जहां तक बैंकिंग क्षेत्र का सवाल है, आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स की बदौलत सूचनाओं का बहुत सटीक विश्लेषण करते हुए यह भविष्यवाणी करना संभव है कि डूबत खाते को कैसे नियंत्रित किया जाए, कर्जों के लिए सही पात्रों का चयन कैसे किया जाए और पुनर्निवेश के लिए बेहतर संभावनाएं कहां मिलेंगी। इन सबके अतिरिक्त ग्राहकों को बेहतर सेवाएं देने और उनके साथ निजी स्तर पर संपर्क बनाए रखने जैसी प्रक्रियाएं भी प्रौद्योगिकी की बदौलत आसान हो गई हैं। पहले इनके लिए हम मानवीय श्रम पर निर्भर थे और इसीलिए अधिक मानव संसाधनों की तैनाती के बावजूद नतीजे उतने अच्छे नहीं आ पाते थे जितने कि आज कम मानव संसाधनों से ही संभव हो गए हैं।
वित्तीय क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका लगातार गहन होती जा रही है। आज जनधन योजना के जरिए करोड़ों नए लोग बैंकिग प्रणाली का हिस्सा बने हैं। इनके अलावा औपचारिक तथा अनौपचारिक क्षेत्र में वित्तीय सेवाएं बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच रही हैं। आधार कार्ड और मोबाइल के आने के बाद बैंकिंग तथा वित्तीय क्षेत्र की अनेक प्रक्रियाएं आसान हो गई हैं जिसका परिणाम वित्तीय क्षेत्र में उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई दे रहा है। पहले जहां डीमैट, बैंक ऋण और निवेश आदि खाते खुलवाने में कुछ दिन या कुछ हफ्ते लगा करते थे, वह अब कुछ घंटों में होने लगा है। हालांकि यह बैंक विशेष की तत्परता पर निर्भर करता है लेकिन इन प्रक्रियाओं में चार-पांच गुना तेजी तो आई ही है। केवाईसी से जुड़ी प्रक्रियाएं पहले से ज्यादा आसान होने के बाद भी ज्यादा असरदार हो चली हैं। मोबाइल और आधार के प्रयोग से मौके पर ही सही खाताधारक की पहचान को प्रमाणित करना संभव हो गया है।
आज जिस ओटीपी का हम वित्तीय क्षेत्र में प्रमाणन (वैलिडेशन) के लिए इस्तेमाल करते हैं, उसे अनेक विशेषज्ञ दुनिया को भारतीय वित्तीय क्षेत्र की देन मानकर चलते हैं। यह सीधी-सरल पद्धति एक सामान्य से फोन पर भी काम करती है और व्यक्ति की पहचान के प्रमाणन का सस्ता, सुंदर, प्रभावी और टिकाऊ तरीका बन चुकी है।
इन तमाम बदलावों का असर वित्तीय डिजिटलाइजेशन में भी दिख रहा है। साठ प्रतिशत से ज्यादा लेनदेन यूपीआई के दायरे में आ गए हैं और ढाई सौ से ज्यादा बैंक यूपीआई के सदस्य हैं। धन के लेनदेन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मोबाइल अप्लीकेशनों की बाढ़ आ गई है। देखते ही देखते इनमें से कुछ का दायरा अनेक बैंकों से भी ज्यादा बड़ा हो गया है। अब तो भारतीय रिजर्व बैंक ने सामान्य मोबाइल फोन पर बिना इंटरनेट के भी धन के लेनदेन की व्यवस्था शुरू कर दी है जो सारे घटनाक्रम की व्यापकता और समग्रता की तरफ संकेत करती है। एक अध्ययन के मुताबिक सन् 2026 तक स्थितियां और भी बदल जाएंगी जब भारत में होने वाले कुल वित्तीय लेन-देन का 44 प्रतिशत हिस्सा पेमेन्ट गेटवे और एग्रीगेटरों के जरिए आएगा जबकि 34 प्रतिशत भुगतान क्यूआर कोड के जरिए किए जाएंगे। इतना ही नहीं, 22 प्रतिशत भुगतान पीओएस (पेमेन्ट आफ सेल्स) मशीनों (हाथ में रखी जाने वाली) के जरिए हो रहे होंगे।
इन दिनों वित्तीय प्रौद्योगिकी में ‘अभी खरीदो बाद में भुगतान करो’ (बाइ नाउ, पे लेटर) (बीएनपीएल) का नया क्षेत्र भी लोकप्रिय हो रहा है। ये छोटी धनराशि के कर्ज हैं जिनके लिए नगण्य या बहुत कम ब्याज लिया जाता है। आपने शायद बजाज फाइनेंस या ऐसी ही दूसरी कंपनियों के उन आॅफर्स को देखा होगा जब आप कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लेने के लिए जाते हैं तो आपको बिना ब्याज के उन उपकरणों के लिए वित्त की पेशकश की जाती है। छोटे-छोटे भुगतान (जैसे सिनेमा के टिकट या भोजन के बिल) आदि के लिए भी इस तरह के छोटे कर्ज दिए जाने लगे हैं जिन्हें कुछ दिन, हफ्तों या महीनों में चुकाया जाता है। सिम्पल, जेस्टमनी, लेजीपे, कैपिटल फ्लोट और मोबिक्विक जिप जैसी छोटी कंपनियां इस कारोबार में लगी हैं। धनी एप्प के तहत आधार कार्ड और मोबाइल नंबर के आधार पर छोटे कर्ज दे दिए जाते हैं। रेडसियर नामक संस्था का अनुमान है कि भारत में बीएनपीएल श्रेणी में एक से डेढ़ करोड़ लोग पहले ही छोटे-छोटे कर्जों का फायदा उठा चुके हैं। अनुमान है कि अगले पांच साल में आनलाइन बिक्री का दस प्रतिशत हिस्सा इस तरह के लेनदेन पर आधारित होगा।
(लेखक माइक्रो सॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)
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