समृद्ध भारत के लिए समृद्ध पूर्वोत्तर- इस ध्येय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देखा गया शांतिपूर्ण और प्रगतिशील पूर्वोत्तर का सपना मूर्त रूप लेता जा रहा है। वर्ष 2016 में पूर्वोत्तर के असम राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद से इस दिशा में काम शुरू हुआ। धीरे-धीरे पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में भाजपा की या भाजपा समर्थित सरकारें बनने से काम में तेजी आई, राज्यों के बीच सद्भाव उत्पन्न किया गया और आज पूर्वोत्तर विवाद के बजाय विकास का क्षेत्र बनता नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समृद्ध भारत के लिए समृद्ध पूर्वोत्तर का सपना देखा तो राह में बहुत मुश्किलें थीं।
पूर्वोत्तर राज्यों के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद, जनजातियों की वैयक्तिक आकांक्षाएं और उनके पूरा न होने से परस्पर संघर्ष, जातीय संघर्षों के कारण दूसरे राज्यों में शरण लिये जनजातीयों की बसाहट की समस्या, परस्पर संघर्षों से लगातार एक के बाद एक दूसरी जनजातियों द्वारा आर्थिक नाकेबंदी, अलगाववादी आंदोलन-यह पूर्वोत्तर के राज्यों में आम स्थिति थी। पार्टी की राज्य सरकारों की मदद से केंद्र सरकार ने एक के बाद एक विवादित मुद्दों को सुलझाना प्रारंभ किया। इस क्रम में सुलझाया गया ताजा मुद्दा असम-मेघालय सीमा विवाद है। ये कदम इस क्षेत्र में चल रही शांति और विकास प्रक्रिया को और बढ़ावा देंगे।
असम मेघालय के बीच सीमा समझौता
पांच दशक से चले आ रहे सीमा विवादों को सुलझाने के लिए असम और मेघालय के बीच हस्ताक्षरित समझौता एक संयुक्त पूर्वोत्तर के लक्ष्य की ओर एक कदम है। इस प्रयास की शुरुआत कंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के बीच सीमा विवादों को सुलझाने की पहल के साथ की गई थी। असम और मेघालय, दोनों के मुख्यमंत्रियों ने यह विवाद सुलझाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिखाई गई राजनीतिक इच्छाशक्ति की सराहना की है।
असम और मेघालय के बीच मुख्यमंत्री और क्षेत्रीय समिति स्तर पर कई दौर की चर्चा के बाद, 29मार्च 2022 को नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में मेघालय और असम के मुख्यमंत्रियों कोनराड के. संगमा और डॉ. हिमंत बिस्व सरमा के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। समझौते के मुताबिक, 36.79 वर्ग किमी विवादित क्षेत्र में से असम को 18.46 वर्ग किमी और मेघालय को 18.33 वर्ग किमी का फायदा होगा। फिलहाल 12 विवादित क्षेत्रों में से छह क्षेत्रों के संबंध में यह पूर्ण और अंतिम समझौता होगा।
दरअसल मेघालय को वर्ष 1972 में असम से अलग किया गया था। तत्कालीन सरकार द्वारा दोनों राज्यों की सीमाओं का ठीक से सीमांकन नहीं किया गया। तब से सीमा विवाद के कारण दोनों राज्यों में खटास थी। असम से 70 के दशक में अलग हुए अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के साथ भी यही स्थिति है। केंद्र में पिछली सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और क्षेत्र की राज्य सरकारों के बीच समन्वय की अभाव से सीमा विवाद परस्पर संघर्ष में बदल गए थे।
पिछले साल जुलाई में असम और मिजोरम के पुलिस बल में सीमा पर हिंसक झड़पें देखी गई थीं। लेकिन गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा 2023 तक पूर्वोत्तर राज्यों के बीच सीमा विवादों को समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास किए गए। दूसरी ओर, पूर्वोत्तर की सभी राज्य सरकारों में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस की छत्रछाया में बेहतर समन्वय है। इसके परिणामस्वरूप असम-मेघालय में समझौता पर हस्ताक्षर हुए। इस ऐतिहासिक समझौते के बाद सीमावर्ती मुद्दों से संबंधित पूर्वोत्तर राज्यों के बीच विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में द्वार खुल गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पांच दशक लंबा विवाद सुलझना संयुक्त और समृद्ध पूर्वोत्तर भारत के लिए एक नई सुबह है।
इसके ठीक बाद केंद्र सरकार द्वारा असम, नागालैंड और मणिपुर के अधिकतम क्षेत्रों से सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (आफ्सपा) हटाए जाने से पूर्वोत्तर में उत्साह का माहौल है। इन तीन राज्यों के अधिकांश हिस्सों से अफ्सपा हटाने का फैसला इस बात का संकेत है कि पूर्वोत्तर की हरी-भरी पहाड़ियों में एक बार फिर शांति और सामान्य स्थिति आ गई है। असम के अधिकांश उग्रवादी समूहों ने सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू की है। इसी तरह कई अलगाववादी समूह मणिपुर और नागालैंड में सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं। इससे यह क्षेत्र आने वाले दिनों में शांति के एक नए युग की उम्मीद कर रहा है।
बोडो शांति समझौता
इससे पूर्व केंद्र व असम सरकार ने 27 जनवरी 2020 को बोडो उग्रवादी संगठन एनडीएफबी के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस पर अलग बोडोलैंड राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन ने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते ने असम के बोडो क्षेत्रों में स्थायी शांति और विकास के लिए एक नया मार्ग बनाया। समझौते के बाद कुछ अन्य छोटे उग्रवादी संगठन मुख्यधारा में आए। बोडोलैंड के पिछले पांच दशक के हिंसक आंदोलन में हजारों जानें गई। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा शर्मा ने कहा कि राज्य में आदिवासी उग्रवाद का अंत हो गया है। सर्वांगीण विकास के एजेंडे के साथ, भारत सरकार खुले दिल से इस क्षेत्र में शांति लाने की कोशिश कर रही है।
ब्रू रियांग पुनर्वास समझौता
ब्रू-रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है, जो ज्यादातर त्रिपुरा, मिजोरम और असम में रहता है। 1997 में, जातीय संघर्षों के बाद, लगभग 37,000 ब्रू-रियांग मिजोरम के ममित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों से भाग गए और उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया। मिजोरम में उन्हें निशाना बनाया जा रहा था। जनवरी 2020 में मिजोरम के ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाने के लिए नई दिल्ली में एक चतुष्पक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा में बंदोबस्त का पूरा खर्च वहन करने की प्रतिबद्धता जताई और पैकेज का आश्वासन दिया कि प्रत्येक शरणार्थी परिवार को 4 लाख रुपये , मुफ्त राशन और दो साल के लिए 5,000 रुपये का मासिक वजीफा मिलेगा। साथ ही प्रत्येक परिवार को घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये की सहायता दी जाएगी। मोदी सरकार की इस पहल ने 32 जनजातियों के 25 साल पुराने मुद्दे का समाधान किया।
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