रांची जिले के हरिहरपुर जामटोली गांव में 14 वर्ष पहले एक भी ईसाई नहीं था। इसके बाद गांव के कुछ लोग ईसाई बने। अब वे लोग उस मंदिर के जीर्णोद्धार का विरोध कर रहे हैं, जिसके जीर्णाोद्धार के लिए उन्होंने एक हिंदू के नाते हर तरह से सहयोग किया था। विरोधस्वरूप उन लोगोें ने मंदिर में लगे ध्वज को फाड़ा और त्रिशूल को उखाड़कर फेंक दिया।
झारखंड में चर्च और मिशनरी से जुड़े अराजक तत्वों ने फिर एक बार से दुस्साहस का परिचय दिया है। ताजा मामला रांची जिले के बेड़ो प्रखंड स्थित हरिहरपुर जामटोली गांव का है। इस गांव के पास एक पहाड़ी है, जहां वर्षों पुराना शिव मंदिर है। कुछ दिन पहले यहां भारतीय नव वर्ष के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। उसी समय चर्च से जुड़े कुछ लोग मंदिर में पहुंचे और कार्यक्रम में बाधा डालने की कोशिश की। जब वहां मौजूद लोगों ने उनका विरोध किया तो वे हिंसा पर उतारू हो गए। मंदिर में लगे ध्वज को फाड़कर फेंक दिया और त्रिशूल को उखाड़ लिया। इसके बाद वहां के पुजारी जयराम सत्यप्रेमी को बुरी तरह से पीटा गया । जयराम को यह भी धमकी दी गई कि अगर वे यहां पर पूजा-पाठ बंद नहीं करते हैं तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। इसके बाद जयराम सत्यप्रेमी और मंदिर समिति के लोग स्थानीय बेड़ो थाने में शिकायत दर्ज कराने गए तो उन्हें यह कह कर टाल दिया गया कि अभी सरहुल और रामनवमी के त्योहार के कारण सभी व्यस्त हैं, बाद में शिकायत दर्ज की जाएगी।
पुलिस के इस जवाब से मंदिर वाले चकित रह गए।
दरअसल, लोगों का कहना है कि पुलिस को राज्य सरकार से मौखिक आदेश है कि यदि पीड़ित हिंदू हो तो शिकायत जल्दी दर्ज न करो और इसके उलट पीड़ित ईसाई या मुसलमान हो तो शिकायत दर्ज करने में तनिक भी देर मत करो।
हरिहरपुर झारखंड की राजधानी रांची से मात्र 37 किलोमीटर दूर है। ग्राम प्रधान रामप्रसाद लोहरा ने बताया कि इस गांव में लगभग 500 परिवार निवास करते हैं, जिसमें कई परिवार जनजातीय समाज के हैं। यहां पर एक पहाड़ है जहां भगवान शिव का बहुत पुराना मंदिर है। 14 वर्ष पहले गांव के लोगों ने मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया था। इसके बाद से ही धीेरे—धीरे काम चल रहा है। इस बीच गांव के कुछ लोगों पर मिशनरियों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि अब वे लोग अपने को हिंदू ही नहीं मान रहे हैं। इस कारण पूजा—पाठ तो करते ही नहीं हैं और अब मंदिर के जीर्णोद्धार का भी विरोध करने लगे हैं। ऐसे ही लोगों ने नव वर्ष के कार्यक्रम को रोका।
मंदिर के पुजारी जयराम सत्यप्रेमी के अनुसार पहले तो यहां पर रहने वाले लोग हिंदू रीति—रिवाज से पूजा—पाठ करने आते थे और सभी लोग एक साथ पर्व—त्योहार मनाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। उन्होंने बताया कि इस गांव में पहले एक भी ईसाई नहीं हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे मिशनरी और चर्च के लोगों का आगमन हुआ। जिस जनजातीय संस्कृति में प्रार्थना सभा का कोई नाम नहीं था, वहां अब हर कार्यक्रम में प्रार्थना सभाएं होने लगीं। लोग अपनी संस्कृति को छोड़कर ईसाई संस्कृति की ओर झुकने लगे हैं। इसके साथ ही चर्च के लोग जनजातीय समाज के लोगों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काने का काम निरंतर कर रहे हैं।
मंदिर समिति के सचिव चरवा उरांव ने बताया कि इस मंदिर के जीर्णोद्धार से गांव के लोग काफी उत्साहित थे। यह मंदिर यहीं के जनजातीय समाज के लोगों ने मिलकर बनाया है और आज भी मंदिर समिति में अधिकतर लोग जनजातीय समाज के ही हैं। पर अब गांव के कुछ लोगों को इस मंदिर से आपत्ति हो रही है। इसके पीछे चर्च का हाथ है।
चरवा उरांव ने यह भी कहा कि सरना और सनातन में कोई अंतर नहीं है। यह बात चर्च और मिशनरियों को भी पता है। हालाँकि जनजातीय समाज के लोग भोले—भाले होते हैं इसीलिए उन्हें आसानी से बहका दिया जाता है।
ग्राम प्रधान रामप्रसाद लोहरा के अनुसार पहले इस गांव में इस तरह की कभी कोई घटना नहीं घटती थी। लेकिन बीते वर्षों में गांव के अंदर कई बाहरी लोगों का आना हुआ है। इन लोगों को हमारी संस्कृति और धर्म से कोई मतलब नहीं है। यही कारण है कि ये लोग हमारे ही कुछ लोगों को भड़का कर हमारे मंदिरों और हमारी संस्कृति पर हमला करने लगे हैं।
इस विषय पर बेड़ो थाना के प्रभारी मनीष गुप्ता ने बताया कि रामनवमी के बाद गांव वालों के साथ बैठकर मामले को निपटाने का प्रयास किया जाएगा।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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