वो बात जिसका फसाने में कोई जिक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।
कहते हैं, पाकिस्तान के सार्वजनिक जीवन में उकताहट के लिए कोई जगह नहीं है। हर रोज कुछ ना कुछ, कहीं ना कहीं तमाशा चलता रहता है। तमाशा भी ऐसा जो दुनिया के किसी और देश में सोचा भी न जाए। पाकिस्तान की राजनीति भी इससे अछूती नहीं है।
जैसा कि हम जनवरी के महीने से आपको लगातार बताते आ रहे हैं कि इमरान खान की सरकार मार्च का महीना पार नहीं कर पाएगी। ठीक वैसा ही हुआ। इमरान खान ने संसद के अध्यक्ष को अधिवेशन देरी से बुलाने के लिए कहा, हालांकि उनकी सरकार मार्च के महीने में ही अल्पमत में आ चुकी थी। अप्रैल की 3 तारीख को जैसे ही संसद की कार्यवाही शुरू की गई, एक और बेहतरीन रिहर्सल के साथ मंचित किए गए नाटक की शुरुआत हो गई।
स्पीकर ने कानून मंत्री फवाद चौधरी को बोलने के लिए कहा। फवाद चौधरी ने एक कागज निकालकर पढ़ा। पढ़ते हुए उन्होंने उसी पत्र का जिक्र किया जिसके बारे में हमने पिछले अंक में बताया था और उन्होंने अविश्वास मत को विदेशी साजिश का हिस्सा बताते हुए स्पीकर से आग्रह किया कि अविश्वास प्रस्ताव को इसलिए रद्द किया जाए, क्योंकि यह एक विदेशी साजिश का हिस्सा है और इसे प्रस्तावित करने वाले तमाम लोग देश के गद्दार हैं। फवाद चौधरी के बैठते ही स्पीकर ने अपनी जेब से एक लिखित आदेश निकाला और उसे पढ़कर बताया कि अविश्वास प्रस्ताव को एक साजिश होने के कारण रद्द किया जाता है। इतना कहकर वे संसद को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करके चले गए। कुछ देर के लिए विपक्षी दलों को समझ ही नहीं आया कि दरअसल उनके साथ हो क्या गया है।
पूर्व नियोजित तमाशा
अभी कुछ पल ही बीते थे कि इमरान खान टेलीविजन पर आए और उन्होंने राष्ट्रपति को संसद भंग करने के लिए कहा। हैरानी की बात यह थी, कि इस प्रसारण में जब इमरान खान बोल रहे थे तो पीछे से एक आवाज उनके शब्दों के चुनाव को ठीक करवा रही थी और उसे टेलीविजन के माइक के जरिए सुना भी गया। जिससे यह और भी स्पष्ट हो गया कि यह सब कुछ पूर्व नियोजित नाटक के सिवा कुछ नहीं था। इसके तुरंत बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति की ओर से यह अधिसूचना जारी कर दी गई कि संसद को भंग कर दिया गया है और तीन माह के भीतर चुनाव कराए जाएंगे। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री को तब तक अपने पद पर बने रहने के लिए भी कहा। इसके बाद सत्ताधारी दल के लोग संसद से बाहर चले गए। लेकिन वह पाकिस्तानी तमाशा भला तमाशा ही क्या जो आखिर तक नए मोड़ न ले।
तमाशे में मोड़
पाकिस्तानी संसद के नियमों के अनुसार ऐसी व्यवस्था है कि यदि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर उपलब्ध न हों, तो संसद सदस्यों में से ही एक छह सदस्यीय पैनल होता है जिसमें से कोई भी सदन की कार्यवाही आगे बढ़ा सकता है। चूंकि सदन का कोरम पूरा था, इसलिए सदस्यों ने आगे की कार्यवाही को इस पैनल के एक सदस्य अयाज सादिक को स्पीकर के स्थान पर बिठाकर आगे बढ़ाया। जैसा कि आप जानते हैं, विपक्ष को बहुमत साबित करने के लिए 172 सदस्यों की आवश्यकता थी और इस समय जो मतदान कराया गया, उसमें विपक्ष के 197 सदस्य सामने आए। इसके साथ ही विपक्ष ने अपना बहुमत साबित कर दिया।
पाञ्चजन्य ने 30 जनवरी अंक में इमरान सरकार के अनिष्ट की आहट के बारे में आवरण कथा प्रकाशित की थी, तो 10 अप्रैल अंक में उस अनिष्ट के हो जाने की आवरण कथा प्रकाशित की
इमरान खान का भविष्य अंधेरे में है। वे अपनी नादानी से पंजाब में अपनी सरकार खो चुके हैं। इस बीच उनके पूर्व समर्थक अलीम खान और पंजाब के पूर्व गवर्नर चौधरी सरवर ने जनता के बीच इमरान के तमाम राज को खोलना शुरू कर दिया है, जिनमें उनकी भ्रष्टाचार की कहानियां भी शामिल है। इतना ही नहीं, इमरान की तीसरी और वर्तमान पत्नी बुशरा बेगम का नाम भी भ्रष्टाचार के आरोपियों में शामिल हो गया है।
इस बीच डिप्टी स्पीकर द्वारा की गई कार्यवाही की भनक सर्वोच्च न्यायालय के जजों को लगी और वे जाकर चीफ जस्टिस से मिले और उन्हें स्थिति की गंभीरता की जानकारी दी जिसके चलते सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए सभी संबंधित दलों को सर्वोच्च न्यायालय आने के लिए कहा। उसी दिन अपराह्न तीन जजों का एक पैनल बनाया गया जिसे इस केस को सुनने की जिम्मेदारी दी गई। इसके बावजूद कि यह मामला संवैधानिक था, फिर भी सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे अनुभवी जज काजी फाइज ईसा को इस पीठ में शामिल नहीं किया गया। जब इस पर विपक्ष की तरफ से विरोध हुआ तो पीठ के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर पांच कर दी गई लेकिन जस्टिस ईसा को फिर भी शामिल नहीं किया गया। याद रहे, ये वही जस्टिस ईसा हैं जिन्होंने फैजाबाद धरने के फैसले में सेना को आदेश दिया था कि वह अपने कुछ अधिकारियों को इस धरने को समर्थन देने में शामिल होने के लिए सजाएं दे। इसके बाद एक लंबे समय तक जस्टिस ईशा को उनके पद से बर्खास्त करने के तमाम प्रयास किए जाते रहे लेकिन अंतत: वे तमाम आरोपों से बरी हुए और अगले साल देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। यही वह स्थिति है जिससे सेना और आईएसआई बचना चाहती है। वे जस्टिस ईसा को अपनी राह की रुकावट समझते हैं।
इस समय सर्वोच्च न्यायालय 3 अप्रैल से इस मामले की सुनवाई कर रहा है। जिस प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को हर दिन टालता जा रहा है, उससे एक नई बहस जन्म ले रही है। इस मामले में जिन जजों का चुनाव किया गया है, उनके बारे में माना जाता है कि वे नवाज शरीफ के परिवार और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेताओं के विरोध में बयान देते रहे हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान जजों की टिप्पणियां भी इस ओर इशारा करती हैं। लेकिन दूसरी तरफ यह मामला इतना सीधा और स्पष्ट है कि जजों के लिए इमरान सरकार के पक्ष में फैसला देना मुश्किल होगा।
फैज हमीद का खेल
आपको लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद का नाम याद होगा जो पहले आईएसआई के निदेशक थे और बाद में उन्हें कोर कमांडर बनाकर पेशावर भेज दिया गया था। आईएसआई में अपने चार वर्षीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने जो नेटवर्क बनाया था, माना जाता है कि वे उसे आज भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे सेना में विभाजन का भान मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जजों के चुनाव में फैज हमीद के ग्रुप का हाथ रहा है। इमरान खान फैज हमीद को अगला सेनाध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन उनकी मंशा पूरी होने से पहले ही उनकी सरकार का वारा न्यारा हो गया। अपनी इन हरकतों के जरिए फैज हमीद का ग्रुप इस संवैधानिक संकट को लंबा करना चाहता है ताकि इमरान खान को इतना समय मिल सके कि वे आगामी चुनाव में स्वयं को एक ऐसे नेता के रूप में दिखा पाएं जो किसी राजनीतिक साजिश का शिकार बन गया हो।
खुलने लगीं इमरान की परतें
देखा जाए तो इमरान खान इसमें किसी हद तक सफल भी रहे हैं लेकिन दरअसल देश की आर्थिक स्थिति और बढ़ती महंगाई और रोजगार की कमी के चलते जनता में पैदा असंतोष के चलते निकट भविष्य में इमरान खान का भविष्य अंधेरे में है। इस बीच वे स्वयं अपनी नादानी से पंजाब में अपनी सरकार खो चुके हैं। इस बीच इमरान के पूर्व समर्थक अलीम खान और पंजाब के पूर्व गवर्नर चौधरी सरवर ने इमरान खान के तमाम राज जनता के बीच खोलने शुरू कर दिए हैं जिनमें उनकी भ्रष्टाचार की कहानियां शामिल हैं। इतना ही नहीं, इमरान खान की तीसरी और वर्तमान पत्नी बुशरा बेगम का नाम भी भ्रष्टाचार के आरोतियों में शामिल हो गया है। बताया जा रहा है कि आईएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी को इमरान खान ने इसलिए उसके पद से अलग कर दिया था क्योंकि उसने उन्हें स्पष्ट रूप से यह बता दिया था कि उनकी पत्नी रिश्वत के रूप में हीरों के हार ले रही हैं। बुशरा बेगम के इस प्रकार की तमाम रिश्वतखोरी में उनकी सहयोगी रही उनकी सहेली फरहा खान सपरिवार दुबई फरार हो चुकी हैं।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद पाकिस्तान के कैबिनेट सचिवालय ने चार दिन तक इमरान खान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहने की अधिसूचना को जारी नहीं किया है। उसका मानना है कि प्रधानमंत्री के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव है और नए प्रधानमंत्री का चुनाव अभी तक नहीं हुआ है। विपक्ष अपना बहुमत साबित कर चुका है और वह स्वयं अपनी सरकार बनाना चाहता है
मंत्री विहीन पाकिस्तान
गत 3 अप्रैल, 2022 से पाकिस्तान में न कोई प्रधानमंत्री है, न संसद है, न कोई मंत्रिमंडल है। आप कह सकते हैं कि इमरान खान कार्यवाहक प्रधानमंत्री हैं, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद पाकिस्तान के कैबिनेट सचिवालय ने चार दिन तक इमरान खान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहने की अधिसूचना को जारी नहीं किया है। उसका मानना है कि प्रधानमंत्री के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव है और नए प्रधानमंत्री का चुनाव अभी तक नहीं हुआ है। अस्थाई सरकार बनाने के लिए पाकिस्तान में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों से बराबर की संख्या में सदस्य के नाम लिये जाते हैं लेकिन चार दिन तक विपक्ष ने न तो कोई नाम दिए और न ही इस प्रक्रिया का हिस्सा बना। वहीं विपक्ष अपना बहुमत साबित कर चुका है और वह स्वयं अपनी सरकार बनाना चाहता है। पूरी दुनिया की निगाहें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर टिकी रहीं।
डिप्टी स्पीकर का फैसला रद्द
सर्वोच्च न्यायालय की 5 सदस्यीय न्याय पीठ ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए 3 अप्रैल को डिप्टी स्पीकर द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के फैसले और उसके बाद प्रधानमंत्री द्वारा संसद भंग किए जाने के फैसले को गैरकानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि संसद में स्पीकर शीघ्रताशीघ्र अविश्वास प्रस्ताव पर बची कार्रवाई को पूरा करें। इससे लगभग एक घंटा पहले कैबिनेट सचिवालय ने सर्वोच्च न्यायालय से यह सूचना मिलने पर कि डिप्टी स्पीकर के फैसले को रद्द कर दिया गया है, एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसमें उसने कहा कि अब इमरान खान नियाजी प्रधानमंत्री नहीं रह गए हैं। इसके साथ ही इमरान खान के तमाम प्रयास, जिनके चलते वे अपने शासन की उम्र बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे, अब खत्म हो गए हैं। इमरान खान की सरकार अल्पमत में तो मार्च के अंत में ही आ गई थी लेकिन वे अब तक येन-केन-प्रकारेण सत्ता में रहने का नाटक चलाए जा रहे थे, जिसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं थी। अब नई सरकार के बनने का रास्ता साफ हो चला है।
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