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होम भारत

सरहुल पर जनजातियों को भड़काने की शरारत

by अरुण कुमार सिंह
Apr 9, 2022, 11:25 am IST
in भारत, झारखण्‍ड
सरहुल के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल जनजाति समाज के लोग, जिनके हाथों में आपत्तिजनक तख्तियां थमाई गईं

सरहुल के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल जनजाति समाज के लोग, जिनके हाथों में आपत्तिजनक तख्तियां थमाई गईं

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जनजातियों के लिए सरहुल एक बड़ा पर्व है। यह त्योहार धरती यानी प्रकृति को समर्पित होता है। इस दिन जनजाति समाज के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं और झारखंड में सरकारी छुट्टी भी रहती है। इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह पर्व जनजातियों के लिए कितना महत्व रखता है। लेकिन दुर्भाग्य से इस पर्व का इस्तेमाल जनजातियों को भड़काने के लिए होने लगा है। भड़काने वाले वही लोग हैं, जो इन जनजातियों को ईसाई बनाने चाहते हैं। ‘राष्ट्रीय आदिवासी मंच’ के कार्यकारी अध्यक्ष सन्नी टोप्पो कहते हैं,”चर्च के लोग पर्व के अवसर पर भी अपनी नीच हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। ये लोग भोले—भाले जनजातियों से कहते हैं कि तुम हिंदू नहीं हो! मैं चर्च के लोगों से पूछना चाहता हूं कि कौन ईसाई प्रकृति की पूजा करता है! जबकि जनजाति समाज प्रकृति के बीच रहता है, प्रकृति को देवता मानकर उसकी पूजा करता है। प्रकृति मतलब पेड़, पहाड़, नदी। इन सबकी पूजा भारतीय संस्कृति से जुड़े लोग ही करते हैं और जो भारतीय संस्कृति को मानता है, वह हिंदू है। इसलिए चर्च के लोग जनजातियों को यह न कहें कि तुम लोग हिंदू नहीं हो। जनजाति हिंदू ही हैं और हिंदू ही रहेंगे।”
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. राजकिशोर हांसदा कहते हैं, ”जनजाति और सनातनधर्मी एक हैं। भारतीय संस्कृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष प्रारंभ होता है। इस दिन लोग देवी की पूजा प्रारंभ करते हैं और नौ दिन तक पूजा होती है। ऐसे ही प्रकृति के बीच रहने वाला जनजाति समाज प्रकृति की पूजा कर नव वर्ष मनाता है। सरहुल पर्व कई दिनों तक मनाया जाता है। वैसे ही जैसे हम नवरात्र मनाते हैं।” डॉ. हांसदा यह भी कहते हैं, ”संथाल जनजाति में मान्यता है कि उनकी देवी का अवतरण साल वृक्ष के नीचे हुआ था। इसलिए सरहुल में इस देवी की पूजा की जाती है और जिस जगह पूजा होती है, उसे जहीर थान कहा जाता है। इसी स्थान को रांची और छोटा नागपुर के इलाकों में सरना स्थल कहा जाता है। इतनी समानताओं के बावजूद जो लोग जनजाति समाज को हिंदू नहीं मानते हैं, वे निश्चित रूप से जनजातियों के हितैषी नहीं हैं। ऐसे लोग एक खास लक्ष्य को लेकर जनजाति समाज को आपस में बांटना चाहते हैं। ऐसे लोगों से हमें सावधान रहने की जरूरत है।”
उल्लेखनीय है कि रांची और उसके आसपास में चर्च के लोग जनजाति समाज का हर पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं और इनमें उन्हीें लोगों को बुलाया जाता है, जो ईसाई बन गए हैं। इस वर्ष सरहुल के अवसर पर भी चर्च के लोगों ने कई कार्यक्रम किए। एक ऐसे ही कार्यक्रम में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी हिस्सा लिया।

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