एनसीईआरटी की किताबों में कंटेंट को लेकर फिर सवाल उठ रहे हैं। इस बार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एनसीईआरटी को इस ओर ध्यान दिलाया है। इतिहास की किताब में आपत्तिजनक सामग्री मिली है। यह कंटेंट कक्षा 12 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में विभाजन को समझना (राजनीति, स्मृति, अनुभव) चैप्टर में है। आयोग ने एनसीईआरटी से कहा है कि यह नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क यानी एनसीएफ के अनुसार नहीं है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने एनसीईआरटी के डायरेक्टर को इस संबंध में पत्र लिखा है। एनसीएफ आरटीई एक्ट का मैंंडेट यानी आदेश पत्र है। बता दें कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) एनसीएफ का निगरानी और शिकायत निवारण प्राधिकरण है।
यह है आपत्तिजनक सामग्री
20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में सांप्रदायिक अस्मिताएं कई अन्य कारणों से भी ज्यादा पक्की हुईं। 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे। मुसलमानों को मस्जिद के सामने संगीत, गो-रक्षा आंदोलन, और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें (यानी कि नव मुसलमानों को फिर से हिंदू बनाना) जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया।
मस्जिद के सामने संगीत: किसी धार्मिक जुलूस के द्वारा नमाज के वक्त मस्जिद के बाहर संगीत के बजाए जाने से हिदू-मुस्लिम हिंसा हो सकती थी। रूढ़िवादी मुसलमान इसे अपनी नमाज या इबादत में खलल मानते थे।
हर्ष मंदर की कहानी भी प्रकाशित की
हाल ही में एनसीपीसीआर ने पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर की एक कहानी को कक्षा नौ की पाठ्य पुस्तक में शामिल करने पर एनसीईआरटी से जवाब मांगा था। हर्ष मंदर के खिलाफ एक बाल संरक्षण केंद्र चलाने के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच चल रही है। एनसीईआरटी को लिखे पत्र में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा था कि आयोग को अंग्रेजी पुस्तक ‘मोमेंट्स’ में शामिल ‘वेदरिंग द स्टॉर्म इन एर्सामा’ कहानी को लेकर शिकायत मिली है। अन्य प्रसिद्ध साहित्यकारों व लेखकों की रचनाओं के साथ हर्ष मंदर की इस कहानी को भी पाठ्य पुस्तक में शामिल किया गया है। आयोग को जो शिकायत दी गई है उसमें कहा गया है कि ए बाल संरक्षण केंद्र चलाने के मामले में जो आरोपी है, उसकी कहानी पुस्तक में क्यों शामिल की गई?
ये है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का आधार सिद्धांत
शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे इंसानों का विकास करना है – जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हो। जिसमें करुणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पनाशक्ति, नैतिक मूल्य और आधार हों। इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को तैयार करना है जोकि अपने संविधान द्वारा परिकल्पित – समावेशी और बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान करें।
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