झारखंड में ईसाई मिशनरी से जुड़े लोग हिंदुओं में अपनी संस्कृति, अपने परिवार और समाज के प्रति नफरत पैदा कर उन्हें ईसाई बना रहे हैं। हाल ही में इस तरह की दो घटनाएं सामने आई हैं। दोनों रांची जिले की हैं। पहले बेड़ो प्रखंड स्थित हरिहरपुर जामटोली गांव की बात। इस गांव के पास एक पहाड़ी है, जहां वर्षों पुराना शिव मंदिर है। कुछ दिन पहले यहां भारतीय नव वर्ष के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उसी समय चर्च से जुड़े कुछ लोग मंदिर में पहुंचे और कार्यक्रम में बाधा डालने की कोशिश की। जब वहां मौजूद लोगों ने उनका विरोध किया तो वे हिंसा पर उतारू हो गए। मंदिर में लगे ध्वज को फाड़कर फेंक दिया और त्रिशूल को उखाड़ लिया। मंदिर के पुजारी जयराम सत्यप्रेमी को बुरी तरह से पीटा गया। जयराम को यह भी धमकी दी गई कि अगर वे यहां पर पूजा-पाठ बंद नहीं करेंगे, तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। इसके बाद जयराम सत्यप्रेमी और मंदिर समिति के लोग स्थानीय बेड़ो थाने में शिकायत दर्ज कराने गए तो उन्हें यह कह कर टाल दिया गया कि अभी सरहुल और रामनवमी के त्योहार के कारण सभी व्यस्त हैं, बाद में शिकायत दर्ज की जाएगी। पुलिस के इस जवाब से मंदिर वाले चकित रह गए। दरअसल, लोगों का कहना है कि पुलिस को राज्य सरकार से मौखिक आदेश है कि यदि पीड़ित हिंदू हो तो शिकायत जल्दी दर्ज न करो और इसके उलट पीड़ित ईसाई या मुसलमान हो तो शिकायत दर्ज करने में तनिक भी देर मत करो।
हरिहरपुर के ग्राम प्रधान रामप्रसाद लोहरा ने बताया, ‘‘गांव में लगभग 500 परिवार निवास करते हैं, जिसमें कई परिवार जनजातीय समाज के हैं। यहां पर एक पहाड़ है जहां भगवान शिव का बहुत पुराना मंदिर है। 14 वर्ष पहले गांव के लोगों ने मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया था। इसके बाद से ही धीेरे—धीरे काम चल रहा है। इस बीच गांव के कुछ लोगों पर मिशनरियों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि अब वे लोग अपने को हिंदू ही नहीं मान रहे हैं। इस कारण पूजा—पाठ तो करते ही नहीं हैं और अब मंदिर के जीर्णोद्धार का भी विरोध करने लगे हैं। ऐसे ही लोगों ने नव वर्ष के कार्यक्रम को रोका।’’ मंदिर के पुजारी जयराम सत्यप्रेमी के अनुसार, ‘‘पहले तो यहां पर रहने वाले लोग हिंदू रीति—रिवाज से पूजा—पाठ करने आते थे और सभी लोग एक साथ पर्व—त्योहार मनाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘गांव में पहले एक भी ईसाई नहीं हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे मिशनरी और चर्च के लोगों का आगमन हुआ। जिस जनजातीय संस्कृति में प्रार्थना सभा का कोई नाम नहीं था, वहां अब हर कार्यक्रम में प्रार्थना सभाएं होने लगीं। लोग अपनी संस्कृति को छोड़कर ईसाई संस्कृति की ओर झुकने लगे हैं। इसके साथ ही चर्च के लोग जनजातीय समाज के लोगों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काने का काम निरंतर कर रहे हैं।’’
मंदिर समिति के सचिव चरवा उरांव ने बताया, ‘‘मंदिर के जीर्णोद्धार से गांव के लोग काफी उत्साहित थे। यह मंदिर यहीं के जनजातीय समाज के लोगों ने मिलकर बनाया है और आज भी मंदिर समिति में अधिकतर लोग जनजातीय समाज के ही हैं। पर अब गांव के कुछ लोगों को इस मंदिर से आपत्ति हो रही है। इसके पीछे चर्च का हाथ है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘सरना और सनातन में कोई अंतर नहीं है। यह बात चर्च और मिशनरियों को भी पता है। हालांकि जनजातीय समाज के लोग भोले—भाले होते हैं इसीलिए उन्हें आसानी से बहका दिया जाता है।’’
रामप्रसाद लोहरा के अनुसार, ‘‘पहले इस गांव में इस तरह की कभी कोई घटना नहीं घटती थी, लेकिन बीते वर्षों में गांव के अंदर कई बाहरी लोगों का आना हुआ है। इन लोगों को हमारी संस्कृति और धर्म से कोई मतलब नहीं है। यही कारण है कि ये लोग हमारे ही कुछ लोगों को भड़का कर हमारे मंदिरों और हमारी संस्कृति पर हमला करने लगे हैं।’’
दूसरी घटना तो और भी चिंता पैदा करती है। ईसाई तत्व जनजातियों को उनके पर्व—त्योहार से दूर करने के लिए बहुत ही घटिया हरकत करने लगे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही जनजातियों का सरहुल पर्व संपन्न हुआ। यह त्योहार धरती यानी प्रकृति को समर्पित है। इस दिन जनजाति समाज के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं और झारखंड में सरकारी छुट्टी भी रहती है। इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह पर्व जनजातियों के लिए कितना महत्व रखता है, लेकिन दुर्भाग्य से इस पर्व का इस्तेमाल जनजातियों को भड़काने के लिए होने लगा है। भड़काने वाले वही लोग हैं, जो इन जनजातियों को ईसाई बनाना चाहते हैं। ये लोग भोले—भाले जनजातियों से कहते हैं, ‘‘तुम हिंदू नहीं हो।’’
कुछ लोगों पर इसका असर भी हो रहा है। वे लोग पर्व मनाने की जगह हाथ में ‘आदिवासी हिंदू नहीं हैं’ के बैनर के साथ सड़कों पर उतर रहे हैं, जबकि जनजाति समाज के प्रमुख लोग और विद्वान ही कहते हैं कि वे हिंदू ही हैं। ‘राष्ट्रीय आदिवासी मंच’ के कार्यकारी अध्यक्ष सन्नी टोप्पो कहते हैं, ‘चर्च के लोग पर्व के अवसर पर भी अपनी नीच हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। ये लोग भोले—भाले जनजातियों से कहते हैं कि तुम हिंदू नहीं हो! मैं चर्च के लोगों से पूछना चाहता हूं कि कौन ईसाई प्रकृति की पूजा करता है! जबकि जनजाति समाज प्रकृति के बीच रहता है, प्रकृति को देवता मानकर उसकी पूजा करता है। प्रकृति मतलब पेड़, पहाड़, नदी। इन सबकी पूजा भारतीय संस्कृति से जुड़े लोग ही करते हैं और जो भारतीय संस्कृति को मानता है, वह हिंदू है। इसलिए चर्च के लोग जनजातियों को यह न कहें कि तुम लोग हिंदू नहीं हो। जनजाति हिंदू ही हैं और हिंदू ही रहेंगे।’
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. राजकिशोर हांसदा कहते हैं, ‘जनजाति और सनातनधर्मी एक हैं। भारतीय संस्कृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष प्रारंभ होता है। इस दिन लोग देवी की पूजा प्रारंभ करते हैं और नौ दिन तक पूजा होती है। ऐसे ही प्रकृति के बीच रहने वाला जनजाति समाज प्रकृति की पूजा कर नव वर्ष मनाता है। सरहुल पर्व कई दिनों तक मनाया जाता है। वैसे ही जैसे हम नवरात्र मनाते हैं।’ डॉ. हांसदा यह भी कहते हैं, ‘संथाल जनजाति में मान्यता है कि उनकी देवी का अवतरण साल वृक्ष के नीचे हुआ था। इसलिए सरहुल में इस देवी की पूजा की जाती है और जिस जगह पूजा होती है, उसे जहीर थान कहा जाता है। इसी स्थान को रांची और छोटा नागपुर के इलाकों में सरना स्थल कहा जाता है। इतनी समानताओं के बावजूद जो लोग जनजाति समाज को हिंदू नहीं मानते हैं, वे निश्चित रूप से जनजातियों के हितैषी नहीं हैं। ऐसे लोग एक खास लक्ष्य को लेकर जनजाति समाज को आपस में बांटना चाहते हैं। ऐसे लोगों से हमें सावधान रहने की जरूरत है।’
इन घटनाओं से सबक लेने की आवश्यकता है, अन्यथा झारखंड को नागालैंड या मिजोरम बनने में देर नहीं लगेगी।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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