पाकिस्तान में लंबे समय से चले आ रहे राजनैतिक नाटक में नए-नए अध्याय जुड़ते जा रहे हैं।।जहां एक ओर संयुक्त विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव, जिसे सत्ताधारी गठबंधन के भी कुछ सदस्यों का समर्थन प्राप्त था, को नेशनल असेंबली में पाकिस्तान की विरोधी शक्तियों की मिली भगत का आरोप लगाकर इमरान खान द्वारा गिरवा दिया गया, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति अल्वी से नेशनल असेंबली भंग करने की सिफारिश भी कर दी और राष्ट्रपति ने सहज स्वामिभक्ति का परिचय देते हुए इसे भंग भी कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि विपक्ष पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया और कोर्ट ने स्पीकर के कार्य को अवैध घोषित करते हुए अविश्वास प्रस्ताव पर मतविभाजन की अनुमति दी। हालांकि इमरान खान इसे रुकवाने की तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें असफल ही हुए और अंततः उनकी सरकार विश्वास मत पाने विफल हुई और इमरान खान की विदाई हुई।
पाकिस्तान के विपक्ष ने प्रधानमंत्री पद के लिए एकता प्रदर्शित करते हुए पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के नेता शहबाज शरीफ को अपना उम्मीदवार घोषित किया और इस पद पर उनकी नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ लिहाजा मियां शहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व कश्मीर मुद्दे पर भारत को आंखे दिखाने वाले शहबाज शरीफ (जन्म 23 सितंबर 1951) जिस शरीफ परिवार से ताल्लुक रखते हैं, वह लाहौर में केंद्रित एक पंजाबी भाषी कश्मीरी राजनीतिक परिवार है। उनके पिता मुहम्मद शरीफ जिन्होंने बड़े पैमाने पर उद्योग स्थापित किए और आज पाकिस्तान के शरीफ समूह और इत्तेफाक समूह का स्वामित्व इसी शरीफ परिवार के पास है, मूलत: कश्मीरी है, जो व्यापार के लिए कश्मीर के अनंतनाग से बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में पंजाब के अमृतसर जिले के जती उमरा गाँव में बस गया। उनकी मां के परिवार का संबंध पुलवामा से था। यह परिवार 1947 में भारत के विभाजन और फलस्वरूप बनने वाले इस्लामी राज्य पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लाहौर में आ बसा।
चीनी, लोहा कागज जैसे उद्योगों में इस परिवार ने भारी मुनाफा कमाया। जुल्फिकार अली भुट्टो के सत्ता में आने के बाद शुरू हुए राष्ट्रीयकरण के दौर में इस परिवार को भी भीषण आर्थिक क्षति उठानी पड़ी और मियां मुहम्मद शरीफ ने इससे सबक लेते हुए अपने आर्थिक साम्राज्य की सुरक्षा और वृद्धि के राजनीति में सीधे प्रवेश को सर्वाधिक उपयुक्त रणनीति माना और अपने सबसे बड़े पुत्र तथा शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ को राजनीति में जाने हेतु प्रेरित किया। यह जनरल जिया उल हक का दौर था, शरीफ परिवार ने इस के संरक्षण में ना केवल अपने आर्थिक साम्राज्य का विस्तार किया साथ ही साथ स्वयं को राजनीति में स्थापित भी किया। बड़े भाई नवाज शरीफ के अनुगामी के रूप में शहबाज शरीफ ने राजनीति में अपनी शुरुआत की तथा तेजी से इसमें प्रगति करने लगे।
शहबाज शरीफ की राजनीतिक पारी की शुरुआत 1988 में पंजाब की प्रांतीय असेंबली के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के साथ हुई। 1990 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के लिए चुन लिए गए। बड़े भाई नवाज उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और बाद में सेना द्वारा उन्हें पद से हटने के लिए मजबूर कर दिया गया। पाकिस्तान मुस्लिम लीग के लिए पाकिस्तान की सत्ता का मार्ग पंजाब से होकर ही गुजरता था, लिहाजा पंजाब में इस स्थिति को मजबूत करने के लिए शहबाज शरीफ ने वापस पंजाब की ओर रुख किया और 1993 में उन्हें फिर से पंजाब असेंबली के लिए चुना गया और उन्हें विपक्ष का नेता नामित किया गया। 20 फरवरी 1997 को पहली बार वे पाकिस्तान के इस सबसे अधिक आबादी वाले तथा साथ ही साथ आर्थिक रूप से सर्वाधिक संपन्न तथा सेना में सर्वाधिक वर्चस्व रखने वाले इस प्रांत के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए। जहां नवाज शरीफ की छाया में शहबाज शरीफ ने राजनीति में महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त की वहीं इसके नुकसान भी झेलने पड़े। जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा 1999 के सैन्य तख्तापलट के बाद, शहबाज ने अपने परिवार के साथ सऊदी अरब में आत्म-निर्वासन के वर्षों बिताए और 2007 में ही वे पाकिस्तान लौट सके।
यह वह समय था जब जनरल मुशर्रफ की सत्ता कमजोर पड़ रही थी और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए आंतरिक और बाह्य दबाव बढ़ता ही जा रहा था। 2008 के पाकिस्तानी आम चुनाव में जहां बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद सहानुभूति लहर पर सवार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने नवाज शरीफ का प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न भले ही तोड़ दिया हो, पर पंजाब में शहबाज शरीफ की राजनीतिक पटुता ने, पीएमएल-एन के इस किले को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाब की प्रांतीय असेंबली में जीत के बाद शहबाज शरीफ को दूसरे कार्यकाल के लिए पंजाब का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। जीत का यह सिलसिला लगातार जारी रहा और वह 2013 के आम चुनाव में तीसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए और 2018 के आम चुनाव में अपनी पार्टी की हार तक उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, शहबाज को एक अत्यधिक सक्षम और मेहनती प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठा मिली। उन्होंने पंजाब में महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की शुरुआत की और अपने कुशल शासन के लिए ख्याति पाई । वहीं दूसरी ओर शरीफ बंधुओं ने ना केवल व्यापार से अकूत संपदा इकट्ठी बल्कि इससे परे जाकर अपने राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर अवैध रूप से एक विशाल आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया। 2018 के चुनावों में इमरान खान ने इसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव लडा और शरीफ बंधुओं को सत्ता से बेदखल कर दिया। इससे पूर्व ही पनामा पेपर्स मामले के मद्देनजर नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से अयोग्य घोषित कर दिए जाने के बाद शहबाज शरीफ को पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया था। और नवाज शरीफ पर मुकदमों के चलते 2018 के चुनाव के बाद उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में नामित किया गया।
शहबाज़ शरीफ ने विपक्ष के नेता के रूप में भूमिका को कुशलता से निभायो इमरान खान सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने से लेकर विपक्ष का गठबंधन बनाने में शहबाज़ शरीफ ने कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में सामने आये हैें साथ ही साथ विशेषज्ञों का मानना है कि शरीफ परिवार भारत से बेहतर सम्बन्धों का हामी रहा है और इसका फायदा भारत पाक संबंधों के सुधार के रूप में मिलेगा परन्तु पद ग्रहण के पूर्व ही शाहबाज़ शरीफ ने कश्मीर का राग अलाप कर एक अपरिपक्व राजनेता होने का प्रमाण दिया हैे राजनीति से इतर शहबाज़ शरीफ के जीवन का स्याह पक्ष भी है, जो कि कहीं अधिक प्रबल है और जिसके पाकिस्तान में लगातार चर्चे बने रहते हैें 5 शादियाँ कर चुके शाहबाज़ शरीफ, इमरान खान की तुलना में चारित्रिक रूप से कहीं अधिक स्वच्छंद माने जाते हैें इनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के कम से कम 14 मामले अभी भी विचाराधीन हैें इनके परिवार का तबलीगी जमात से गहरा सबंध रहा है और इनके बड़े भाई अब्बास शरीफ तबलीगी जमात के प्रमुख कर्ता धर्ता रहे साथ ही साथ जिया उल हक़ के काल से ही शरीफ बंधुओं का कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों के साथ गहन संपर्क रहा हैे
परस्पर विरोधी विचारों वाले विपक्षी गठबंधन ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढाया परन्तु अगले सालों में इन्हें आम चुनावों में जाना है और आम चुनाव में गठबंधन की सहयोगी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी किसी भी तरह पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के साथ गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ सकती ऐसी स्थिति में शहबाज़ शरीफ जैसे तुलनात्मक रूप से कम- कम गंभीर व्यक्ति के लिए, जबकि अब उसके ऊपर नवाज शरीफ का नियंत्रण भी नहीं है, स्थितियों का कुशलता पूर्वक सामना करना पाना आसान नहीं होगा और चूँकि गठबंधन का मुख्य कार्य जो इमरान खान से छुटकारा था, पूर्ण हो चुका है, ऐसी स्थिति में गठबंधन का लम्बे समय तक टिक पाना संभव नहीं और इस सरकार की स्थिरता संदेहास्पद ही हैे और स्थिरता के अभाव में पाकिस्तान की न केवल आंतरिक बल्कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों में सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद करना बेमानी है.
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