बनमनखी का पत्ता मेला, जहां आज भी स्वयंवर प्रथा देखने को मिलती है

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बिहार के पूर्णिया जिले में बनमनखी प्रखंड के गांव मलिनिया में पत्ता मेला लगता है, जहां विवाह योग्य लड़का अपने लिए वधू खोजता है। यदि लड़के द्वारा दिए गए पान को लड़की खा लेती है तो माना जाता है कि लड़की को भी यह रिश्ता पसंद है।

अभी हाल ही में पूर्णिया के बनमनखी में पत्ता मेला संपन्न हुआ है, लेकिन इसकी चर्चा अभी भी पूरे भारत में हो रही है। वास्तव में यह मेला जनजातियों का मेला है। इस मेले ने एक बार फिर से यह भी बता दिया है कि जनजाति हिंदू ही हैं। उल्लेखनीय है कि इन दिनों झारखंड से लेकर बिहार तक ईसाई संगठन और उनके लोग जनजातियों के लिए कह रहे हैं कि वे हिंदू नहीं हैं। लेकिन इस मेले ने ऐसे लोगों को बताया कि जनजाति सदियों से हिंदू हैं और हिंदू ही रहेंगे।
इस मेले में जनजाति समाज के युवा अपने लिए वधू खोजते हैं। यदि किसी युवा को कोई लड़की पसंद आती है, तो उसे वह पान खाने के लिए कहता है और यदि लड़की पान खा लेती है, तो माना जाता है कि लड़की को भी लड़का पसंद है। इसके बाद सबकी सहमति से लड़की को लड़का अपने घर लेकर जाता है। फिर दोनों कुछ दिन साथ बिताते हैं और जनजाति रीति—रिवाज के साथ दोनों का विवाह करा दिया जाता है। अगर इस बीच किसी ने विवाह से मना कर दिया तो जनजाति समाज के लोग पंचायत कर इन्हें आर्थिक दंड भी सुनाते हैं।
इस मेले को स्वयंवर का ही दूसरा रूप माना जाता है। जानकार बताते हैं कि जनजाति समाज इस मेले को सीता स्वयंवर, द्रौपदी स्वयंवर को देखते हुए ही आयोजित करता है। इसका अर्थ यह है कि जनजाति भी हिंदू ही हैं।
पत्ता मेला पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के मलिनिया गांव में लगता है। इसमें दूर-दूर से जनजाति लड़कियां और लड़के आते हैं और यहां मनपसंद जीवनसाथी चुनते हैं। मेला बैसाखी पर्व यानी सिरवा विशवा पर्व के दिन शुरू होता है। मेले में बांस का एक बड़ा मचान बनाया जाता है। इस पर चढ़कर लोग पूजा—अर्चना करते हैं। मेले में जनजाति संस्कृति, कला और संगीत का अद्भुत दृश्य भी देखने को मिलता है। युवक-युवती एक—दूसरे पर मिट्टी, रंग, अबीर डालकर जमकर होली भी खेलते हैं। इसी दौरान वर और वधू का चुनाव होता है।
मेले में वर—वधू खोजने के लिए कई सख्त नियम भी हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। एक नियम यह है कि यदि किसी लड़के ने किसी लड़की को पान खाने के लिए निवेदन किया और उसने नहीं खाया तो इसमें कोई बुरा नहीं मानेगा, बल्कि बहुत ही सहजता से दोनों इसे संस्कृति और परम्परा की बात मानेंगे। इसके बाद लड़का किसी दूसरी लड़की की खोज में जुट जाता है।
मेले में नेपाल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और आसपास के इलाके के जनजाति समाज के लोग शामिल होते हैं। बता दें कि प्राचीनकाल में भी स्वयंवर विधि से राजा—महाराजाओं की बेटियों का विवाह होता था, लेकिन यह परंपरा विलुप्त हो चुकी थी। पर प्रकृति प्रेमी जनजाति समाज आज भी इस परंपरा को जीवंत रखे हुए है।

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