एक-एक कर भारत के पड़ोसी देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। विदेशी कर्ज के कारण पहले श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराया और अब नेपाल वित्तीय संकट के मुहाने पर खड़ा है। बैंक नकदी संकट से जूझ रहे हैं। नेपाल के अर्थशास्त्री बीते कुछ महीनों से आर्थिक संकट की चेतावनी दे रहे थे। बीते साल दिसंबर में नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) ने 10 वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने वाले कदमों की घोषणा भी की थी।
इसके बावजूद आयात बिल बढ़ता गया। नतीजा, देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता गया। आज नेपाल इस स्थिति में पहुंच गया है कि केवल आवश्यक वस्तुओं का आयात कर सकता है। फिर भी विदेशी मुद्रा भंडार बमुश्किल 7 माह ही टिकेगा। अर्थशास्त्रियों को डर है कि नेपाल की स्थिति भी श्रीलंका जैसी हो सकती है। हालांकि सरकार ऐसा नहीं मानती। वहीं, देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के लिए राजनीतिक दल एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं।
प्रमुख विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल इसके लिए नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली गठबंधन सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है, जबकि माओवादी नेता व वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा पूर्ववर्ती सरकार की अदूरदर्शी नीतियों को दोषी बता रहे हैं। अर्थशास्त्री भी सरकार को ही दोषी मान रहे हैं।
नेपाल अपने विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम उत्पादों, भोजन, कपड़े, वाहनों व उद्योगों के लिए कच्चे माल के आयात पर खर्च करता है। लेकिन आर्थिक संकट को देखते हुए देश के केंद्रीय बैंक एनआरबी की सिफारिश पर सरकार ने अधिकांश वस्तुओं के आयात पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है ताकि विदेशी मुद्रा भंडार बचा रहे व देश को बड़े आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप
सरकार का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा है। इसके कारण मार्च 2020 से पर्यटन उद्योग ही नहीं, दूसरे व्यवसाय भी प्रभावित हुए हैं। हालांकि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए एनआरबी ने 5 प्रतिशत ब्याज पर पर्यटन, लघु व मध्यम उद्योगों को करीब 153 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज भी दिया। लेकिन इसका इस्तेमाल कारोबार संभालने में नहीं किया गया। ऋण कम ब्याज पर मिला था, इसलिए लोगों ने शेयर बाजार में पैसा लगा दिया।
देश के पूर्व वित्त मंत्री युवराज खतिवडा का कहना है कि मौजूदा आर्थिक संकट के पीछे मुख्य कारण कारोबार में अनियमितता, अदृश्य व्यापार, तरल संकट और प्रेषण में गिरावट है। आयात पर रोक के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। जब सरकार जागी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
एनआरबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक नर बहादुर थापा का कहना है कि मदद के तौर पर मिली राशि का प्रयोग जमीन खरीदने में किया गया। हालांकि सस्ती दर पर कर्ज का लाभ उन्हें नहीं मिला जो इसके हकदार हैं या वास्तव में जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत थी। राजनीतिक रसूख की बदौलत जो लोग सस्ती दर पर ऋण लेने में सफल रहे, उन्होंने व्यवसाय के बजाय प्रतिभूतियों या जमीन खरीद-बिक्री में पैसा लगाया। विलासिता की वस्तुओं में अधिक निवेश किया, जिससे आयात बिल बढ़ा। इससे मुद्रा भंडार प्रभावित हुआ व देश का चालू खाता घाटे में चला गया। मांग और आपूर्ति को नियंत्रित करने की कोशिश में एनआरबी की सख्ती का भी आर्थिक सेहत पर असर पड़ा है।
थापा ने कहा कि एक नियामक के तौर पर एनआरबी को परिस्थिति के अनुसार, एक नीति अपनाने की जरूरत थी। लेकिन वह कठोर नीति बनाना चाहता था, क्योंकि बाजार में बहुत पैसा था, जिसे बेतरतीब खर्च किया गया। इसका फायदा अमीर लोगों ने उठाया और विलासिता की वस्तुओं का आयात किया, जिसने नकारात्मक रूप से विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित किया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य पदार्थों से लेकर पेट्रोलियम पदार्थ तक, हर चीज की बढ़ती कीमतों ने भी संकट को बढ़ाया। आलम यह है कि चालू वित्त वर्ष के पहले सात माह के दौरान 97 अरब रुपये की तुलना में घाटा बढ़ कर 247 अरब रुपये तक पहुंच गया है। वहीं, चालू घाटा 213 अरब रुपये पर पहुंच गया है, जो एक साल पहले 104 अरब रुपये था। विशेषज्ञ इसका कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की कमी को मानते हैं। व्यापार घाटा भी 1.16 लाख करोड़ रुपये की गंभीर स्थिति में है।
ठोस कदम नहीं उठाया तो बिगड़ेगी स्थिति
एनआरबी का विदेशी मुद्रा भंडार 1.024 ट्रिलियन डॉलर है, जबकि अन्य वित्तीय संस्थानों का विदेशी मुद्रा भंडार 154 अरब रुपये है। लेकिन यह सात महीने भी नहीं टिकेगा। एनआरबी के गवर्नर सहित देश के पूर्व वित्त मंत्री युवराज खतिवडा का कहना है कि मौजूदा आर्थिक संकट के पीछे मुख्य कारण कारोबार में अनियमितता, अदृश्य व्यापार, तरल संकट और प्रेषण में गिरावट है। आयात पर रोक के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। जब सरकार जागी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब सरकार जो कर रही है, वह काफी नहीं है। देश का पैसा अब भी बाहर जाता है, क्योंकि व्यापारी आयातित वस्तुओं के भुगतान के लिए अन्य तरीके अपनाते हैं। इसकी भी निगरानी होनी चाहिए।
देश में 2020 में महंगाई दर 2.77 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 5.97 प्रतिशत हो गई है। राष्ट्रीय योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष गोविंद पोखरेल की मानें तो देश की अर्थव्यवस्था खराब स्थिति में है। व्यापार घाटा बढ़ रहा है और विदेश सहायता नहीं के बराबर है। यहां तक कि पूंजीगत व्यय की स्थिति भी खराब है। पोखरेल ने कहा कि यदि सरकार ने सुधार के लिए जल्दी कोई कदम नहीं उठाया तो आर्थिक संकट और भी विकराल हो जाएगा।
खर्च पर नियंत्रण नहीं कर पाने के कारण आज नेपाल इस स्थिति में पहुंचा है। चालू वित्त वर्ष के लिए देश का संशोधित बजट 340 अरब रुपये है। लेकिन अब तक इसका 36.2 प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है।
तरल संकट ने भी देश की आर्थिक अवस्था को जर्जर बना दिया, क्योंकि धन की कमी के कारण बैंक ऋण जारी नहीं कर सके। हालांकि बीते एक साल में ऋण जारी करने में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस राशि का उपयोग उत्पादन क्षेत्रों में नहीं किया गया। इससे तरल संकट पैदा हो गया है, जो अक्तूबर 2021 के आसपास शुरू हुआ था। लेकिन 22 दिसंबर, 2021 को एनआरबी के गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी ने इसे अल्पकालिक संकट करार दिया था। पर अप्रैल 2022 तक भी स्थिति सामान्य नहीं हुई। आनन-फानन में एनआरबी ने मौद्रिक नीति की समीक्षा कर 47 वस्तुओं के आयात पर रोक लगा दी। इनमें रियल एस्टेट, शेयर बाजार और वाहनों की खरीद पर रोक भी शामिल है। कर्ज बांटने की नीति अभी भी जारी है। नर बहादुर थापा कहते हैं कि इन नीतियों की शुरुआत भविष्य के लिए अच्छी है। यदि ये नीतियां नहीं होतीं तो देश की हालत और खराब होती। अब सरकार को विदेशी निवेश बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।
श्रीलंका से तुलना ठीक नहीं
नेपाल के आर्थिक संकट की तुलना श्रीलंका से की जा रही है। पोखरेल का कहना है कि कुछ साल पहले श्रीलंका की स्थिति भी नेपाल जैसी थी। वहां की सरकार, राजनीतिक नेताओं की अदूरदर्शिता और उनके समय पर सचेत नहीं होने के कारण श्रीलंका में आज उथल-पुथल है। यदि नेपाल की सरकार और राजनेता भी स्वार्थ में डूबे रहे और देश की तरफ ध्यान नहीं दिया, तो इसे श्रीलंका बनने से कोई रोक नहीं सकता। हालांकि खतिवडा इस संभावना से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं अलग हैं।
श्रीलंका ने चीन और यूरोपीय देशों से कम समय के लिए बहुत अधिक कर्ज लिया और समय पर लौटा नहीं सका। इसलिए आज वह इस स्थिति में है। वहीं, नेपाल ने लंबी अवधि के लिए कर्ज लिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि नेपाल ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई पर हस्ताक्षर करने के बावजूद उससे अभी तक कर्ज नहीं लिया है। देश में आर्थिक संकट है, लेकिन हमारे पास अभी भी इससे उबरने का मौका है।
अवैध लेन-देन में रोड़ा थे गवर्नर!
हास्यास्पद बात यह है कि आर्थिक मंदी के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने सरकार को कुछ सुझाव दिए थे, लेकिन उन्हें मानने की बजाय वीरबहादुर देउबा सरकार ने गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी को ही निलंबित कर दिया। वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने उन पर सरकार के साथ समन्वय नहीं कर पाने और अर्थव्यवस्था को नाजुक स्थिति में पहुंचाने का आरोप लगाया। हालांकि मीडिया खबरों की मानें तो कुछ मुद्दों पर वित्त मंत्री की गवर्नर से अनबन थी, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री से उन्हें हटाने की सिफारिश की। नेपाली मीडिया के मुताबिक, वित्त मंत्री का मतभेद अमेरिका से आए अवैध 40 करोड़ रुपये को लेकर था। दरअसल, नेपाल के एक व्यक्ति ने अमेरिका से अवैध रूप से 40 करोड़ रुपये भेजे थे, जिस पर नेपाल राष्ट्र बैंक ने रोक लगा दी थी। वित्तीय गड़बड़ी की जांच करने वाली अमेरिका की एक संस्था ने एनआरबी को पत्र लिखा था। इसमें हैकिंग और ठगी से जुटाई गई राशि को वापस अमेरिका भेजने का आग्रह किया गया था। एनआरबी ने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी। लेकिन वह पैसा माओवादी नेताओं के लिए था, जिस पर पार्टी अध्यक्ष प्रचंड और वित्त मंत्री की नजर थी। इसलिए वित्त मंत्री बैंक खाते पर से पाबंदी हटाने और रकम निकासी के लिए गवर्नर पर दबाव डाल रहे थे। इसी बीच, स्थानीय मीडिया ने मामले का खुलासा कर दिया और सूचना लीक करने का आरोप लगाते हुए सरकार ने गवर्नर को निलंबित कर दिया। इसके चलते सरकार की खूब फजीहत हुई। बता दें कि गवर्नर के निलंबन का मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।
एनआरबी के कार्यकारी निदेशक प्रकाश कुमार श्रेष्ठ का कहना है कि आर्थिक संकट और नहीं गहराए, इसके लिए केंद्रीय बैंक हर संभव प्रयास कर रहा है। कोरोना के कारण बदहाल पर्यटन उद्योग अब संभल रहा है। लेकिन स्थिति अभी उतनी अच्छी नहीं है। काम के सिलसिले में विदेश जाने वालों की संख्या भले ही बढ़ी है, लेकिन प्रेषण (रेमिटेंस) में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा इसलिए है, क्योंकि लोग नेपाल में पैसा भेजने के लिए औपचारिक के मुकाबले अनौपचारिक माध्यमों का अधिक प्रयोग करते हैं।
अर्थशास्त्री चंद्रमणि अधिकारी कहते हैं कि देश को पहले अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। एफडीआई, विदेशी सहायता और पर्यटन में सुधार के प्रयास किए जाने चाहिए। ऐसा होता है तो देश खुद ही आर्थिक संकट से उबर जाएगा। साथ ही, सरकार यह सुनिश्चित करे कि आधिकारिक माध्यमों से ही देश में प्रेषण आए। पेट्रोलियम आधारित वाहनों के उपयोग को हतोत्साहित करने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कर में कटौती की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास अतिरिक्त बिजली है। इसलिए हम इलेक्ट्रिक वाहनों और इंडक्शन स्टोव के उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे जीवाश्म ईधन पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा।
भारत ने मदद के लिए बढ़ाया हाथ
एक-एक कर भारत के पड़ोसी देश आर्थिक संकट में फंस रहे हैं। लेकिन चीन की तरह भारत उनसे मुंह नहीं मोड़ रहा, बल्कि उनकी हरसंभव सहायता कर रहा है। श्रीलंका के साथ भारत ने आर्थिक संकट से जूझ रहे नेपाल को भी बड़ी राहत दी है। हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा तीन दिवसीय दौरे पर जब दिल्ली आए थे, तब दोनों देशों ने कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इनमें एक नेपाल को पेट्रोलियम पदार्थ उपलब्ध कराने से जुड़ा था। इस समझौते से नेपाल को काफी राहत मिली है। इसके अलावा, भारत, नेपाल से बिजली भी खरीदेगा। अभी तक भारत को नेपाल मात्र 32 मेगावाट बिजली ही बेच सकता था। लेकिन समझौते के बाद वह 325 मेगावाट बिजली बेच सकता है। यही नहीं, भारत ने नेपाल को अपनी भूमि का उपयोग करते हुए भूटान और बांग्लादेश को भी बिजली बेचने की अनुमति दे दी है। इससे नेपाल को आर्थिक संकट से उबरने में काफी मदद मिलेगी।
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