हल्द्वानी शहर के बीचो-बीच रेलवे स्टेशन की भूमि पर बीते 30-40 सालों से अतिक्रमण होकर बस्ती बन गयी और रेलवे और जिला प्रशासन आंखें मूंद कर बैठा रहा। कांग्रेस शासन काल में यहां मुस्लिम वोट बैंक तैयार हो गया, जिसे हटाने में हमेशा राजनीति भी आड़े आती रही।
उत्तराखंड के कुमाऊं द्वार हल्द्वानी काठगोदाम नगर निगम क्षेत्र में दो रेलवे स्टेशन पड़ते हैं, एक हल्द्वानी दूसरा काठगोदाम इसके आगे ट्रेन पहाड़ों पर नहीं जाती। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास से गोला नदी बहती है, जहां से खनन होता है। आजादी के बाद 60 के दशक में यहां से निकले रेता, बजरी की यूपी में भारी मांग थी, जिसको नदी से निकालने के लिए रामपुर, मुरादाबाद और अन्य मैदानी इलाकों के मजदूरों को यहां बुलाया गया, जिन्होंने रेल पटरी के किनारे झोपड़ियां डाल ली और वो यहीं बसते चले गए। आज वहीं झोपड़ियां पक्के मकानों में तब्दील होकर महंगे दरों पर बिकती गई। एक बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय का बनता चला गया। रेलवे की जमीन होने की वजह से इसका प्रबन्धन इज्जतनगर बरेली से होता रहा। कई बार इस जगह को रेलवे ने खाली कराने की कोशिश भी की, लेकिन इच्छा शक्ति और राजनीतिक दबाव के चलते उनके अभियान को पलीता लगता रहा।
करीब तीन साल पहले रवि जोशी की एक जनहित याचिका पर नैनीताल हाई कोर्ट ने इस अतिक्रमण को हटाने के लिए जिला प्रशासन और रेलवे को सख्त आदेश दिए। रेलवे, जिला प्रशासन, नगर निगम ने अतिक्रमण को चिन्हित करके अवैध कब्जेदारों को नोटिस देकर खुद ही अतिक्रमण हटाने के लिए कहा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। अब याचिकाकर्ता ने एक बार हाई कोर्ट में शरण लेकर ये अतिक्रमण हटाने के लिए गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता का कहना है उक्त भूमि पर अतिक्रमण की वजह से हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों को खड़ा करने उनमें माल ढोने उनकी सफाई होने में दिक्कत आ रही है। स्टेशन का विस्तार नहीं होने से नई ट्रेनों का संचालन शुरू नहीं हो पा रहा है और ट्रेनों की मेंटेनेंस भी नहीं हो पा रही है।
रवि जोशी ने हल्द्वानी के बजाय 15 किमी दूर लालकुआं को जंक्शन बनाये जाने पर भी सवाल उठाए और इसका कारण रेलवे की भूमि और अवैध कब्जे बताए। हाई कोर्ट ने एक बार फिर से जिला प्रशासन और रेलवे प्रशासन को तलब करके इस अवैध बस्ती को हटा कर रेलवे की भूमि को मुक्त करवाने के सख्त आदेश दिए हैं।
कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे भूमि पर काबिज 4700 से ज्यादा परिवारों की नींद हराम हो गयी है। जिला प्रशासन बार-बार मुनादी करा कर उन्हें चेतावनी दे रहा है कि वो सरकारी जमीन को खाली करें, अन्यथा उसे बुलडोजर द्वार तोड़ दिया जाएगा। इस अवैध कब्जे की जद में तीन मस्जिदे, दो मन्दिर और दो स्कूल भी आये हुए हैं। स्थानीय कब्जेदारों का कहना है कि अतिक्रमण का चिन्हीकरण गलत हुआ है। इस पर रेलवे प्रशासन और नैनीताल प्रशासन का कहना है कि हमारी मार्किंग सही है जिसे अपना पक्ष रखना है वो कोर्ट जा सकता है।
रेलवे के साथ अपनी बैठक में जिला प्रशासन ने कहा है कि इस अतिक्रमण को हटाने के लिए 6000 की संख्या में पुलिस बल, 300 प्रशासनिक अधिकारी और 30 बुलडोजरों की जरूरत है और इस पर 30 करोड़ का खर्च आना है। इस रकम की मांग प्रशासन ने रेलवे से की है। रेलवे बोर्ड इस रकम देने पर अभी विचार कर रहा है।
इस अतिक्रमण के हटाने पर 10 हज़ार लोग बेघर हो जाएंगे, जिनमे ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से हैं। इनको कहां बसाया जाएगा, ये बड़ा सवाल है। इस बारे में हाई कोर्ट ने भी कहा है इनके पुनर्वास की व्यवस्था विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिये जिला प्रशासन करे। कांग्रेस हमेशा की तरह अवैध कब्जेदारों की पैरवी कर रही है क्योंकि ये उसका वोट बैंक है। कांग्रेस के विधायक सुमित ह्रदयेश ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की है जबकि बीजेपी के मेयर डॉ जोगेंद्र रौतेला ने कहा है कि रेलवे की जमीन हो या निगम की। यदि उस पर अवैध कब्जे हैं वो हटाए जाने हैं। इस बारे में हाई कोर्ट का आदेश है। बहरहाल हल्द्वानी की रेलवे की जमीन का अतिक्रमण हटाने का आदेश रेलवे और जिला प्रशासन दोनों के लिए चुनौती बन गया है।
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