 साल पहले चर्चा हो गई थी तो क्या उस पर दोबारा चर्चा होनी चाहिए? यदि समान नागरिक संहिता संविधान में नहीं होती तो उस पर चर्चा करने की जरूरत थी। विस्तृत चर्चा के बाद यह आया है तो इसे लागू करें। इसे लागू करने में वैसे भी बहुत देर हो चुकी है।

https://twitter.com/PILManofIndia/status/1518886264618897408

अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि यूनिफार्म सिविल कोड से सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिमों को होगा। उसके बाद ईसाइयों और पारसियों को होगा। हिंदुओं में बेटे और बेटी को लगभग समान अधिकार मिल चुके हैं। हिंदुओं को इससे कोई फायदा नहीं होगा। लोगों को भड़काया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता लागू होने की वजह से काजी निकाह नहीं पढ़ा पाएंगे। इससे इसका कोई लेना-देना नहीं है। हिंदू सात फेरे लेते रहेंगे। मुस्लिम में काजी निकाहनामा पढ़ाते रहेंगे। सिख, क्रिश्चियन अपनी परंपरा के अनुसार विवाह करते रहेंगे। समान नागरिक संहिता वास्तव में समानता का मामला है। लैंगिक समानता का मामला है। यह हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है, यह बेटियों के अधिकार का मामला है। उन्होंने इसका वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है।

क्या कहती है समान नागरिक संहिता

  1. लड़के और लड़की की शादी की उम्र बराबर हो जाएगी। इससे मुस्लिम बेटियों को फायदा होगा। मुस्लिम बेटियों में शादी की उम्र अभी नौ साल है। वे अभी पढ़ नहीं पातीं, वो पढ़ पाएंगी। मानसिक, आर्थिक रूप से मजबूत होंगी।
  2. तलाक के नियम सभी के लिए बराबर होंगे। मुस्लिमों में तीन तलाक खत्म हुआ है, बाकी तलाक चल रहे हैं। इसलिए मुस्लिम बेटियों को इसका लाभ मिलेगा।
  3. एक पति और एक पत्नी का नियम सभी पर लागू होगा
  4. गोद लेने का नियम और प्रक्रिया एक जैसी होगी।
  5. विरासत का अधिकार, वसीयत का अधिकार। यह हिंदुओं में बराबर का हो चुका है। मुस्लिम में इस तरह का नहीं है। मुस्लिम में शौहर को अधिक अधिकार है।

Topics: पुष्कर सिंह धामीUniform Civil Codeअमित शाहसमान नागरिक संहितामुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डAIMPLBMuslim Personal Law Boardअश्विनी उपाध्याय
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