प्रतीकात्मक चित्र
अब फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में हिजाब मुद्दा बन गया है। मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को चुनौती दे रहीं उम्मीदवार मरीन ली पेन ने वादा किया है कि वे चुनाव जीतीं तो हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं पर जुर्माना लगाया जाएगा।
फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण का मतदान रविवार को है। इसके बाद 24 अप्रैल को दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में मौजूदा राष्ट्रपति मैक्रों को मरीन ली पेन चुनौती दे रही हैं। उन्होंने पहले चरण के मतदान के ठीक पहले वादा किया है कि यदि वह राष्ट्रपति चुनकर आती हैं तो सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने वालों को जुर्माना देना पड़ेगा।
फ्रांसीसी मीडिया के अनुसार आक्रामक चुनाव प्रचार कर रहीं पेन मौजूदा राष्ट्रपति मैक्रों को कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं। पेन ने फ्रांसीसी रेडियो से चर्चा में कहा कि जिस प्रकार से कारों में सीट बेल्ट नहीं पहनने पर जुर्माना लगता है, उसी तरह खुली जगहों पर हिजाब पहनने पर रोक रहेगी। यदि इस नियम का उल्लंघन किया गया तो जुर्माना वसूला जाएगा। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं से फ्रांस में सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब न पहनने का आह्वान किया। इस नियम को भेदभावपूर्ण और धार्मिक आजादी का उल्लंघन बताकर अदालत में चुनौती की संभावना पर उन्होंने कहा कि इससे बचने के लिए वह जनमत संग्रह कराएंगी।
फ्रांस में पहले से ही शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा हुआ है। सार्वजनिक स्थानों पर भी पूरा चेहरा ढकने पर भी रोक लगी है।
इन देशों में है प्रतिबंध
कनाडा में वर्ष 2007 में नियम बना कि क्यूबेक महिलाओं को वोट देने के लिए घूंघट हटाना होगा। वर्ष 2004 में फ्रांस ने राज्य में हेडस्कार्फ़ और “विशिष्ट” मजहबी प्रतीकों को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जर्मनी के बेयर्न में स्कूलों और मतदान केंद्रों में चेहरा ढकने पर रोक है। इससे पहले वर्ष 2019 में अस्थायी तौर पर प्रतिबंध लगा था। वहां ईस्टर संडे वाले दिन नौ आत्मघाती हमले हुए थे। ये हमले इस्लामी कट्टरपंथी समूह नेशनल तौहीद जमात ने कराए थे। इसमें ढाई सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद वर्ष 2021 में बुर्के को बैन किया गया।
वित्तपोषित प्रयास
अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट में भारत की असरा क्यू. नोमानी और मिस्र की हाला अरफा का एक लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें उन्होंने बताया कि कैसे हिजाब और बुर्के को इस्लाम से जोड़ा गया, जबकि इसमें मजहबी कुछ नहीं है। 1979 तक मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या बुर्के की बाध्यता नहीं थी। वे लिखती हैं कि यह आधुनिक मुस्लिम समाज पर प्रभुत्व जमाने का दकियानूसी मुस्लिमों का अच्छी तरह से वित्तपोषित प्रयास है।
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