भारतीय वस्तुओं को आस्ट्रेलिया में पसंद किया जाता है। आस्ट्रेलिया के साथ चीन का मुक्त व्यापार समझौता पहले से है, इसलिए वहां के बाजार में चीनी कंपनियों का दबदबा है। लेकिन अब भारतीय निर्यातकों को भी अवसर मिल गया है। इस समझौते से आस्ट्रेलिया में भारतीय कंपनियों का निर्यात बढ़ेगा। इस समझौते में भारत के लगभग सभी उत्पादों को जीरो ड्यूटी का लाभ दिया गया है। इससे देश में हर क्षेत्र के निर्यातकों को लाभ होगा।
पहले निर्यातक कहते थे कि चीन और दूसरे देशों का आस्ट्रेलिया में एफटीए है, इसलिए हम वहां निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन अब हमारा एफटीए भी वहां हो गया है। अच्छी बात यह है कि भारतीय निर्यातकों को अभी से ही आस्ट्रेलिया से आर्डर मिलने शुरू हो गए हैं, जबकि करार के लागू होने में कम से कम तीन से चार महीने लगेंगे। यह बहुत अच्छा रुझान है। जब समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे तो हम 45-50 बिलियन डॉलर के साझा व्यापार का अनुमान लगा रहे थे। लेकिन अब लग रहा है कि 2030 तक दोनों देशों का व्यापार 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को कच्चे माल के आयात पर जीरो ड्यूटी मिल रही है। इससे भारत को दोहरा फायदा है। एक तो सस्ता कच्चा माल मिलेगा, दूसरा तैयार माल के लिए बड़ा बाजार भी मिलेगा, जिस पर ड्यूटी नहीं लगेगी। इस तरह के एफटीए से उद्योग, खासकर निर्यातक अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर पाते हैं।
Indo-Australia
Indo-Pacific Region
इस एफटीए से आस्ट्रेलिया का शिक्षा क्षेत्र तेजी से बढ़ेगा। साथ ही, सेवा क्षेत्र को भी बहुत फायदा होगा। भारतीय छात्रों को आस्ट्रेलिया में पढ़ने के साथ वर्क वीजा भी मिलेगा। डिप्लोमा के छात्रों को डेढ़ साल का वर्क वीजा, डिग्री के छात्रों को दो साल, स्नातक को तीन साल और परास्नातक को चार साल का वर्क वीजा मिलेगा। इससे देश के गरीब छात्र भी काम करते हुए आस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर सकेंगे। आस्ट्रेलिया को पेशेवरों की जरूरत है, जो भारत से पूरी हो सकती है। योग शिक्षकों और शेफ के लिए वह अप्रवासन पहले ही बहुत आसान कर चुका है। भारत-आस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी ताकत बनने जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत करने के लिए एफटीए बहुत अच्छा कदम है।
पहले के एफटीए हुए गलत
पहले जो समझौते हुए थे, वे निर्यात की दृष्टि से हमारे लिए बहुत नुकसानदेह रहे। हमने मजबूत उत्पादक देशों के साथ एफटीए किया था, इसलिए आयात बहुत बढ़ गया था और इस अनुपात में हम उतना निर्यात नहीं कर पाए। लेकिन वर्तमान सरकार अब उन देशों के साथ समझौते कर रही है, जहां की अर्थव्यवस्था पूरक है। यानी समझौते के बाद दोनों देशों के पास अपना निर्यात बढ़ाने का अवसर होगा। खास बात यह है कि भारत अपनी जरूरतों को महत्व दे रहा है। यानी कच्चा माल खरीद कर हम तैयार माल बेच रहे हैं।
इस साल आस्ट्रेलिया और यूएई के साथ एफटीए करने के बाद भारत के लिए यूरोपीय संघ के दरवाजे खुलने की संभावना बढ़ गई है। अभी ब्रिटेन के साथ भारत की बातचीत चल रही है। यदि इस साल तक ब्रिटेन के साथ एफटीए हुआ तो यूरोपीय संघ के साथ भी जल्द ही समझौता हो सकता है। जहां तक अमेरिका के साथ एफटीए की बात है तो इसमें अभी समय लगेगा। डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे, तो इस दिशा में बातचीत काफी आगे बढ़ी थी, लेकिन जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद इसमें समय लग रहा है। हालांकि अमेरिकी प्रशासन भारत को अमेरिकी बाजार में पहुंच देने की बात कर रहा है। लेकिन यह एफटीए से इतर है। अमेरिकी बाजार में भारत की पहुंच हुई तो एफटीए मदद मिलेगी। अभी ब्रिटेन और कनाडा के साथ एफटीए की काफी संभावना है।
(लेखक फेडरेशन आफ इंडियन एक्पोर्ट आर्गनाइजेशन के महानिदेशक, सीईओ हैं)
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